Jute (जूट)

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Watering

High

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Cultivation

Transplant

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Harvesting

Manual

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Labour

Low

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Sunlight

Medium

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pH value

6 - 7.5

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Temperature

25 - 30° C

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Fertilization

spray 8 kg of urea as 2 per cent urea solution (20 g urea in one litre of water) on jute foliage on

Jute (जूट)

Basic Info

जूट एक द्विबीजपत्री, रेशेदार पौधा है। इसका तना पतला और बेलनाकार होता है। जूट, पटसन और इसी प्रकार के पौधों के रेशे हैं। इसके रेशे बोरे, दरी, तम्बू, तिरपाल, टाट, रस्सियाँ, निम्नकोटि के कपड़े तथा कागज बनाने के काम आता है।

'जूट' शब्द संस्कृत के 'जटा' या 'जूट' से निकला समझा जाता है। यूरोप में 18वीं शताब्दी में पहले-पहल इस शब्द का प्रयोग मिलता है, यद्यपि वहाँ इस द्रव्य का आयात 18वीं शताब्दी के पूर्व से "पाट" के नाम से होता आ रहा था।

कपास की खेती और उपयोग के संदर्भ में जूट महत्वपूर्ण प्राकृतिक रेशों में से एक है। खेती जलवायु, मौसम और मिट्टी पर निर्भर है। दुनिया की लगभग 85% जूट की खेती गंगा डेल्टा में केंद्रित है। यह उपजाऊ भौगोलिक क्षेत्र बांग्लादेश और भारत (मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल) द्वारा साझा किया जाता है। जूट की खेती में भी चीन का दबदबा है। छोटे पैमाने पर, थाईलैंड, म्यांमार (बर्मा), पाकिस्तान, नेपाल और भूटान भी जूट की खेती करते हैं।

Seed Specification

प्रसिद्द किस्में
जूट की दो प्रकार की प्रमुख किस्में होती है, प्रत्येक किस्म की किस्में इस प्रकार है, जैसे-
कैपसुलेरिस- जे आर सी 321, जे आर सी 212, यू पी सी 94 (रेशमा), जे आर सी 698, अंकित (एन डी सी- 2008), एन डी सी 9102
ओलीटोरियस- जे आर ओ 632, जे आर ओ 878, जे आर ओ 7835, जे आर ओ 524 (नवीन), जे आर ओ 66

बुवाई का समय
जूट की बुवाई ढाल वाली भूमि पर फरवरी में और ऊंचाई वाली भूमि में मार्च से जुलाई तक की जाती है।
 
बीज की मात्रा
सीड ड्रिल से पंक्तियों में बुआई करने पर कैपसुलेरिस की किस्मों के लिए 4 से 5 किलोग्राम और ओलिटेरियस के लिए 3 से 5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। छिड़कवां बोने पर 5 से 6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

बीज उपचार
बुवाई से पहले जूट के बीज को थीरम 3 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू पी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।

बुवाई की विधि
जूट की बुवाई हल के पीछे करनी चाहिए, लाइनों से लाइनों का दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 7 से 8 सेंटीमीटर तथा गहराई 2 से 3 सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। मल्टीरो जूट सीड ड्रिल के प्रयोग से 4 लाइनों की बुआई एक बार में हो जाती है तथा एक व्यक्ति एक दिन में एक एकड़ की बुआई कर सकता है।

Land Preparation & Soil Health

खाद एवं उर्वरक
जूट की खेती से अधिक उपज पाने के लिए इसकी खेती में उर्वरक की उचित मात्रा देना जरूरी होता है। इसके लिए खेत की जुताई के वक्त 25 से 30 टन सड़ी हुई पुरानी गोबर की खाद खेत में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें। जैविक खाद के अलावा अगर किसान भाई रासायनिक खाद का उपयोग अपने खेतों में करना चाहता है तो इसके लिए खेत की आखिरी जुताई के वक्त 2:1:1 के अनुपात में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की 90 किलो मात्रा प्रति हेक्टेयर हिसाब से खेत में डालकर मिट्टी में मिला दें। उसके बाद नाइट्रोजन की आधी मात्रा को दो बार पौधों को सिंचाई के साथ दें।

