सीताफल (शरीफा) अत्यंत पौष्टिक एवं स्वादिष्ट फल है। इसे गरीबों का फल कहा जाता है। इसका उत्पत्ति स्थल उष्ण अमेरिका माना जाता है। अमेरिका में इसका नामकरण इसके स्वाद के अनुरूप शुगर एप्पल किया गया है। यह फल मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश व असोम राज्यों के जंगलों में मिल जाता है। भारत में इसकी खेती कम पैमाने पर हो रही है। देश में शरीफा की खेती को बहुत अच्छी संभावनायें हैं।
सीताफल का वानस्पतिक नाम अन्नोना श स्क्वामोसा है। इसमे उच्च कैलोरी के साथ, प्राकृतिक शर्करा, आयरन और विटामिन सी भरपूर मात्रा में होते हैं। इसका गूदा सफेद रंग का और मलाईदार होता है। इसे मिल्कशेक और आइसक्रीम बनाने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके बीज, पत्ते, छाल सभी औषधि के रूप में उपयोग किये जाते है। इसकी पत्तियाँ गहरी हरे रंग की होती हैं। इसमें एक विशेष महक होने की वजह से पशु इसे नहीं खाते हैं। इसकी पत्तियाँ हृदय रोग में टॉनिक का कार्य करती हैं क्योंकि इसकी पत्तियों में टेट्राहाइड्रो आइसोक्विनोसीन अल्कलायड पाया जाता है। इसकी जड़ें तीव्र दस्त के उपचार में लाभकारी होती हैं। शरीफे के बीजों से निकालकर सुखाई हुई गिरी में 30 प्रतिशत तेल पाया जाता है। इससे साबुन तथा पेन्ट बनाया जाता है।
जलवायु
सीताफल के पौधे के लिए वैसे तो किसी विशेष जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी अच्छे उत्पादन के लिए गर्म और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र जहाँ पाला नहीं पड़ता है, अधिक उपयुक्त होते है। ज्यादा ठंड और पाला पड़ने से इसके फल सख्त हो जाते हैं और वो पक नही पाते हैं।
भूमि
सीताफल के पौधे लगभग सभी प्रकार की भूमि, रेतीली मिट्टी, कमजोर एवं पथरीली जमीन और ढालू जमीन में पनप जाते हैं परन्तु अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी इसकी बढ़वार एवं पैदावार के लिये उपयुक्त होती है। कमजोर एवं पथरीली भूमि में भी इसकी अच्छी पैदावार होती है। इसका पौधा भूमि में 50 प्रतिशत तक चूने की मात्रा सह लेता है। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 5.5 से 6.5 के बीच अच्छा माना जाता है। लेकिन 7-9 पी.एच. मान वाली भूमि पर भी उत्पादन लिया जा सकता है।
संवर्धन या प्रसारण
शरीफे को मुख्य रूप से बीज द्वारा ही प्रसारित किया जाता है। किन्तु अच्छी किस्मों की शुद्धता बनाये रखने, तेजी से विकास एवं शीघ्र फसल लेने के लिये वानस्पतिक विधि द्वारा पौधा तैयार करना चाहिए। शील्ड बडिंग में जनवरी से जून तथा सितम्बर-अक्टूबर के महीने में अच्छी सफलता प्राप्त होती है।
पौधे की रोपाई
सीताफल के पौधे के लिये गर्मी के दिनों में 60 x 60 x 60 सें.मी. आकार के गड्ढे 5 x 5 मी. की दूरी पर तैयार किये जाते हैं। इन गड्ढों को 15 दिन खुला रखने के बाद ऊपरी मृदा में 5-10 कि.ग्रा. गोबर की सड़ी खाद, 500 ग्राम करंज की खली तथा 50 ग्राम एन.पी.के. मिश्रण को अच्छी तरह मिलाकर भर देना चाहिये। सीताफल लगाने के लिये जुलाई का महीना उपयुक्त रहता है। सीताफल का बीज जमने में काफी समय लगता है। अत: बोने से पहले बीजों को 3-4 दिनों तक पानी में भिगा देने पर जल्दी अंकुरण हो जाता है। इसको लगाने के लिये पॉलीथीन की थैलियों में मिट्टी भरकर बीज लगायें और जब पौधे तैयार हो जायें तब पिंडी सहित तैयार गड्ढे में लगा दें। इसके बाद गड्ढे को अच्छी तरह दबा दें और उसके चारों तरफ थाला बनाकर पानी दें। यदि वर्षा न हो रही हो तो पौधे की 3-4 दिनों पर सिंचाई करने से पौध स्थापना अच्छी होती है। एक हैक्टर में अनुमानित 400 पौधे तक लग सकते हैं।
