Cotton (कपास)

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Watering

High

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Cultivation

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Harvesting

Machine & Manual

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Labour

Low

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Sunlight

Low

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pH value

6 - 8

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Temperature

15 - 35 °C

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Fertilization

NPK @ 30:12:0 Kg/Acre 65kg/acre urea, SSP 75kg/acre

Cotton (कपास)

Basic Info

कपास की खेती भारत की सबसे महत्वपूर्ण रेशा और नगदी फसल में से एक है| कपास की खेती लगभग पुरे विश्व में उगाई जाती है। यह कपास की खेती वस्त्र उद्धोग को बुनियादी कच्चा माल प्रदान करता है। भारत में कपास की खेती लगभग 6 मिलियन किसानों को प्रत्यक्ष तौर पर आजीविका प्रदान करता है और 40 से 50 लाख लोग इसके व्यापार या प्रसंस्करण में कार्यरत है। कई लोगो के लिए कपास कमाई का साधन भी है।
हमारे देश में कपास की खेती को सफेद सोना भी कहा जाता है। देश में व्यापक स्तर पर कपास उत्पादन की आवश्यकता है। क्योंकी कपास का महत्व इन कार्यो से लगाया जा सकता है इसे कपड़े बनते है, इसका तेल निकलता है और इसका विनोला बिना रेशा का पशु आहर में व्यापक तौर पर उपयोग में लाया जाता है।

Seed Specification

कपास को तीन श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है :-
देखा जाये तो लम्बे रेशा वाले कपास को सर्वोतम माना जाता है जिसकी लम्बाई 5 सेंटीमीटर इसको उच्च कोटि की वस्तुओं में शामिल किया जाता है। मध्य रेशा वाला कपास (Cotton) जिसकी लम्बाई 3.5 से 5 सेंटीमीटर होती है इसको मिश्रित कपास कहा जाता है। तीसरे प्रकार का कपास छोटे रेशा वाला होता है। जिसकी लम्बाई 3.5 सेंटीमीटर होती है।

बीज की मात्रा :-
बीज की मात्रा बीजों की किस्म, उगाये जाने वाले इलाके, सिंचाई आदि पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। अमेरिकन हाइब्रिड कपास के लिए 1.5 - 2 किलो प्रति एकड़ जबकि अमेरिकन कपास के लिए बीज की मात्रा 3.5 - 4 किलो प्रति एकड़ होनी चाहिए। देसी कपास की हाइब्रिड किस्म के लिए बीज की मात्रा 1.25 - 2 किलो प्रति एकड़ और कपास की देसी किस्मों के लिए 3 - 4  किलो प्रति एकड़ होनी चाहिए।

बीज उपचार :-
- बीज जनित रोग से बचने के लिये बीज को 10 लीटर पानी में एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या ढाई ग्राम एग्रीमाइसिन के घोल में 8 से 10 घंटे तक भिगोकर सुखा लीजिये इसके बाद बोने के काम में लेवें।
- जहां पर जड़ गलन रोग का प्रकोप होता है, ट्राइकोड़मा हारजेनियम या सूडोमोनास फ्लूरोसेन्स जीव नियंत्रक से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें या रासायनिक फफूंदनाशी जैसे कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यू पी, 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या कार्बेन्डेजिम 50 डब्ल्यू पी से 2 ग्राम या थाईरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
कुदरती ढंग से रेशा हटाने के लिए बीजों को पूरी रात पानी में भिगोकर रखें, फिर अगले दिन गोबर और लकड़ी के बुरे या राख से बीजों को मसलें। फिर बिजाई से पहले बीजों को छांव में सुखाएं।
- रासायनिक ढंग बीज के रेशे पर निर्भर करता है। शुद्ध सल्फियूरिक एसिड (उदयोगिक ग्रेड) अमेरिकन कपास के लिए 400 ग्राम प्रति 4 किलो बीज और देसी कपास के लिए 300 ग्राम प्रति 3 किलो बीज को 2-3 मिनट के लिए मिक्स करें इससे बीजों का सारा रेशा उतर जायेगा। फिर बीजों वाले बर्तन में 10 लीटर पानी डालें और अच्छी तरह से हिलाकर पानी निकाल दें। बीजों को तीन बार सादे पानी से धोयें और फिर चूने वाले पानी (सोडियम बाइकार्बोनेट 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) से एक मिनट के लिए धोयें। फिर एक बार दोबारा धोयें और छांव में सुखाएं।
- रासायनिक ढंग के लिए धातु या लकड़ी के बर्तन का प्रयोग ना करें, बल्कि प्लास्टिक का बर्तन या मिट्टी के बने हुए घड़े का प्रयोग करें। इस क्रिया को करते समय दस्तानों का प्रयोग जरूर करें।
- रेशे रहित एक किलोग्राम नरमे के बीज को 5 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस या 4 ग्राम थायोमिथोक्साम 70 डब्ल्यू एस से उपचारित कर पत्ती रस चूसक हानिकारक कीट और पत्ती मरोड़ वायरस को कम किया जा सकता है।
असिंचित स्थितियों में कपास की बुवाई के लिये प्रति किलोग्राम बीज को 10 ग्राम एजेक्टोबेक्टर कल्चर से उपचारित कर बोने से पैदावार में वृद्धि होती है।
 