किट एवं रोग और उनके रोकथाम
जूट की फसल आमतौर पर दो बीमारियों से प्रभावित होती है- जड़ और तना सड़न तथा इन बीमारियों से कभी-कभी फसल पूर्णत नष्ट हो जाती है। इससे बचाव के लिए बीज को शोधित करके ही बोना चाहिए। इन बीमारियों से बचाव के लिये ट्राइकोडरमा विरिडी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर तथा 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।

जूट फसल पर सेमीलूपर, एपियन, स्टेम बीविल कीटों का प्रकोप होता है। इन कीटों के रोकथाम हेतु 1.5 लीटर डाइकाफाल को 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर फसल की 40 से 45 और 60 से 65 तथा 100 से 105 दिन की अवस्थाओं पर छिड़काव किया जा सकता है| इन कीटों के नियंत्रण के लिए नीम उत्पादित रसायन एजाडिरेक्टिन 0.03 प्रतिशत के 1.5 लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये।

Crop Spray & fertilizer Specification

जूट एक द्विबीजपत्री, रेशेदार पौधा है। इसका तना पतला और बेलनाकार होता है। जूट, पटसन और इसी प्रकार के पौधों के रेशे हैं। इसके रेशे बोरे, दरी, तम्बू, तिरपाल, टाट, रस्सियाँ, निम्नकोटि के कपड़े तथा कागज बनाने के काम आता है।

'जूट' शब्द संस्कृत के 'जटा' या 'जूट' से निकला समझा जाता है। यूरोप में 18वीं शताब्दी में पहले-पहल इस शब्द का प्रयोग मिलता है, यद्यपि वहाँ इस द्रव्य का आयात 18वीं शताब्दी के पूर्व से "पाट" के नाम से होता आ रहा था।

कपास की खेती और उपयोग के संदर्भ में जूट महत्वपूर्ण प्राकृतिक रेशों में से एक है। खेती जलवायु, मौसम और मिट्टी पर निर्भर है। दुनिया की लगभग 85% जूट की खेती गंगा डेल्टा में केंद्रित है। यह उपजाऊ भौगोलिक क्षेत्र बांग्लादेश और भारत (मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल) द्वारा साझा किया जाता है। जूट की खेती में भी चीन का दबदबा है। छोटे पैमाने पर, थाईलैंड, म्यांमार (बर्मा), पाकिस्तान, नेपाल और भूटान भी जूट की खेती करते हैं।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण
सभी फसलों की तरह इसकी फसल को भी खरपतवार नियंत्रण की जरूरत होती है। जुट की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की नीडाई गुड़ाई की जाती है। इसके पौधों की पहली गुड़ाई बीज रोपण के 25 से 30 दिन बाद जब पौधा लगभग एक फिट का हो जाए तब कर देनी चाहिए। इसके बाद पौधों की 15 से 20 दिन के अन्तराल में एक गुड़ाई और कर देनी चाहिए।

रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए बीज रोपाई के तुरंत बाद पेंडीमेथिलीन या फ्लूक्लोरेलिन का छिडकाव पौधों पर कर देना चाहिए।

सिंचाई
जूट के पौधों को सिंचाई की काफी कम जरूरत होती हैं। क्योंकि इसकी खेती ऐसे वक्त की जाती है, जब सम्पूर्ण भारत वर्ष में बारिश का मौसम बना रहता है। जून में इसकी रोपाई के वक्त मानसून का दौर होता है। लेकिन बारिश के बाद जब खेत में नमी की मात्रा कम होने लगे या समय पर बारिश ना हो तो खेत में सिंचाई कर देना चाहिए।

Harvesting & Storage

जुट के पौधो की कटाई एवं सड़ाना
उत्तम रेशा प्राप्त करने हेतु 100 से 120 दिन की जूट फसल हो जाने पर कटाई की जा सकती है। जल्दी कटाई करने पर प्रायः रेशे की उपज कम प्राप्त होती है। लेकिन देर से काटी जाने वाली फसल की अपेक्षा रेशा अच्छा होता है। छोटे और पतले व्यास वाले पौधों को छांटकर अलग-अलग छोटे-छोटे बंडलों में (15 से 20 सेंटीमीटर) बांधकर दो तीन दिन तक खेत में पत्तियों के गिरने हेतु छोड़ देना चाहिए।

