खीरे का मूल स्थान भारत है| यह एक बेल की तरह लटकने वाला पौधा है जिसका प्रयोग सारे भारत में गर्मियों में सब्ज़ी के रूप में किया जाता हैं| खीरे के फल को कच्चा, सलाद या सब्जियों के रूप में प्रयोग किया जाता है| खीरे के बीजों का प्रयोग तेल निकालने के लिए किया जाता है जो शरीर और दिमाग के लिए बहुत बढ़िया है| खीरे में 96% पानी होता हैं, जो गर्मी के मौसम में अच्छा होता है| इस पौधे का आकार बड़ा, पत्ते बालों वाले और त्रिकोणीय आकार के होते है और इसके फूल पीले रंग के होते हैं| खीरा एम बी (मोलिब्डेनम) और विटामिन का अच्छा स्त्रोत है| खीरे का प्रयोग त्वचा, किडनी और दिल की समस्याओं के इलाज और अल्कालाइज़र के रूप में किया जाता है।
जायद सीजन (फरवरी-मार्च माह) में खीरे की खेती का एक मुख्य स्थान है। इसके साथ ही कद्दूवर्गीय सब्जियों में भी खीरा को सबसे महत्वपूर्ण फसल माना गया है। देशभर में इसकी खेती की जाती है। इसका उपयोग मुख्य रूप से सलाद के तौर पर किया जाता है। जायद सीजन में मुख्य रूप से सब्जियों की खेती होती है, जैसे- भिंडी, टमाटर, कद्दू, बैंगन, खीरा आदि ऐसे में अगर कोई किसान खीरे की खेती करना चाहता है, तो उन्नत तकनीक को अपना कर अच्छी उपज प्राप्त कर सकता है। खीरे की खेती के लिए खीरे की उन्नत किस्में-पूसा संयोग, पंत संकर खीरा-1, पंत खीरा-1, मालिनी जूही।
खीरे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी:
खीरे की खेती के लिए अच्छे जल निकासी वाली बलुई एवं दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। भूमि का पी.एच.मान 6-7 के बीच होना चाहिए। अच्छी उपज लेने के लिए मिट्टी का परीक्षण करवाना चाहिए।
खीरे की खेती के लिए खेत की तैयारी इस प्रकार करे:
खीरे की खेती के लिए खेत को तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से कर देनी चाहिए। इसके साथ ही 2-3 बार पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा बनाकर समतल कर देना चाहिए।
खीरे की बुवाई हेतु उचित समय:
खीरे की खेती के लिए अलग-अलग जगह पर भिन्न समय होता है, उत्तरी भारत में खीरे की बुवाई फरवरी-मार्च व जून-जुलाई में की जाती है। अगर पर्वतीय क्षेत्रों की बात करें, तो यहां बुवाई मार्च-जून तक की जाती है। खीरे की खेती के लिए खीरे की बीज दर 3-4 किलो बीज पर्याप्त होता है।
खाद व उर्वरक:
खीरे की खेती के लिए खेत को तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 10-15 टन /एकड़ मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। तथा रासायनिक उर्वरक में नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटाश मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही उपयोग करना चाहिए।
सिंचाई:
जायद सीज़न में खीरे की फसल के लिए खेत में नमी होना बहुत जरुरी होता है। ग्रीष्मकालीन फसल में 4-5 दिनों के अंतर पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। वर्षाकालीन फसल में अगर वर्षा न हो, तो सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
खीरे की फसल में खरपतवार नियंत्रण:
अगर खीरे की खेती से अधिक से अधिक उपज प्राप्त करनी है, तो ग्रीष्मकालीन फसल में 15-20 दिन के अंतर पर 2-3 निराई-गुड़ाई व वर्षाकालीन फसल में 15-20 के अंतर पर 4-5 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है।
खीरे की कटाई:
बिजाई से 45-50 दिनों बाद पौधे पैदावार देनी शुरू कर देते हैं| इसकी 10-12 तुड़ाइयां की जा सकती हैं| खीरे की कटाई मुख्य तौर पर बीज के नर्म होने और फल हरे और छोटे होने पर करें| कटाई के लिए तेज़ चाकू या किसी और नुकीली चीज़ का प्रयोग करें| इसकी औसतन पैदावार 33-42 क्विंटल प्रति एकड़ होता हैं|
उत्पादन:
भूरे रंग के फल बीज उत्पादन के लिए सबसे बढ़िया माने जाते है| बीज निकालने के लिए, फलों के गुद्दे को 1-2 दिनों के लिए ताज़े पानी में रखा जाता हैं, ताकि बीजों को आसानी से अलग किया जा सके| फिर इनको हाथों से रगड़ा जाता है और भारी बीज पानी में नीचे बैठ जाते हैं और इनको कई और कार्यो के लिए रखा जाता हैं|