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भारत के किसान आज परंपरागत खेती से हटकर अब नकदी फसलों की ओर तेजी
से रुख कर रहे हैं। इसमें सबसे आकर्षक विकल्प बनकर उभर रही है — गेंदे की खेती। यह
सिर्फ एक सजावटी फूल नहीं,
बल्कि किसानों के लिए मुनाफे की एक सुनहरी फसल बनती जा रही है। खासकर
शादी-ब्याह, त्योहारों
और धार्मिक आयोजनों में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। गेंदे की खेती न सिर्फ कम
लागत में शुरू की जा सकती है,
बल्कि यह सीमित भूमि पर भी अधिक मुनाफा देने वाली फसल है।
गेंदे की खेती क्यों
है फायदेमंद?
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कम लागत,
कम बीज में अधिक उत्पादन
·
शादी-विवाह,
त्योहारों में निरंतर मांग
·
सजावटी के साथ-साथ औषधीय उपयोग
·
कम पानी में उगने वाली फसल
·
राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी और सहायता
·
सीमित भूमि में अधिक कमाई का साधन
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के
वैज्ञानिकों ने गेंदे की दो उन्नत किस्में विकसित की हैं — ‘अर्काभानु’ और ‘पूसा
बहार’। इन किस्मों की खासियत यह है कि इनमें कम बीज मात्रा में भी अधिक उत्पादन
होता है, फूलों
की गुणवत्ता बेहतर होती है और बाजार में इनकी मांग अधिक रहती है।
बीज की मात्रा और
रोपाई की तकनीक
विशेषज्ञों के अनुसार,
प्रति एकड़ खेत के लिए मात्र 400 से 600 ग्राम बीज की
आवश्यकता होती है।
उन्नत तकनीकों में बीज उपचार, पौध रोपण की उचित दूरी, संतुलित खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग और सिंचाई प्रबंधन
शामिल है। बीज बोने से पहले 2.5 ग्राम
कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार करना चाहिए, जिससे फसल
रोगमुक्त रहे।
पौधों को 30
सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए ताकि प्रत्येक पौधे को पर्याप्त जगह मिले और वे
अच्छी बढ़वार करें।
इसके अलावा बीज को 2.5 ग्राम
कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित किया जाना चाहिए. इसके बाद पौधों
को 30
सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए ताकि उचित बढ़वार हो सके. गेंदे की खेती में
सिंचाई प्रबंधन भी बहुत जरूरी है.
फ्लडिगेशन तकनीक से 0-20 दिन
के भीतर संतुलित पोषक तत्व देने से फूलों की बढ़ोतरी होती है। 41-70 दिन की अवधि
में 3.5 किलो
नाइट्रोजन, 7.5 किलो
फास्फोरस, और 2.5 किलो पोटाश
प्रति एकड़ देना लाभकारी होता है।
फसल का उपयोग और बाजार
में मांग
·
गेंदे के फूलों का उपयोग निम्नलिखित कार्यों में होता है:
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शादी-ब्याह में सजावट
·
धार्मिक पूजा-पाठ
·
मंदिरों और आयोजनों में सजावट
·
होटलों,
रिसॉर्ट्स में फ्लोरल डेकोरेशन
·
आयुर्वेदिक उत्पादों में उपयोग
इन सभी क्षेत्रों में गेंदे की निरंतर मांग बनी रहती है।
खासकर त्योहारों के सीज़न में इसकी कीमतें दोगुनी-तिगुनी तक हो जाती हैं, जिससे किसानों
को अच्छा मुनाफा होता है।
बाजार और बिक्री के
अवसर
गेंदे की खेती से किसान स्थानीय बाजारों, मंडियों, फूलों के
व्यापारियों, इवेंट
डेकोरेटर, होटल
और रिसॉर्ट सेक्टर तक फूलों की आपूर्ति कर सकते हैं। इसके अलावा, बड़े शहरों की
फूल मंडियों जैसे दिल्ली,
मुंबई, नागपुर, लखनऊ आदि में
गेंदे की अधिक मांग होती है।
अगर किसान फूलों की ग्रेडिंग, पैकिंग और समय पर मार्केटिंग करें तो वे फूलों को 3 से 6 गुना अधिक
कीमत पर बेच सकते हैं।
राज्य सरकार की
योजनाएं और सब्सिडी
कई राज्य सरकारें बागवानी फसलों को बढ़ावा देने के लिए
‘राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM)’
के अंतर्गत सब्सिडी देती हैं। इसमें किसान को बीज, खाद, सिंचाई उपकरण
और विपणन व्यवस्था पर 30% से 50% तक अनुदान
प्राप्त हो सकता है।
योजनाओं के लाभ:
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टपक सिंचाई पर सब्सिडी
·
बीज एवं पौध सामग्री पर छूट
·
प्रशिक्षण और कृषि मेले
·
विपणन सहायता एवं कस्टम हायरिंग सेंटर
कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और बागवानी विभाग से संपर्क कर किसान इन योजनाओं का लाभ उठा
सकते हैं।
गेंदे की खेती: शुरू
कैसे करें?
1.
भूमि का चयन: दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी
अच्छी हो।
2.
बीज चयन: उन्नत किस्में जैसे पूसा बहार या अर्काभानु।
3.
बीज उपचार: कार्बेन्डाजिम से करें।
4.
पौध रोपण: 30x30 सेमी की दूरी रखें।
5.
सिंचाई प्रबंधन: हर 7-10 दिन पर
सिंचाई।
6.
खाद प्रबंधन: वैज्ञानिक तरीके से संतुलित
उर्वरक का उपयोग।
7.
निराई-गुड़ाई: समय-समय पर करें।
8.
फूल तुड़ाई: सुबह के समय करें, ताकि ताजगी बनी
रहे।
9.
पैकिंग और मार्केटिंग: फूलों की
ग्रेडिंग करके स्थानीय बाजारों में भेजें।
10. सरकारी
सहायता: NHM,
बागवानी मिशन की वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करें।
गेंदे की खेती एक ऐसा विकल्प है जो न सिर्फ किसानों की
आमदनी को बढ़ा सकता है बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर भी बना सकता है। यदि किसान
वैज्ञानिक तकनीकों, नई
किस्मों और सरकारी योजनाओं का समुचित लाभ उठाएं, तो गेंदे की खेती उनके जीवन में नई खुशबू भर सकती है।
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