कटे हुए जूट पौधों के बन्डलों को पहले खड़ी दशा में 2 से 3 दिन पानी में रखने के बाद एक दो पंक्ति में लगाकर तालाब या हल्के बहते हुए पानी में 10 सेंटीमीटर गहराई तक जाकर बनाकर डुबोने के पूर्व पानी वाले खरपतवार से ढककर किसी वजनी पत्थर के टुकड़े से दबा देना चाहिए, साथ ही इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बन्डल तालाब की निचली सतह से न छूने पाये। सामान्य स्थिति होने पर 15 से 20 दिन में पौधा सड़कर रेश निकालने योग्य हो जाता है। बैक्टीरियल कल्चर के प्रयोग से सड़न में 4 प्रतिशत समय की बचत के साथ-साथ रेशे की गुणवत्ता बढ़ जाती है।

रेशा निकालना और सुखाना
प्रत्येक सड़े हुए जूट पौधों के रेशों को अलग-अलग निकालकर हल्के बहते हुए साफ पानी में अच्छी तरह धोकर किसी तार, बांस इत्यादि पर सामानान्तर लटकाकर कड़ी धूप में 3 से 4 दिन तक सुखा लेना चाहिए| सुखाने की अवधि में रेशे को उलटते-पलटते रहना चाहिए। सघन पद्धतियों को अपनाकर 25 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रेशे की उपज प्राप्त की जा सकती है।

Crop Disease

Stem Rot (स्टेम रोट)

Description:
जूट रोग का तना सड़न कवक, मैक्रोफोमिना फेजोलिना (टैसी) गोइद के कारण होता है। यह बीज जनित, वायु जनित और मिट्टी जनित कवक है। रोग पौधे की वृद्धि के लगभग सभी चरणों के दौरान होता है। मुख्य संक्रमण स्टेम (कोर्टेक्स के लिए) में होता है। इसके अलावा, पत्तियां भी प्रभावित हो सकती हैं।

Organic Solution:
ट्राइकोडर्मा विषाणु, एस्परगिलस नाइगर, और फ्लोरोसेंट स्यूडोमोनास जैसे जैव-एजेंट उपयोगी हो सकते हैं। T. viride के पाउडर बनाने के साथ बीजोपचार अंतिम जुताई पर 10 ग्राम / किग्रा की दर से किया जाता है और इसके मृदा अनुप्रयोग ने विभिन्न स्थानों पर रोग की घटनाओं को कम किया है।

Chemical solution:
पहले पत्ते के संक्रमण में 0.75 सांद्रता पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (50% Cu) का छिड़काव फलदायक परिणाम देता है। क्षेत्र की परिस्थितियों में 0.2% लाइम सल्फर, 0.5% पेरेनॉक्स और बोर्डो मिश्रण (5: 5: 40) का छिड़काव करके पत्ती के संक्रमण को कम किया जा सकता है।

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Anthracnose

Description:
लक्षण रोगज़नक़ Colletotrichum corchorii के कारण होते हैं। यह कवक रोग बीजों, मिट्टी और बगीचे के मलबे में और उसके ऊपर से गुजरता है। ठंडा गीला मौसम इसके विकास को बढ़ावा देता है, और बीजाणुओं की निरंतर वृद्धि के लिए इष्टतम तापमान 75-85˚F के बीच होता है। यह हवा, बारिश, कीड़े और बगीचे के उपकरण द्वारा फैलता है।

Organic Solution:
बैसिलस सबटिलिस के उपभेदों वाले SERENADE जैसे जैव-कवकनाशकों का उपयोग करें। नीम के तेल के आवेदन की भी सिफारिश की जाती है।

Chemical solution:
कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी @ 2 ग्राम / किग्रा या कैप्टन @ 5 ग्राम प्रति किग्रा और कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी @ 2 जी / ली या कैप्टान @ 5 ग्राम प्रति लीटर या मैनकोजेब @ 5 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से बीजोपचार करें।

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Stem Gall (स्टेम गैल)

Description:
लक्षण रोगज़नक़ फिजोडर्मा कॉरकोरी के कारण होते हैं। यह पहली बार दिखाई देता है जब पौधा लगभग 8 - 10 इंच ऊँचा होता है, जो तने के निचले भाग पर, जमीन के स्तर के ऊपर छोटे-छोटे हरे रंग के गाल पैदा करता है।

