Tulsi (तुलसी)

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pH value

5.5 - 7

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Temperature

14 - 30°C

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Fertilization

NPK @ 48:24:24 Kg/Acre 104kg/acre urea, SSP 150kg/acre, muriate of potash 40kg/acre

Tulsi  (तुलसी)

Basic Info

परिचय: प्राचीन समय से ही तुलसी एक पवित्र पौधा माना जाता है। जिसे हर घर में लगाकर पूजा आदि की जाती है तुलसी का आयुर्वेद में बहुत बड़ा स्थान है। तुलसी से बहुत सारे रोगों का उपचार किया जाता है। इसका प्रतिदिन सेवन करने से कई प्रकार के रोगों से राहत मिलती है। वर्तमान में इसे औषधीय खेती के रूप में किया जाने लगा है। यह पुरे भारत में पाया जाता है। इसकी कई प्रकार की प्रजातियां होती है जैसे : ओसेसिम बेसिलिकम, ग्रेटीसिमम, सेकटम, मिनिमम, अमेरिकेनम।

विवरण: तुलसी भारत के सभी राज्यों में पाया जाने वाला पौधा है। तुलसी का पौधा 1800 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है। यह भारत में उत्तराखण्ड, जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी बंगाल राज्यों में इसकी व्यावसायिक खेती की जाती है। तुलसी मुख्य रूप से 3 तरह की होती है। पहली हरी पत्ती वाली, दूसरी काली पत्ती वाली और तीसरी कुछ कुछ नीली, बैगनी रंग की पत्तियों वाली खास बात यह है कि यह कम सिंचाई वाली और कम से कम रोगों व कीटों से प्रभावित होने वाली फसल होती है।

Seed Specification

बुवाई का समय
फरवरी के तीसरे हफ्ते में नर्सरी बैड तैयार करें। 

बीज  की मात्रा
तुलसी की खेती के लिए 750 ग्रा. – 1 किग्रा. बीज का प्रयोग एक हेक्टयेर में करें। 

बीज द्वारा बुवाई 
तुलसी का प्रसारण बड़े पैमाने पर बीज द्वारा ही किया जाता है। जमीन की 15 – 20 सेमी. गहरी खुदाई कर के खरपतवार आदि निकाल तैयार करा लेना चाहिए। 15 टन प्रति हे. की दर से गोबर की सड़ी खाद  अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। 1 मी. X 1 मी. आकार की जमीन सतह से उभरी हुई क्यारियां बना कर उचित मात्र में कंपोस्ट एवं उर्वरक मिला दिन चाहिए। 750 ग्रा. – 1 किग्रा. बीज एक हेक्टयेर के लिए पर्याप्त होता है। बीज की बुवाई 1:10 के अनुपात में रेत या बालू मिला कर 8-10 सेमी. की दूरी पर पक्तियां में करनी चाहिए। बीज की गहराई अधिक नहीं होनी चाहिए। जमाव के 15-20 दिन बाद 20 कि./ हे. की दर से नेत्रजन डालना उपयोगी होता है। पांच- छह सप्ताह में पौध रोपाई हेतु तैयार हो जाती है।

शाखाओं द्वारा बुवाई
तुलसी का प्रसारण शाखाओं को काटकर भी किया जा सकता है। 10-15 ऐसी लम्बी शाखायें काटकर उन्हें छाया में रखकर सुबह-शाम हजारे से पानी देते रहें। एक महीने में इन शाखाओं से जड़ें विकसित हो जाती हैं। और पत्तियाँ विकसित होने लगती हैं। जब शाखायें 5-10 सेमी की हो जायें तो इसके बाद इनकी रोपाई की जा सकती है।

रोपाई का तरीका
1 हेक्टेयर खेत के लिए लगभग 200-300 ग्राम बीजों से तैयार पौध सही होतेहैं. बीजों को नर्सरी में मिट्टी के 2 सेंटीमीटर नीचे बोना चाहिए. बीज अमूमन 8-12 दिनों में उग आते हैं. इस के बाद रोपाई के लिए 4-5 पत्तियों वाले पौधे लगभग 6 हफ्ते में तैयार हो जाते हैं. प्रति हेक्टेयर अधिक उपज और अच्छे तेल उत्पादन के लिए लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेंटीमीटर जरूर रखनी चाहिए. तुलसी की रोपाई के लिए केवल स्वस्थ पौधे का चुनाव करना चाहिए। ताकि पैदावार अच्छी हो।