बुवाई का समय :-
कपास की बुवाई का उपयुक्त समय अलग - अलग क्षेत्रों में भिन्न होता है। इस फसल की बुवाई अप्रैल और मई के महीने में अवश्य ही कर लेनी चाहिये ।

बीज रोपाई का तरीका :-
देसी कपास की बिजाई के लिए बिजाई वाली मशीन का प्रयोग करें और हाइब्रिड या बी टी किस्मों के लिए गड्ढे खोदकर बिजाई करें। आयताकार के मुकाबले वर्गाकार बिजाई लाभदायक होती है। कुछ बीजों के अंकुरन ना होने के कारण और नष्ट होने के कारण कईं जगहों पर फासला बढ़ जाता है। इस फासले को खत्म करना जरूरी है। बिजाई के दो सप्ताह बाद कमज़ोर, बीमार और प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।

फासला :-
अमेरिकन कपास के लिए सिंचित स्थिति में 75x15 सैं.मी. और बारानी स्थिति में 60x30 सैं.मी. का फासला रखें। देसी कपास के लिए सिंचित और बारानी स्थिति में 60x30 का फासला रखें।

Land Preparation & Soil Health

खाद एवं उर्वरक :-
कपास की बुवाई से पहले खेत तैयार करते समय 15-20 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में अच्छी तरह मिलानी चाहिए।
अमेरिकन और बीटी किस्मों में प्रति हैक्टेयर 75 किलोग्राम नत्रजन तथा 35 किलोग्राम फास्फोरस व देशी किस्मों को प्रति हैक्टेयर 50 किलोग्राम नत्रजन और 25 किलो फास्फोरस की आवश्यकता होती है।
पोटाश उर्वरक मिट्टी परीक्षण के आधार पर देवें, फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा और नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई से पहले देवें। नत्रजन की शेष आधी मात्रा फूलों की कलियां बनते समय देवें।

हानिकारक किट एवं रोग और उनके रोकथाम :-
हानिकारक कीट -
हरा मच्छर- इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस एल की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करें। 
तेला - इसके रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल या थायोमिथाक्जाम 25 डब्लू जी की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करें। 
थ्रिप्स - थ्रिप्स की रोकथाम के लिए मिथाइल डेमेटान 25 ई सी 160 मि.ली. बुप्रोफेंज़िन 25 प्रतिशत एस सी 350 मि.ली. फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस सी 200-300 मि.ली., इमीडाक्लोप्रिड 70 प्रतिशत डब्लयू जी 10-30 मि.ली, थाइमैथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयू जी 30 ग्राम में से किसी एक को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
सफेद मक्खी - इसकी रोकथाम के लिए एसेटामीप्रिड 4 ग्राम या एसीफेट 75 डब्लयू पी 800 ग्राम को प्रति 200 लीटर पानी या इमीडाक्लोप्रिड 40 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर या थाइमैथोक्सम 40 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
मिली बग - इसकी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 25 ई सी 5 मि.ली. या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
चितकबरी सुंडी - अमेरिकन सुंडी - तंबाकू सुंडी - गुलाबी सुंडी :- इसकी रोकथाम के लिए क्यूनालफॉस 25 ई सी, 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर या इन्डोक्साकार्ब 14.5 एस सी, 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर या स्पाईनोसेड 45 एस सी, 0.33 मिलीलीटर प्रति लीटर या फ्लूबेन्डियामाइड 480 एस सी, 0.40 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से किसी एक कीटनाशी का छिड़काव करें|