Organic Solution:
रोग को नियंत्रित करने के लिए, बीज को 4 ग्राम थिरम और 2 ग्राम बाविस्टिन / किलोग्राम बीज के उपचार के बाद ही किया जा सकता है। बुवाई के 20 दिन बाद कार्बोफ्यूरान 3 जी @ 12.5 किग्रा / एकड़ का मृदा अनुप्रयोग।

Chemical solution:
कार्बेन्डाजिम के 0.1% घोल का छिड़काव करें जब लक्षण दिखने लगें और 20 दिनों के अंतराल पर जब तक रोग पूरी तरह से नियंत्रित न हो जाए तब तक छिड़काव दोहराएं।

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Black Band (ब्लैक बैंड)

Description:
लक्षण रोगज़नक़ों, बोट्रोडायोडिलोडिया थियोब्रोमा के कारण होते हैं। संक्रमण मिट्टी से तने तक 2-3 फीट ऊंचा होता है। रोगज़नक़ जूट की दोनों प्रजातियों को प्रभावित करता है और जुलाई से पुरानी फसल को गंभीर नुकसान पहुंचाता है, जिससे न तो फाइबर मिलता है और न ही बीज।

Organic Solution:
टोसा के बजाय देसी जूट के साथ फसल का घुमाव। डिटेन एम-45, मनेर एम-45 @ 2 g/L पानी का छिड़काव 2-3 बार संक्रमित फसलों पर करें।

Chemical solution:
कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी 2 g/kg और कार्बेन्डाजिम 50 फोरी @ 2 g/L पानी या क्यू-ऑक्सीक्लोराइड @ 5-7 g/L पानी या मैनकोजेब @ 4-5 g/L के साथ बीजोपचार प्रभावी नियंत्रण प्रदान करता है।

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Related Varieties

Frequently Asked Question

भारत में जूट किन राज्यों में उगाया जाता है?

पश्चिम बंगाल, असम और बिहार देश के प्रमुख जूट उत्पादक राज्य हैं, जिनका देश के जूट क्षेत्र और उत्पादन का लगभग 98 प्रतिशत हिस्सा है। जूट उगाने के लिए उपयुक्त जलवायु (गर्म और आर्द्र जलवायु) मानसून के मौसम के दौरान होती है।

जूट किस प्रकार की फसल है?

जूट खरीफ की फसल है। यह एक जर्मनिक लोगों का सदस्य है जो एक पौधे - जूट के तने से निकाला जाता है। 3 दिन तक लोग तने को पानी में भिगो देते हैं और जब तना सड़ जाता है तो उसमें से रेशे निकाल लेते हैं।

जूट क्या है?

जूट एक पौधा है, "जूट" बर्लेप, हेसियन या गनी के कपड़े बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पौधे या फाइबर का नाम है। जूट सबसे किफायती प्राकृतिक रेशों में से एक है, और उत्पादित मात्रा और उपयोग की विविधता में कपास के बाद दूसरा है। जूट के रेशे मुख्य रूप से पादप सामग्री सेल्यूलोज और लिग्निन से बने होते हैं।

जूट के लिए कौन सी मिट्टी सबसे अच्छी है?

जूट को मिट्टी से लेकर बलुई दोमट तक सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन दोमट जलोढ़ सबसे उपयुक्त है। लेटराइट और बजरी मिट्टी इस फसल के लिए उपयुक्त नहीं होती है। अच्छी गहराई वाली नई धूसर जलोढ़ मिट्टी, जो वार्षिक बाढ़ से गाद प्राप्त करती है, जूट की खेती के लिए सर्वोत्तम है।

भारत में जूट का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है?

भारत में पश्चिम बंगाल भारत में जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद बिहार, असम, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा और मेघालय हैं।

जूट के लिए कौन सा देश प्रसिद्ध है?

दुनिया के अग्रणी जूट उत्पादक देश भारत, बांग्लादेश, चीन और थाईलैंड हैं। भारत कच्चे जूट और जूट के सामानों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो वैश्विक उत्पादन में क्रमशः 50 प्रतिशत और 40 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है।

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