खाद एवं उर्वरक
सीताफल के पौधों को खाद उर्वरक की बहुत कम आवश्यकता होती है। अच्छी पैदावार के लिए सड़ी हुई गोबर की खाद और 200 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फॉस्फोरस एवं 500 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की आवश्यकता होती है। खाद की यह मात्रा तीन बार बराबर मात्रा में मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त और अक्टूबर महीनों में देनी चाहिए। पौधों की कांट-छांट सीताफल के नये पौधों में 3 वर्ष तक उचित ढाँचा देने के लिये कांट-छांट करनी चाहिये। कांट-छांट करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि तने पर 50-60 सें.मी. ऊँचाई तक किसी भी शाखा को नहीं निकलने दें। उसके ऊपर 3-4 अच्छी शाखाओं को चारों तरफ बढ़ने देना चाहिये जिससे पौधा का अच्छा ढांचा तैयार होता है।
पुष्पण एवं फलन
सीताफल में पुष्पण काफी लम्बे समय तक चलता है। उत्तर भारत में मार्च से ही फूल निकलना प्रारंभ हो जाता है और जुलाई तक आता है। पुष्पण के बाद फल पकने तक लगभग 4 महीने का समय लगता है। पके फल सितम्बर-अक्टूबर से मिलना शुरू हो जाते हैं।
सीताफल की तुड़ाई
सीताफल की तुड़ाई फलों पर दो उभारों के बीच रिक्त स्थान बढ़ जाने तथा रंग परिवर्तित होने पर फल पकने की अवस्था में करनी चाहिए। अपरिपक्व फल नहीं तोड़ने चाहिये क्योंकि ये फल ठीक से पकते नहीं। और उनसे मिठास की मात्रा भी कम हो जाती है। पौधा लगाने के तीसरे वर्ष से यह फल देना प्रारंभ कर देता है। एक स्वस्थ 4-5 वर्ष पुराने सीताफल के पेड़ से औसत 50-60 फल मिल जाते हैं। सामान्य रूप से पेड़ से फलों को तोड़ने के 6-9 दिनों में पक जाते हैं। इन्हें कृत्रिम रूप से भी पकाया जा सकता है।
हानिकारक रोग और कीट
इस पर किसी भी प्रकार के रोग नही आते हैं। लेकिन कभी-कभी पत्तियों को नुकसान पहुँचाने वाले कीट और बग आ जाएं तो दवाई का स्प्रे कर उन्हें नष्ट कर दें। प्रारम्भिक प्रकोप होने पर प्रोफेनाफास-50 या डायमिथोएट-30 की 2 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
उपज एवं लाभ
सीताफल के पौधों में शुरुआत में 50-60 के आसपास फल आते हैं जो समय के साथ बढ़कर 100 तक हो जाते हैं। एक एकड़ में इसके 500 के करीब पौधे लगाए जा सकते हैं, जिनसे सीताफल की सालाना 30-35 क्विंटल के आसपास पैदावार हो जाती है। सामान्यतः बाजार भाव 40 रुपये के आसपास पाया जाता है। एक साल में एक एकड़ से एक लाख से 1.5 लाख तक की कमाई आसानी से हो जाती है। इसके पेड़ को पूर्ण रूप से विकसित होने में 4 से 5 साल का समय लगता है। इस अवधि के बीच खाली जगह में कुछ सब्जी फसल, मूली, गाजर, धनिया इत्यादि लगाकर भी अच्छी-खासी अतिरिक्त कमाई की जा सकती है।