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भारत में गेहूं उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा सिंचित क्षेत्रों में किया जाता है, लेकिन गलत समय पर की गई सिंचाई उपज को प्रभावित कर सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, गेहूं की फसल के लिए उचित समय पर सिंचाई करना और सही विधि अपनाना आवश्यक है, जिससे पैदावार में बढ़ोतरी हो सकती है।
सिंचाई का सही समय न केवल मिट्टी की नमी बनाए रखता है, बल्कि पौधों को पोषक तत्वों का अवशोषण करने में भी मदद करता है। इसके अलावा, जल प्रबंधन से फसल को पाले और सूखे जैसी समस्याओं से भी बचाया जा सकता है।
गेहूं की फसल को औसतन 4-6 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है, लेकिन मिट्टी के प्रकार और जलवायु के अनुसार इसमें अंतर हो सकता है। रेतीली मिट्टी में 6-8 बार सिंचाई की जरूरत होती है, जबकि भारी मिट्टी में 3-4 सिंचाई ही पर्याप्त होती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, गेहूं की सिंचाई मुख्य रूप से इन अवस्थाओं पर करनी चाहिए:
मुख्य जड़ बनने का समय (20-25 दिन)
कल्लों के विकास का समय (40-45 दिन)
तने में गाँठ पड़ने का समय (65-70 दिन)
फूल आने का समय (90-95 दिन)
दानों में दूध बनने का समय (105-110 दिन)
दाना सख्त होने का समय (120-125 दिन)
1. क्यारियों में सिंचाई: इस विधि में खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांटा जाता है, जिससे पानी समान रूप से सभी पौधों तक पहुँच सके।
2. नकवार सिंचाई: यह विधि समतल भूमि के लिए उपयुक्त है, जहाँ पानी को लंबी और संकरी पट्टियों में बहाया जाता है। इससे जल संरक्षण में भी मदद मिलती है।
जरूरत से ज्यादा सिंचाई करने से मिट्टी में पोषक तत्व गहराई में चले जाते हैं, जिससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है।
जरूरत से कम पानी देने पर पौधों की जड़ें कमजोर हो सकती हैं, जिससे उत्पादन में कमी आ सकती है।
किसानों को मिट्टी की नमी जांचने के लिए आधुनिक उपकरणों का उपयोग करना चाहिए, ताकि सही समय पर सिंचाई की जा सके।
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