हानिकारक रोग -
झुलसा रोग - इसकी रोकथाम के लिए काँपर ऑक्सीक्लोराइड का छिडकाव पौधे पर करना चाहिए। 
पौध अंगमारी रोग - इसकी रोकथाम के लिए एन्ट्राकाल या मेन्कोजेब 40 ग्राम/15 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करे। 
अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग - इसकी रोकथाम के लिए टैबुकोनाज़ोल 1 मि.ली. या ट्राइफलोकसीट्रोबिन + टैबुकोनाज़ोल 0.6 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे बिजाई के 60वें, 90वें, और 120वें दिन बाद करें। यदि बीमारी खेत में दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कप्तान 500 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें या कार्बेनडाज़िम 12 प्रतिशत + मैनकोज़ेब 63 प्रतिशत डब्लयू पी 25 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर  छिड़काव करें।
जड़ गलन रोग - इसकी रोकथाम के लिए बीज को उपचारित करना आवश्यक होता है।

Crop Spray & fertilizer Specification

कपास की खेती भारत की सबसे महत्वपूर्ण रेशा और नगदी फसल में से एक है| कपास की खेती लगभग पुरे विश्व में उगाई जाती है। यह कपास की खेती वस्त्र उद्धोग को बुनियादी कच्चा माल प्रदान करता है। भारत में कपास की खेती लगभग 6 मिलियन किसानों को प्रत्यक्ष तौर पर आजीविका प्रदान करता है और 40 से 50 लाख लोग इसके व्यापार या प्रसंस्करण में कार्यरत है। कई लोगो के लिए कपास कमाई का साधन भी है।
हमारे देश में कपास की खेती को सफेद सोना भी कहा जाता है। देश में व्यापक स्तर पर कपास उत्पादन की आवश्यकता है। क्योंकी कपास का महत्व इन कार्यो से लगाया जा सकता है इसे कपड़े बनते है, इसका तेल निकलता है और इसका विनोला बिना रेशा का पशु आहर में व्यापक तौर पर उपयोग में लाया जाता है।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण :-
पहली निंदाई-गुड़ाई अंकुरण के 15 से 20 दिन के अंदर कर कोल्पा या डोरा चलाकर करना चाहिए। खरपतवारनाशकों में पायरेटोब्रेक सोडियम (750 ग्रा/हे) या फ्लूक्लोरिन /पेन्डामेथेलिन 1 किग्रा. सक्रिय तत्व को बुवाई पूर्व उपयोग किया जा सकता है।

सिंचाई :-
कपास की फसल में 3-4 सिंचाई देनी आवश्यक होती है। पहली सिंचाई देर से करनी चाहिये। कपास की खेती को काफी कम पानी जरूरत होती हैं। अगर बारिश ज्यादा होती है तो इसे शुरूआती सिंचाई की जरूरत नही होती। लेकिन बारिश टाइम पर नही होने पर इसकी पहली सिंचाई लगभग 45 से 50 दिन बाद  चाहिए। गूलर व फूल आते समय खेत की सिंचाई अवश्य की जानी चाहिये।

Harvesting & Storage

कपास की तुड़ाई :-
कपास की पहली तुड़ाई जब कपास की टिंडे 40 से 60 प्रतिशत खिल जाएँ तब करनी चाहिए। उसके बाद दूसरी तुड़ाई सभी टिंडे खिलने के बाद करते हैं। कपास की चुनाई का कार्य 3-4 बार में पूरा होता है।