बीज उपचार
फसल को मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारीयों से रोकथाम के लिए, बुवाई से पहले मैंकोजेब 5 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीजों का उपचार करें|

Land Preparation & Soil Health

खाद एवं रासायनिक उर्वरक
तुलसी के पौधे के तमाम भागों को ज्यादातर औषधीय इस्तेमाल में लिया जाता है, इसलिए बेहतर होगा कि रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल न करें या बहुत कम करें। 1 हेक्टेयर खेत में 10-15 टन खूब सड़ी हुई गोबर की खाद या 5 टन वर्मी कंपोस्ट सही रहती है। यदि रासायनिक उर्वरकों की जरूरत पड़ ही जाए तो मिट्टी की जांच के अनुसार ही इन का इस्तेमाल करना चाहिए। सिफारिश की गई फास्फोरस और पोटाश की मात्रा जुताई के समय व नाइट्रोजन की कुल मात्रा 3 भागों में बांट कर 3 बार में इस्तेमाल करनी चाहिए।

Crop Spray & fertilizer Specification

परिचय: प्राचीन समय से ही तुलसी एक पवित्र पौधा माना जाता है। जिसे हर घर में लगाकर पूजा आदि की जाती है तुलसी का आयुर्वेद में बहुत बड़ा स्थान है। तुलसी से बहुत सारे रोगों का उपचार किया जाता है। इसका प्रतिदिन सेवन करने से कई प्रकार के रोगों से राहत मिलती है। वर्तमान में इसे औषधीय खेती के रूप में किया जाने लगा है। यह पुरे भारत में पाया जाता है। इसकी कई प्रकार की प्रजातियां होती है जैसे : ओसेसिम बेसिलिकम, ग्रेटीसिमम, सेकटम, मिनिमम, अमेरिकेनम।

विवरण: तुलसी भारत के सभी राज्यों में पाया जाने वाला पौधा है। तुलसी का पौधा 1800 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है। यह भारत में उत्तराखण्ड, जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी बंगाल राज्यों में इसकी व्यावसायिक खेती की जाती है। तुलसी मुख्य रूप से 3 तरह की होती है। पहली हरी पत्ती वाली, दूसरी काली पत्ती वाली और तीसरी कुछ कुछ नीली, बैगनी रंग की पत्तियों वाली खास बात यह है कि यह कम सिंचाई वाली और कम से कम रोगों व कीटों से प्रभावित होने वाली फसल होती है।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण
तुलसी की खेती में खरपतवार रोकथाम के लिए आवश्यकता अनुसार निराई गुड़ाई करें।


सिंचाई
पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए। उस के बाद मिट्टी की नमी के मुताबिक सिंचाई करनी चहिए। वैसे गरमियों में हर महीने 3 बार सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है। बरसात के मौसम में यदि बरसात होती रहे, तो सिंचाई की कोई जरूरत नहीं पड़ती है।

Harvesting & Storage

कटाई
जब पौधों में पूरी तरह फूल आ जाएं तो रोपाई के 3 महीने बाद कटाई का सही समय होता है। ध्यान रहे कि तेल निकालने के लिए पौधे के 25-30 सेंटीमीटर ऊपरी शाकीय भाग की कटाई करनी चाहिए।

पैदावार
इसके फसल की औसत पैदावार 20 - 25 टन प्रति हेक्टेयर तथा तेल का पैदावार 80-100 किग्रा. हेक्टेयर तक होता है।

आय – व्यय विवरण
प्रति हेक्टेयर व्यय – रू. 10,500
तेल का पैदावार – 85 किलो प्रति हेक्टेयर
तेल की कीमत – 450 – रूपया प्रति किलो – 85 X 450 = 38,250
शुद्ध लाभ = रू. 38, 250 – 10,500 = 27,750

