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धमनार (मध्यप्रदेश)। मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले के धमनार गांव से एक किसान ने अपनी मेहनत और लगन से ऐसा कारनामा कर दिखाया है, जो न सिर्फ इलाके के बल्कि पूरे प्रदेश के किसानों के लिए एक नई राह खोल सकता है। किसान बद्रीलाल धाकड़ ने चार साल की मेहनत और कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन से लहसुन की एक उन्नत किस्म विकसित की है, जिसका नाम उन्होंने 'धमनार क्रांति' रखा है।
यह किस्म लहसुन की पारंपरिक किस्मों की तुलना में कई गुना
अधिक टिकाऊ, उत्पादनशील
और रोग प्रतिरोधक है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह 12 से 18 महीने तक खराब
नहीं होती, साथ ही
इसमें फंगस या कीटों का हमला भी नहीं होता। यही नहीं, इसकी स्टोरेज
क्षमता इतनी बेहतर है कि किसान इसे लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं और बाजार में
अच्छे दाम मिलने पर बेच सकते हैं।
हिमाचली वैरायटी से
हुआ क्रॉस बीज का विकास
बद्रीलाल धाकड़ ने बताया कि उन्होंने हिमाचल प्रदेश की एक
लहसुन किस्म को आधार बनाकर इसे स्थानीय मिट्टी के अनुसार विकसित किया है। यह नई
किस्म खासकर मालवा क्षेत्र की मिट्टी के लिए उपयुक्त है। आमतौर पर किसान हर साल नए
बीज खरीदने को मजबूर होते हैं,
लेकिन ‘धमनार क्रांति’ से तैयार बीज को किसान अपने ही खेत से दोबारा प्रयोग
में ला सकते हैं।
मल्चिंग तकनीक से बढ़ा
उत्पादन, बीमारियों
पर लगाम
बद्रीलाल धाकड़ ने इस किस्म को मल्चिंग तकनीक से तैयार किया
है, जिसमें
प्लास्टिक शीट के जरिए नमी बनाए रखी जाती है,
जिससे कम पानी में बेहतर पैदावार संभव होती है। साथ ही, काली मस्सी और
थ्रिप्स जैसे रोग भी इस तकनीक में नहीं लगते। खरपतवार और छोटे जानवरों से भी फसल
सुरक्षित रहती है।
उत्पादन और खर्च का
संतुलन
किसान का कहना है कि इस किस्म की अवधि लगभग 165 से 175 दिन होती है।
एक बीघा में खर्च लगभग ₹50,000 से ₹60,000 तक आता है, लेकिन उत्पादन 20 से 30 क्विंटल प्रति
बीघा तक संभव है, जो
परंपरागत किस्मों से कहीं अधिक है। इसके गांठें 50 से 75 ग्राम
तक की होती हैं और इसके 10-12
पर्दें होते हैं।, जो वजन
और सफेदी में भी बेहतर हैं।
वैज्ञानिकों और
प्रशासन ने की सराहना
इस नवाचार की जानकारी मिलने पर कृषि वैज्ञानिकों व कलेक्टर
अदिति गर्ग ने भी किसान के इस परिश्रम को सराहा है। और विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ
वैज्ञानिक डॉ. जी.एस. चुण्डावत ने खुद किसान के खेत का दौरा किया और फसल को देखकर
तारीफ की। फसल में से अच्छे-अच्छे लहसुन को चुनकर बीज तैयार किया जाता है। बीज
अच्छा है।वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर यह किस्म और बड़े स्तर पर अपनाई गई, तो यह पूरे
क्षेत्र के किसानों के लिए बीज संकट का समाधान बन सकती है।
सरकारी योजनाओं से
जुड़ने की सलाह
किसानों को इस तकनीक को अपनाने के लिए सरकार की अनुदान योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए। ड्रिप इरिगेशन, मल्चिंग शीट और पाइपलाइन जैसी सुविधाओं पर सरकारी सब्सिडी उपलब्ध है, जिसके लिए किसान ऑनलाइन पंजीकरण कर सकते हैं।
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