उत्पादन :-
उपरोक्त उन्नत विधि से खेती करने पर देशी कपास की 20 से 25, संकर कपास की 25 से 32 और बी टी कपास की 30 से 50 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर पैदावार ली जा सकती है।


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Crop Disease

Bacterial Blight (बैक्टीरियल ब्लाइट)

Description:
कॉटन बैक्टीरियल ब्लाइट Xanthomonas Citri subsp के कारण होता है। Malvacearum, एक जीवाणु जो संक्रमित फसल के मलबे या बीज में जीवित रहता है। महत्वपूर्ण वर्षा की घटनाओं और उच्च आर्द्रता, गर्म तापमान के साथ, रोग के विकास का पक्ष लेते हैं।

Organic Solution:
जीवाणुओं के खिलाफ तालक-आधारित पाउडर योगों को लागू करें बैक्टीरिया X. malvacearum के खिलाफ स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस और बेसिलस सबटिलिस। विकास नियामकों को लागू करें जो बैक्टीरियल ब्लाइट से संक्रमण से बचने के लिए अनर्गल विकास को रोकते हैं।

Chemical solution:
कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के साथ अधिकृत एंटीबायोटिक्स और सीड ड्रेसिंग के साथ बीज उपचार कपास बैक्टीरिया के कारण पैदा होने वाले बैक्टीरिया के खिलाफ बहुत प्रभावी है।

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Fall Armyworm (फ़ौज का कीड़ा)

Description:
आमतौर पर तराजू से ढके पत्तों के नीचे की तरफ 100-300 के तंग गुच्छों में अंडे रखे जाते हैं। लार्वा हल्के काले या हरे से लगभग काले रंग के होते हैं, जिसमें धारियाँ और पीठ के साथ एक पीली रेखा होती है। गर्म, आर्द्र मौसम के बाद ठंडे, गीले झरने कीटों के जीवन चक्र का समर्थन करते हैं।

Organic Solution:
ततैया पैरासाइटोइड्स में कोट्सिया मार्जिनिवेंट्रिस, चेलोनस टेक्सानस, और सी। रेमस शामिल हैं। शिकारियों में ग्राउंड बीटल, स्पाईड सिपाही कीड़े, फूल बग, पक्षी या कृन्तकों शामिल हैं। नीम के अर्क, बेसिलस थुरिंजेंसिस, या बैकोलोवायरस स्पोडोप्टेरा, साथ ही साथ स्पिनोसैड या एज़ादिरैक्टिन युक्त जैव-कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सकता है।

Chemical solution:
अनुशंसित कीटनाशकों में एस्फेनरेट, क्लोरपाइरीफोस, मैलाथियोन और लैम्ब्डा-सायलोथ्रिन शामिल हैं।

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Pink Bollworm (गुलाबी बोलवर्म)

Description:
कपास वर्ग और टोलियों को नुकसान, गुलाबी बोलेवॉर्म, पेक्टिनोफोरा गॉसीपिएला के लार्वा के कारण होता है। उनके पास एक लम्बी पतला उपस्थिति और भूरा, अंडाकार आकार के पंख हैं जो दृढ़ता से झालरदार किनारों के साथ हैं। गुलाबी बोलेवॉर्म का विकास मध्यम से उच्च तापमान तक होता है।

Organic Solution:
पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला से निकाले गए सेक्स फेरोमोन को पूरे संक्रमित क्षेत्रों में छिड़का जा सकता है। स्पिनोसैड या बेसिलस थुरिंगिनेसिस के योगों के साथ समय पर छिड़काव भी प्रभावी हो सकता है।

Chemical solution:
क्लोरपाइरीफोस, एस्फेनवेलरेट, या इंडोक्साकार्ब युक्त कीटनाशक योगों के पर्ण आवेदन का उपयोग गुलाबी बलगम के पतंगों को मारने के लिए किया जा सकता है।

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Black Cutworm (ब्लैक कटवर्म)

