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जैसे ही रबी सीजन की प्रमुख फसलों की कटाई पूरी होती है, किसानों के खेत कुछ समय के लिए खाली हो जाते हैं। ऐसे में यह समय खरीफ की तैयारी से पहले कीमती माना जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो इस अवधि में मूंग की खेती करके किसान न सिर्फ अतिरिक्त आमदनी कमा सकते हैं, बल्कि अपने खेत की उर्वरता भी बढ़ा सकते हैं।
मूंग एक ऐसी दलहनी फसल है जो कम समय में तैयार होती है और
इसमें खाद व पानी की जरूरत भी कम होती है। खास बात यह है कि मूंग की जड़ों में
मौजूद राइजोबियम बैक्टीरिया नाइट्रोजन को हवा से खींचकर मिट्टी में जमा करता है, जिससे भूमि की
उर्वरता बढ़ती है। यही कारण है कि मूंग को ‘हरित खाद’ के रूप में भी देखा जाता है।
चुनिए मूंग की उन्नत
किस्में – MH 1762 और MH 1772
हरियाणा के चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार ने मूंग
की दो ऐसी उन्नत किस्में विकसित की हैं जो किसानों के लिए लाभकारी साबित हो सकती
हैं। ये किस्में हैं:
MH 1762 – बसंत और गर्मी के लिए उपयुक्त
·
इस किस्म को फरवरी से अप्रैल के बीच बोया जा सकता है।
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60 दिनों
में फसल पककर तैयार हो जाती है।
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दाने चमकीले हरे और मध्यम आकार के होते हैं।
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औसतन 14.5
क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है।
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यह किस्म राजस्थान,
हरियाणा, पंजाब
जैसे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
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पीला मौजेक रोग के प्रति काफी हद तक प्रतिरोधक है।
MH 1772 – खरीफ के मौसम के लिए उपयुक्त
·
जून से जुलाई के बीच बोवाई की जाती है।
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62 दिनों
में फसल तैयार हो जाती है।
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औसत उपज 13.5
क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
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यह किस्म बिहार,
पश्चिम बंगाल, असम
जैसे उत्तर-पूर्वी भारत के राज्यों के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
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इसमें भी पीला मौजेक जैसी बीमारियों का कम प्रभाव देखा गया
है।
बीज की उपलब्धता कहां
और कैसे?
इन दोनों किस्मों के बीज किसानों तक समय पर और सही तरीके से
पहुंचे, इसके
लिए विश्वविद्यालय ने राजस्थान की "स्टार एग्रो सीड्स" कंपनी के साथ
समझौता किया है। इस समझौते के तहत कंपनी को बीज उत्पादन और विक्रय का अधिकार
मिलेगा। किसान अब इन उन्नत किस्मों का प्रमाणिक बीज आसानी से बाजार में प्राप्त कर
सकेंगे।
मूंग की खेती के अन्य
लाभ
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समय की बचत: मूंग की फसल जल्दी पकने वाली होती
है, जिससे
खेत अगली फसल के लिए समय पर तैयार हो जाता है।
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कम लागत: मूंग में सिंचाई और खाद की जरूरत बहुत कम होती है।
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मिट्टी की उर्वरता बढ़ाना: दलहन फसल होने
की वजह से यह मिट्टी में जैविक नाइट्रोजन जोड़ती है।
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बाजार में अच्छी मांग: मूंग दाल की
खपत हर घर में होती है,
जिससे इसका बाजार मूल्य अच्छा रहता है।
खेती में वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर किसान अपनी आय में कई
गुना वृद्धि कर सकते हैं। मूंग की MH
1762 और MH
1772 किस्में ऐसी ही उन्नत तकनीकों का परिणाम हैं, जो न सिर्फ
अधिक पैदावार देती हैं बल्कि खेत की मिट्टी को भी उपजाऊ बनाए रखती हैं। अगर किसान
इन किस्मों की समय पर बुवाई करते हैं और सही देखभाल करते हैं, तो यह मूंग की
खेती उनके लिए एक सुनहरा अवसर बन सकती है।
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