Crop Disease

Downy Mildew

Description:
बेसिल डाउनी फफूंदी तेजी से फैल सकती है और इसके परिणामस्वरूप पूरी उपज हानि हो सकती है। संक्रमण निचली पत्तियों पर शुरू होता है और पौधे की ओर बढ़ता है। तुलसी डाउनी फफूंदी का कारण बनने वाला रोगज़नक़ बीज, प्रत्यारोपण या ताजी पत्तियों पर संचारित हो सकता है।

Organic Solution:
नीम के तेल उत्पादों (अजादिराच्टिन) को लार्वा के खिलाफ सुबह या देर शाम को पत्तियों पर स्प्रे करें। उदाहरण के लिए, नीम के तेल का छिड़काव करें (15000 पीपीएम) 6 मिली/लीटर की दर से।

Chemical solution:
तुलसी डाउनी फफूंदी को नियंत्रित करने के लिए फफूंदनाशकों का प्रयोग सबसे प्रभावी रणनीति है। क्लोरोथालोनिल और मैनकोजेब डाउनी फफूंदी के लिए मुख्य सुरक्षात्मक कवकनाशी हैं।

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Fusarium Wilt (फ्यूजेरियम विल्ट)

Description:
फ्यूजेरियम विल्ट तुलसी के सबसे आम रोगों में से एक है। तुलसी की यह बीमारी सबसे अधिक मीठी तुलसी की किस्मों को प्रभावित करती है, लेकिन तुलसी की अन्य किस्में अभी भी कुछ हद तक कमजोर हैं। फ्यूजेरियम विल्ट एक कवक के कारण होता है जिसे या तो उस मिट्टी द्वारा ले जाया जा सकता है जो प्रभावित तुलसी के पौधों में या संक्रमित तुलसी के पौधों के बीज से बढ़ रही है।

Organic Solution:
ग्रीनहाउस में उगाई गई तुलसी पर फ्यूजेरियम विल्ट के नियंत्रण के लिए कोई कवकनाशी पंजीकृत नहीं है। इसलिए सांस्कृतिक नियंत्रण जैसे संक्रमित बीजों से बचने की कोशिश करना, बीजों को गर्म पानी से उपचारित करना और खेत में फसल चक्रण करना प्राथमिक उपचार विधियां हैं।

Chemical solution:
62.5WG को 11 से14 oz/A पर स्विच करें जो बीमारी की शुरुआत से पहले या पहले लगाया गया हो। कार्रवाई के दूसरे तरीके को बदलने से पहले दो से अधिक (2) अनुक्रमिक उपचार लागू न करें। प्री हार्वेस्ट अंतराल 7 दिन है। 12 घंटे की रीएंट्री।

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Related Varieties

Frequently Asked Question

तुलसी किस मौसम में उगाई जाती है?

तुलसी, जिसे पवित्र तुलसी या धार्मिक तुलसी के रूप में भी जाना जाता है, उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में एक बारहमासी है, लेकिन यह आपकी जलवायु की परवाह किए बिना घर के अंदर साल भर उगाया जा सकता है। हर साल हम अपने सब्जी के बगीचे में एक बड़ा पैच लगाते हैं और सर्दियों की चाय के लिए सूखने के लिए पहले ठंढ से पहले अच्छी तरह से फसल लेते हैं।

क्या पानी में तुलसी उग सकती है?

पौधे को बीज से या पानी में जड़ से उगाना आसान है और देखभाल करने के लिए वास्तव में सरल है। आप इसे अंदर रख सकते हैं, या इसे अपने सजावटी या सब्जी के बगीचे में लगा सकते हैं।

तुलसी को चींटियों से कैसे बचाएं?

इसलिए, पुदीना, मेंहदी, लैवेंडर, थाइम और पेपरमिंट जैसी मजबूत खुशबू वाला कोई भी पौधा प्राकृतिक चींटियों के लिए हानिकारक है। बेशक, इस में से एक पौधा पौधे को चींटियों को आपके घर में आने से रोकने में सक्षम नहीं होगा।

तुलसी के बीज का क्या नाम है?

ऐसा ही एक है साजा बीज, एक प्रकार की मीठी तुलसी या तुलसी के बीज, जिन्हें फालूदा बीज भी कहा जाता है।

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