Lauki Ki Kheti : लौकी की फसल के लिए लंबे गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। इसलिए लौकी के अच्छे उत्पादन के लिए गर्म और आर्द्र भौगोलिक क्षेत्र अच्छे माने जाते हैं। बीज के अंकुरण के लिए 30-35 डिग्री सेल्सियस और पौधों की वृद्धि के लिए 32-38 डिग्री सेल्सियस इष्टतम है। अधिक वर्षा और खराब मौसम दोनों ही कीटों और बीमारियों को बढ़ावा देते हैं।
भूमि की तैयारी
लौकी की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए रेतीली दोमट मिट्टी, जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अच्छी हो तथा जल निकासी का समुचित प्रबंध हो, उपयुक्त मानी जाती है। इसकी खेती नदियों के किनारे भी की जाती है। जिस मिट्टी का पी-एच मान 6 से 7 होता है, वह मिट्टी अच्छी मानी जाती है। खेत की तैयारी में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हैरो से और बाद में 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें। जुताई के बाद मिट्टी को भुरभुरा कर खेत को बांधकर समतल कर लेना चाहिए। बीज बोने के 25-30 दिन पहले 250-300 क्विंटल अच्छी सड़ी गोबर की खाद खेत में मिला दें।
बीज की मात्रा
एक हेक्टेयर में लौकी की बुआई के लिए 2-3 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है, लेकिन पॉलीथीन बैग या प्रो-ट्रे में नर्सरी उगाने के लिए 1 किग्रा. बीजों की आवश्यकता होती है।
बुवाई का समय
ग्रीष्म ऋतु की फसल की बुआई फरवरी से मार्च तक तथा वर्षा ऋतु की फसल की बुआई जून से जुलाई तक की जाती है।
खाद और उर्वरक
लौकी की फसल की अच्छी उपज लेने के लिए बुवाई से पहले मिट्टी की जांच करा लें। इससे पता चलेगा कि मिट्टी में किन पोषक तत्वों की कमी है और उसके आधार पर पोषक तत्वों का उपयोग करें। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए बुआई के 25-30 दिन पूर्व 250-300 क्विंटल गोबर की खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। इसके अलावा 60 किग्रा. नाइट्रोजन, 80 किग्रा फास्फोरस, 80 किग्रा पोटाश व 25 किग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। खेत की तैयारी के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा के अलावा फास्फोरस, पोटाश और जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा मिला देनी चाहिए। शेष नाइट्रोजन को दो भागों में देना चाहिए, एक बार पत्ती बनने की अवस्था में और दूसरी बार पौधों में फल बनने से पहले।
बुवाई की विधि
गर्मी के मौसम में लौकी की बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 2 मीटर 50 सेमी. चौड़ा और 25 सेमी. गहरी नाली बना लें। नालियों के दोनों किनारों पर 60 सें.मी. की दूरी पर बीज की बुआई करते हैं। वर्षा के मौसम में पंक्ति से पंक्ति की 3.5 से 4 मीटर की दूरी पर 50 सें.मी. चौड़ी व 30 सें.मी., गहरी नाली बनाते हैं। दोनों किनारों पर 75 सें.मी. की दूरी पर बीज की बुआई करते हैं। एक स्थान पर 2-3 बीजों की 5 सें.मी.. की गहराई पर बुआई करनी चाहिए।
सिंचाई और जल निकासी
गर्मी में 5-6 दिन बाद सिंचाई करनी चाहिए, जबकि खरीफ मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। वर्षा के अभाव में 10-12 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। अधिक वर्षा होने पर खेत में जल-निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
बिजाई के लगभग 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करके खरपतवार निकाल देना चाहिए। इससे पौधों की बेहतर वृद्धि और विकास होगा और बेहतर उपज मिलेगी। लौकी की फसल के लिए 2-3 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। रासायनिक खरपरवारनाशी पेंडामेथलीन का 2 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से बुआई के तुरन्त बाद छिड़काव करना चाहिए।
उपज
लौकी के फलों की तुड़ाई नर्म अवस्था में करनी चाहिए। इसकी उपज 300-450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।