Description:
काले कटवर्म एक भूरे रंग के शरीर के साथ मजबूत पतंगे हैं। उनके पास हल्के-भूरे और गहरे भूरे रंग के अग्रभाग हैं, जो बाहरी किनारे की ओर गहरे निशान और सफेद हिंडिंग्स के साथ हैं। वे निशाचर हैं और दिन के दौरान मिट्टी में छिप जाते हैं।

Organic Solution:
बेसिलस थुरिंगिनेसिस, न्यूक्लोपॉलीहाइड्रोसिस वायरस और बेवेरिया बेसियाना पर आधारित जैव कीटनाशक प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण प्रदान करते हैं।

Chemical solution:
क्लोरपायरीफोस, बीटा-साइपरमेथ्रिन, डेल्टामेथ्रिन, लैम्ब्डा-सायलोथ्रिन युक्त उत्पादों को कटवर्म आबादी को नियंत्रित करने के लिए लागू किया जा सकता है।

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डस्की कॉटन बग (कपास का धूसर) (Dusky Cotton Bug)

Description:

इस कीट के वयस्क 4-5 मिली लंबे राख के रंग के या भूरे रंग के व मटमैले सफेद पंखों वाले होते है तथा निम्फ छोटे व पंख रहित होते है। शिशु व वयस्क दोनों ही कच्चे बीजों से रस चूसते हैं जिससे बीज पक नहीं पाते तथा वजन में हल्के रह जाते हैं। जिनिंग के समय कीटों के दबकर कर मरने से रूई की गुणवत्ता प्रभावित होती है जिससे बाजारू मूल्य कम हो जाता है।

Organic Solution:
नीम आधारित 5 प्रतिशत जैव कीट नाशकों का उपयोग करें।

Chemical solution:
रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर को पार कर ले। एक किलो बीज को 5 से 10 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू एस से उपचारित करें। या एक किलो बीज को 2 ग्राम कार्बोसल्फान 20 डी एस से उपचारित करें। या मिथाईल डेमेटॉन 25 ईसी या डाईमेथोएट 30 ईसी या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस एल का 750 से 1000 मि.ली/हे 250 से 750 लीटर पानी मे मिलाकर मानव चलित स्प्रेयर या 25 से 150 लीटर पानी मे मिलाकर शक्ति चलित स्प्रेयर द्वारा छिड़काव करें ।

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अमेरिकन कपास की सुंडी (Cotton bollworm)

Description:

इस कीट की सूंडिया आरंभ में पत्तियों को खाती हैं तथा बाद में डोडी/टिंडा में घूस जाती है। एक सुंडी कई डोडियों को नुकसान पहुँचाती है। इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर – एक अंडा या एक इल्ली प्रति पौधा या 5 – 10 प्रतिशत प्रभावित, क्षतिग्रस्त टिंडे होता है।

अगस्त-सितम्बर मे आक्रमण करता है। बहुभोजी कीट है। ये कीट पौधे की कोमल टहनियों पर अण्डे देते है। लार्वा हरे पीले 25-30 मिमी लम्बाई के होते है। इस कीट का प्यूपा जमीन मे होता है । ग्रसित जननांग गिर जाते है सिवाय परिपक्व डेडू के ।

Organic Solution:

Chemical solution:
रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर को पार कर ले। प्रारंभिक अवस्था में क्वीनालफॉस, मोनोक्रोटोफॉस, क्लोरीपाइरीफॉस का उपयोग करें। साइपरमेथिन 10 ई.सी. 600-800 मि.ली./हे या डेकामेथिन 2.8 ई.सी. 500-600 मि.ली./हे या फेनवलरेट 20 ई.सी. 350-500 मि.ली./हे 600 लीटर पानी में छिड़काव करे।

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हरा मच्छर

Description:

इस कीट का वयस्क हरे पीले का लगभग 3 मिली लंबा होता है तथा पंखों पर पीछे की ओर दो काले धब्बे हैं। कीट के हरे-पीले शिशु एंव वयस्क पत्ती के नीचे के भाग से रस चूसते है। कीट पत्ती के तन्तुओं पर अण्डे देते है जिससे पत्ती हल्के रंग की होकर नीचे की ओर मुड़ जाती है और सूख जाती है।

