Kangni Ki Kheti: कंगनी (Foxtail Millet) मोटे अनाज (Millets Crops) में दूसरी सबसे अधिक बोई जाने वाली फसल है। यह एकवर्षीय घास है जिसका पौधा 4-7 फीट ऊँचा होता है, बीज बहुत महीन लगभग 2 मिलीमीटर के होते हैं, इनका रंग किस्म किस्म में भिन्न होता है, जिनपे पतला छिलका होता है जो आसानी से उतर जाता है। भारत में, यह मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कुछ हद तक भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में उगाया जाता है। कंगनी (Foxtail Millet) से रोटियां, खीर, भात, इडली, दलिया, मिठाई बिस्किट आदि बनाये जाते हैं।
कंगनी की खेती के लिए बीज की मात्रा
पनीरी द्वारा बुवाई के लिए 800 ग्राम प्रति एकड़ और सीधी बिजाई के लिए 2.5 से 3 किग्रा प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है।
बुवाई का अनुकूल समय
कंगनी की बिजाई अप्रैल से जुलाई के बीच कभी भी की जा सकती है। कंगनी की फसल का कद 2.5 से 3 फुट तक हो जाता है और ये पकने के लिए 80 से 100 दिन का समय लेती है। कंगनी के दाने का उत्पादन 6-7 क्वांटिल प्रति एकड होता है और 8-16 क्वांटिन चारा मिलता है। कंगनी का बीज बिजाई से पहले 12 घंटे के लिए पानी और कच्चे दूध के मिश्रण में भिगो कर रखें। 1 लीटर पानी में देसी गाय के एक गिलास ताजा दूध (बिना उबला हुआ) मिलाएं और इसमें और कंगनी का बीज भिगो कर रखें 10-12 घंटे भिगोने के बाद बीज के ऊपर छानी हुई राख लगाकर उसको सुखा लो और फिर बिजाई करो।
पनीरी की बुवाई करने का तरीका
एक एकड़ की पनीरी एक मरला (16.5x16.5 फुट) जगह में बीजें। जमीन की जुताई करके सुहागा लगाकर समतल कर लें। जमीन ऊँची नीची न हो। अब इसमें 800 ग्राम बीज का दो बार छीटा दें। और तांगली या पंजे के साथ बीज को ऊपर की मिट्टी में मिला दें। अगर संभव हो तो क्यारी की भूसे पराली के साथ मल्चिंग कर दे और पानी लगा दे। 3-4 दिन बाद जब बीज हरा हो जाए तो शाम के समय भूसे पराली की तह हटा दो। 20-25 दिनों में पनीरी खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाती है।
पनीरी को 3 तरीकों से खेत में लगाया जा सकता है
- पलेवा करने के बाद जब जमीन बत्तर आ जाए तो हल चलाकर, सुहागा लगाकर जमीन को समतल कर लें। अब 1-1 कनाल की क्यारी बना कर खेत में पानी भर दें। जब खेत पानी सोख लें तब उसमें कंगनी की पनीरी शाम के समय लाइनों में लगाए। लाइन से लाइन की दूरी डेढ़ फुट और पौधे से पौधे की दूरी 1 फुट रखें।
- रिजर (आलू वाले हल) के साथ खेत में मेड तैयार कर लें। अब खालियों को पानी से भर दें। जब मेड़ों नमी/ सिलाब चढ़ जाए तब 11 फुट की दूरी पर मेड़ो पर पौधे लगाएं। (एक खाली बंद करके भी पानी लगाया जा पर अच्छी तरह से सकता है)।
- बैड मेकर के साथ 2 फुट चौड़ाई वाले बैड तैयार करो। खालियों में पानी लगाओ और शाम के समय पनीरी को 1-1 फुट की दूरी पर खाली के किनारे से 6 इंच बैड के अंदर की तरफ लगाएं। अगर संभव हो तो बैड के ऊपर सुखा भूसे पराली के साथ मल्चिंग करें।
सीधी बिजाई के माध्यम से कंगनी की काश्त
ढाई से तीन किलो बीज को 12 घंटे दूध और पानी के घोल में भिगो कर राख में अच्छी तरह से मिलाकर सुखाने के बाद अच्छी तरह से सिंचित नमी पूर्ण जमीन में हैपी सीडर या सीड ड्रिल के साथ बिजाई की जा सकती है। लाइन से लाइन की दूरी डेढ़ से दो फुट रखो। पौधे से पौधा 10 सेंटी मीटर और बीज की गहराई 2-3 सेंटी मीटर रखो।
खरपतवार नियंत्रण
कंगनी में से खरपतवार खत्म करने के लिए त्रिपाली, कसिये या खुरपी के इस्तेमाल से कम से कम गुड़ाई करनी जरूरी है।
सिंचाई
मूल अनाजों की काश्त के लिए कोशिश करो की इन्हें कम से कम पानी लगाकर पकाया जाए। बारिश के मौसम को ध्यान में रखकर और मिट्टी की नमी को देखकर इन्हें 1 से 2 सिंचाई की ही जरूरत होती है। सिंचाई करते समय खेत में 200 लीटर प्रति एकड़ गुड़ जल अमृत या वेस्ट डीकॉम्पोसर का पोल छोड़े।
कीट और रोग प्रबंधन
कंगनी की आम तौर पर कोई कीट और रोग नही लगता। जितना कम सिंचाई के पानी का उपयोग होगा उतने ही कीट या रोग आने की संभावना भी कम हो जाती है और पौधे की जड़े भी उतनी ही मजबूत होती है और फसल गिरती नहीं। कम पानी लगाने से दाना अच्छा पहना है और उसका वजन भी बढ़ता है। छिलका पतता रहता है जिससे प्रति क्वाटिल दाने का भार ज्यादा और छिलके का वजन कम रहता है।
फसल की कटाई
जब कंगनी की बालिया हरे रंग से पह कर पीले भूरे रंग की हो जाए तब फसल काटने के लिए तैयार हो जाती है। कंगनी के पौधे से केवल बालियां या पकने के बाद पूरा पौधा भी जमीन से काटा जा सकता है। दानों को थ्रैशर की मदद से नाड़ से अलग किया जा सकता है। कंगनी की फसल को पकले के समय छोटी लाल-भूरे रंग की चिड़ियाँ उसके दाने बती है अतः रखवाली की भी जरूरत पड़ सकती है।
फसल चक्र
सरसों-साठी मूगी-कंगनी, साठी मूंगी-कंगनी हरे छोले, सरसों-कंगनी -सावन की मूंगी, साठी मूंगी-कंगनी-मो कंगनी मक्की (Relay Crop) (बीच में बिजाई)
कंगनी की फसल 100 दिन में पक्क जाती है। इसलिए बिजाई के समय इस बात का ध्यान रखिये कि अगर बुवाई अप्रैल में कर रहे हैं तो कंगनी को ज्यादा पानी लगाने की जरूरत पड़ सकती है और खरपतवार की समस्या भी बढ़ सकती है और ये फसल जुलाई में पकेगी। अगर बिजाई मई में करते हैं तो ये अगस्त में पकेगी। इस बात का भी ध्यान रखना चहिए कि फसल पकने के समय बारिश ना शुरू हो जाएँ और अगली फसल कौनसी है जिसकी बिजाई है उस अनुसार ही कंगनी की बिजाई का समय निर्धारित करें।