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अप्रैल महीना आते ही गेहूं और अन्य रबी फसलों की कटाई पूरी हो जाती है। ऐसे में देशभर के लाखों खेत खाली पड़े रह जाते हैं, जिनका उपयोग किसान बेहतर तरीके से कर सकते हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, कटाई के बाद खेत को खाली छोड़ने की बजाय उसमें हरी खाद की फसलें लगाना, एक लाभकारी विकल्प है। इससे ना केवल खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ती है, बल्कि खरीफ फसलों की उपज में भी सुधार होता है।
हरी खाद का क्या मतलब
है?
हरी खाद वह तकनीक है जिसमें खेत में विशेष प्रकार की फसलें
बोई जाती हैं, जो
मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन और पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाने में मदद करती हैं। ये
फसलें 40–45 दिन
में तैयार हो जाती हैं और फिर इन्हें खेत में जोत कर मिट्टी में मिला दिया जाता है, जिससे यह सड़कर
प्राकृतिक खाद में बदल जाती हैं।
किन फसलों की करें
बुवाई?
किसान ढैंचा,
उड़द, मूंग
और लोबिया जैसी फसलों को हरी खाद के रूप में उपयोग कर सकते हैं। इनमें सबसे प्रमुख
फसल ढैंचा मानी जाती है,
जो मात्र 45 दिन
में तैयार हो जाती है और मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाने में भी मदद
करती है।
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ढैंचा के लिए प्रति एकड़ 20–25 किलो बीज की आवश्यकता होती है।
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उड़द,
मूंग और लोबिया के लिए 8–10 किलो
बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होता है।
कैसे करें खेत की
तैयारी?
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सबसे पहले खेत में पानी भरें ताकि पर्याप्त नमी बन सके।
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फिर डिस्क हैरो से खेत को जोतकर भुरभुरा कर लें।
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बीज बुवाई के बाद खेत को समतल कर दें और 15–20 दिन बाद
सिंचाई करें।
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जब फसल तैयार हो जाए तो उसे जोतकर मिट्टी में मिला दें और
दोबारा पानी भरें।
यदि आप उड़द,
मूंग या लोबिया जैसी फसलों को हरी खाद के तौर पर बोते हैं, तो उनके फलियों
को तोड़कर बाकी पौधों को खेत में मिला दें। यह पौधे कुछ ही दिनों में सड़कर उपजाऊ
खाद में बदल जाएंगे।
क्यों है यह तरीका खास?
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मिट्टी में जैविक तत्वों की वृद्धि
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pH
स्तर में सुधार
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नाइट्रोजन की बचत
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अगली फसल के लिए बेहतर पैदावार
कुल मिलाकर,
हरी खाद एक ऐसी पारंपरिक और प्राकृतिक तकनीक है, जिसे अपनाकर किसान अपने खेतों की ताकत को दोगुना कर सकते
हैं — बिना किसी रासायनिक खाद पर निर्भर हुए।
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