Organic Solution:
नीम आधारित 5 प्रतिशत जैव कीट नाशकों का उपयोग करें।

Chemical solution:
रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर को पार कर ले। बीज को 4.5 ग्राम थायोमेथोक्सम 70 डब्लु. एस. प्रति किलो बीज से उपचारित करें। या बीज को 5-10 ग्राम 70 डब्लु. एस. इमीडोक्लोप्रिड प्रति किलो बीज से उपचारित करें। या 2 ग्राम 20 डी. एस. कार्बोसल्फान प्रति किलो बीज से उपचारित करें। या ऑक्सीडेमेटोन मिथाइल 25 प्रतिशत ई.सी. या डाईमेथोएट 30 ई.सी. या मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. 750 से 1000 मि.ली./हे 250 से 750 लीटर पानी में हाथ या पैर द्वारा संचालित स्प्रेयर के लिए और 25 से 150 लीटर पानी शक्ति चलित यंत्र के लिए।

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कपास में पत्ता-लपेट सुंडी (Cotton leaf-roller)

Description:

इस कीट के पतंगें माध्यम आकार के तथा पीले से पंखों वाले होते हैं। इन पंखों पर भूरे रंग की लहरिया लकीरें होती हैं। पतंगे के सिर व् धड़ पर काले व् भूरे निशान होते हैं। पूर्ण विकसित पतंगे की पंखों का फैलाव लगभग 28 से 40 मि.मी. होता है। अन्य पतंगों की तरह ये पतंगें भी निशाचरी होते हैं। रात के समय ही मादा पतंगा एक-एक करके तकरीबन 200 -300 अंडे पत्तों की निचली सतह पर देती है। इन अण्डों से चार-पांच दिन में शिशु सुंडियां निकलती हैं। 
ये नवजात सुंडियां अपने जीवन के शुरुवाती दिनों में तो पत्तियों की निचली सतह पर भक्षण करती हैं।पर बड़ी होकर ये सुंडियां पत्तियों को किनारों से ऊपर की ओर कीप के आकार में मोड़ती हैं तथा इसके अंदर रहते हुए ही पत्तियों को खुरच कर खाती हैं।

Organic Solution:
नीम आधारित 5 प्रतिशत जैव कीट नाशकों का उपयोग करें। ट्राइकोग्रामा चिलोनिस अण्ड परजीवी के अण्डे 1.5 लाख प्रति हेक्टेयर से कीट दिखते ही खेत मे छोड़े।एक सप्ताह के बाद पुन:छोड़े। क्रायसोपरला 50000 प्रति हेक्टेयर से कीट दिखते ही खेत मे छोड़े। एक पखवाड़े के बाद पुन:छोड़े।

Chemical solution:
रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर को पार कर ले। मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. या फोजेलॉन 35 ई.सी. या मेलाथियान 50 प्रतिशत या क्विनालफास 25 ई.सी. 1000-1250 मि.ली./हे 600 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।

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माहू /चेंपा (Aphids)

Description:

माहू /चेंपा – चेंपा के शिशु व वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर झुंड में प्रवास करते हैं तथा पत्तियों से रस चूसते रहते हैं। इसके कारण पत्तियां टेड़ी – मेढ़ी होकर मुरझा जाती हैं अतंत: बाद में झड़ जाती है। प्रभावित पौधे पर काली फफूंदी भी पनपने लगती है जो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करती है।

Organic Solution:
हानिकारक कीटों की विभिन्न अवस्थाओं को प्रारंभ में हाथों से एकत्रित कर नष्ट करें। नीम आधारित 5 प्रतिशत जैव कीट नाशकों का उपयोग करें।

Chemical solution:
रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर को पार कर ले। एफिड के लिए आर्थिक क्षति स्तर 15-20 प्रतिशत प्रभावित पौधे । एक किलो बीज को 7.5 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू एस से उपचारित करें। या एक किलो बीज को 4.5 ग्राम थायोमेथोक्सम 70 डब्लू एस से उपचारित करें। यदि 15-20 प्रतिशत पौधे एफिड से सक्रमित लगे तो 0.03 डाईमेथोएट 750 मि.ली/हे 600 लीटर पानी से छिड़काव करें।

