गर्मियों में बेल वाली सब्जियों की खेती बन सकती है आमदनी का जरिया, जानें कैसे करें सही तैयारी

गर्मियों में बेल वाली सब्जियों की खेती बन सकती है आमदनी का जरिया, जानें कैसे करें सही तैयारी
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Kisaan Helpline

Crops Apr 08, 2025

गर्मी का मौसम ग्रामीण इलाकों में खेती करने वाले किसानों के लिए सुनहरा मौका बन सकता है। अगर इस समय सही तकनीक से खीरा, करेला, लौकी, तुरई जैसी बेल वाली सब्जियों की खेती की जाए तो कम लागत में अधिक उत्पादन और बेहतर मुनाफा संभव है।

 

अच्छी मिट्टी का चयन करें

 

खेती की शुरुआत सबसे पहले मिट्टी से होती है और अगर बेल वाली या कद्दूवर्गीय सब्जियों की बात करें तो इसके लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी मिट्टी जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो और जिसमें पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक पदार्थ भी हों, ऐसी फसलों के लिए फायदेमंद होती है।

 

बुवाई से पहले तैयारी जरूरी

 

खेती की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि बुवाई से पहले खेत को कितनी अच्छी तरह से तैयार किया गया है। सबसे पहले खेत को गहरी जुताई करके भुरभुरा बना लें और उसमें अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालें। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पौधों को बेहतर पोषण मिलता है। ध्यान रखें कि मिट्टी का पीएच लेवल 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

 

बुवाई का सही समय और बीज दर

 

गर्मी की फसलों की बुआई का सही समय फरवरी से मार्च के बीच है। अलग-अलग सब्जियों के लिए बीज की मात्रा भी अलग-अलग होती है:

 

·         खीरा – 2 से 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

·         लौकी – 4 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

·         करेला – 5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

·         तोरई – 4.5 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

·         कद्दू – 3 से 4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

 

बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशक से उपचारित करना न भूलें। इससे बीज जनित बीमारियों से बचाव होता है।

 

सिंचाई और उर्वरकों का सही उपयोग

 

फसल की वृद्धि के लिए नियमित सिंचाई आवश्यक है, खासकर जब पौधे छोटे हों। लेकिन अधिक पानी देना हानिकारक हो सकता है, इसलिए संतुलित मात्रा में सिंचाई करें। साथ ही, रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करने से पहले मिट्टी की जांच करवा लें ताकि पोषक तत्व आवश्यकता के अनुसार दिए जा सकें।

 

कीट एवं रोग नियंत्रण के उपाय

 

खीरा, लौकी, करेला जैसी फसलों में फल मक्खी, एफिड्स, लीफ माइनर जैसे कीटों का प्रकोप आम है। इनके अलावा फसल वायरस और फंगल रोगों से भी प्रभावित हो सकती है। इसके लिए किसानों को समय-समय पर जैविक या रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए। खेत की सफाई और खरपतवार निकालना भी रोग और कीट नियंत्रण में महत्वपूर्ण है।

 

अगेती फसल के लिए पॉली हाउस का उपयोग

 

अगर किसान पॉलीहाउस या शेडनेट जैसी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करें तो वे न सिर्फ गर्मियों में बल्कि दूसरे मौसम में भी इन फसलों की खेती कर सकते हैं। इससे अगेती फसल ली जा सकती है, जिसकी बाजार में कीमत ज्यादा मिलती है।

 

उन्नत किस्में अपनाएं

 

अधिक पैदावार और बेहतर गुणवत्ता के लिए किसानों को फसलों की उन्नत किस्में अपनानी चाहिए, जो स्थानीय जलवायु के हिसाब से उपयुक्त हों। कृषि विज्ञान केंद्रों या विश्वसनीय बीज एजेंसियों से प्रमाणित बीज लेना हमेशा फायदेमंद होता है।

 

अगर किसान थोड़ी सावधानी और वैज्ञानिक तरीके अपनाएं तो गर्मियों में लता वाली सब्जियों की खेती बेहतर विकल्प हो सकती है। सही मिट्टी, समय पर बुवाई, संतुलित उर्वरक, नियमित सिंचाई और कीट प्रबंधन से किसान न केवल अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि बाजार में अच्छे दाम भी पा सकते हैं।

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