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मीली बग (mealy bug)

Description:

इस कीट के शिशु व  वयस्क सफेद मोम की तरह होते हैं तथा पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसकर उन्हें कमजोर बना देते हैं। ग्रसित पौधे झाड़ीनुमा बौने रह जाते  हैं। गूलर (टिंडे) कम बनते है तथा इनका आकार छोटा एवं कुरूप हो जाता है। ये कीट मधुस्राव भी करते हैं जिन पर चींटियाँ आकर्षित होती हैं जो इन्हें एक पौधे से दूसरे पौधे तक ले जाती हैं। इस प्रकार यह कीट खेत में सम्पूर्ण फसल पर फ़ैल जाता है।
मीली बग पत्तियों, तने आदि पर आक्रमण करती है जिससे पौधे की बढवार रूक जाती है और सूख जाता है।

Organic Solution:
नीम आधारित 5 प्रतिशत जैव कीट नाशकों का उपयोग करें।

Chemical solution:
एसीफेट का उपयोग करें। एसीफेट 290 ग्राम ए आई/हे का भुरकाव करें, 15 लीटर पानी में 35-40 मिलीलीटर प्रोफेनोफॉस 50 ईसी मिला कर छिड़काव करें। संक्रमण बढ़ने पर प्रति एकड़ खेत में 400 से 600 मिलीलीटर प्रोफेनोफॉस 40% + साइपरमेथ्रीन 4% ईसी का छिड़काव करें।

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Related Varieties

Frequently Asked Question

भारत में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है?

गुजरात इस क्षेत्र के साथ-साथ देश का सर्वाधिक कपास उत्पादक राज्य है। 2019-20 सीज़न में, राज्य ने 89 लाख गांठ कपास का उत्पादन किया और पिछले सीजन की तुलना में 1.7% की वृद्धि दर्ज की। राज्य इस क्षेत्र में 46% हिस्सा और भारत के कुल कपास उत्पादन में 25% हिस्सा लेता है।

किस मौसम में कपास उगाई जाती है?

कपास देश के प्रमुख भागों में खरीफ की फसल है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्से। इन क्षेत्रों में, सिंचित फसल मार्च-मई से बुवाई की जाती है और जून-जुलाई में मानसून की शुरुआत के साथ बारिश होती है।

क्या कपास रबी की फसल है?

खरीफ की फसलों में चावल, मक्का, शर्बत, मोती बाजरा / बाजरा, उंगली बाजरा / रागी (अनाज), अरहर (दालें), सोयाबीन, मूंगफली (तिलहन), कपास आदि शामिल हैं। रबी फसलों में गेहूं, जौ, जई (अनाज) शामिल हैं। चना / चना (दालें), अलसी, सरसों (तिलहन) आदि।

कौन सा शहर कपास के लिए प्रसिद्ध है?

तमिलनाडु राज्य में कोयम्बटूर कपास उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। यह बड़ी मात्रा में कपास का उत्पादन करता है जो मिलों में संसाधित होता है। कोयम्बटूर की भूमि और जलवायु कपास के विकास के लिए उपयुक्त है जो मुख्य कारण है कि लोग वहां कपास उगाना पसंद करते हैं।

कपास को बढ़ने में कितना समय लगता है?

लगभग 150 से 180 दिनों का इसका बढ़ता मौसम देश में किसी भी वार्षिक फसल में सबसे लंबा है। चूंकि जलवायु और मिट्टी में बहुत भिन्नता है, इसलिए उत्पादन पद्धतियां एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होती हैं।

विश्व में कपास उत्पादक देश कौन कौन से है?

कपास गर्म जलवायु में बढ़ता है और दुनिया का अधिकांश कपास यू.एस., उज्बेकिस्तान, चीन और भारत में उगाया जाता है। अन्य प्रमुख कपास उत्पादक देश ब्राजील, पाकिस्तान और तुर्की हैं।

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