Basic Info
बेल या बेलपत्थर, बिल्व, बेलपत्र, भारत में होने वाला एक फल का पेड़ है। बेल भारत के प्राचीन फलों में से एक है। बेल वृक्ष को हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है। इस वृक्ष का इतिहास वैदिक काल में भी मिलता है। प्राचीन काल से बेल को ‘श्रीफल’ के नाम से जाना जाता है। इस वृक्ष की पत्तियों का उपयोग पारम्परिक रूप से भगवान शिव को चढ़ाने के लिए किया जाता है। बेल का फल 5-17 सेंटीमीटर व्यास के होते हैं। इनका हल्के हरे रंग का खोल कड़ा व चिकना होता है। पकने पर हरे से सुनहरे पीले रंग का हो जाता है जिसे तोड़ने पर मीठा रेशेदार सुगंधित गूदा निकलता है। इस गूदे में छोटे, बड़े कई बीज होते हैं। बेल विभिन्न प्रकार की बंजर भूमि (ऊसर, बीहड़, खादर, शुष्क एवं अर्धशुष्क) में उगाया जा सकने वाला एक पोषण (विटामिन-ए, बी.सी., खनिज तत्व, कार्बोहाइड्रेट) एवं औषधीय गुणों से भरपूर फल है। इससे अनेक परिरक्षित पदार्थ (शरबत, मुरब्बा) बनाया जा सकता है। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसके अलाव इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में की जाती है।
Seed Specification
बुवाई का समय
बुवाई का उत्तम समय मई-जून का महीना होता है।
बुवाई का तरीका
बेल के पौधे मुख्य रूप से बीज द्वारा तैयार किये गये मूलवृंत पर कालिकायन या ग्राफ्टिंग द्वारा बनाये जाते हैं।
पौध रोपण का तरीका
पौध रोपण के लिए खेत में अप्रैल-मई माह में 3x3x3 फीट के गड्ढे खोद लेना चाहिए और गड्ढो को खुला छोड़ देना चाहिए जिससे की इनमें अच्छी तरह धुप लग जाये और गड्डे भूमिगत कीड़ों से मुक्त हो जाये। और पौध रोपण के समय गड्ढों को 3-4 टोकरी सड़ी गोबर की खाद, 20-25 कि.ग्रा. बालू तथा 1 किलोग्राम चूना मिलाकर 6-8 इंच ऊँचाई तक भर देना चाहिए।
दुरी
बेल के पेड़ों को 6-8 मीटर की दूरी पर जुलाई-अगस्त माह में लगाया जाता है।
पौध रोपण का समय
बेल के पौधे को तैयार गड्ढों में जुलाई-अगस्त माह में रोपण करना चाहिए।
बीज शोधन
बीज को लगभग 12 घंटों के लिए पानी में डुबाया जाता हैं इसके बाद इन्हे सीधे खेत में या नर्सरी में बोया जाता है।
Land Preparation & Soil Health
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
बेल की खेती में अच्छे उत्पादन के लिए एक वर्ष पुराने पौधे को 10 कि.ग्रा. गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट और रासायनिक उर्वरक में 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस, 500 ग्राम पोटाश प्रति वर्ष प्रति वृक्ष डालनी चाहिए। खाद एवं उर्वरकों को पूरी मात्रा जून-जुलाई माह में डालनी चाहिए।
Crop Spray & fertilizer Specification
बेल या बेलपत्थर, बिल्व, बेलपत्र, भारत में होने वाला एक फल का पेड़ है। बेल भारत के प्राचीन फलों में से एक है। बेल वृक्ष को हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है। इस वृक्ष का इतिहास वैदिक काल में भी मिलता है। प्राचीन काल से बेल को ‘श्रीफल’ के नाम से जाना जाता है। इस वृक्ष की पत्तियों का उपयोग पारम्परिक रूप से भगवान शिव को चढ़ाने के लिए किया जाता है। बेल का फल 5-17 सेंटीमीटर व्यास के होते हैं। इनका हल्के हरे रंग का खोल कड़ा व चिकना होता है। पकने पर हरे से सुनहरे पीले रंग का हो जाता है जिसे तोड़ने पर मीठा रेशेदार सुगंधित गूदा निकलता है। इस गूदे में छोटे, बड़े कई बीज होते हैं। बेल विभिन्न प्रकार की बंजर भूमि (ऊसर, बीहड़, खादर, शुष्क एवं अर्धशुष्क) में उगाया जा सकने वाला एक पोषण (विटामिन-ए, बी.सी., खनिज तत्व, कार्बोहाइड्रेट) एवं औषधीय गुणों से भरपूर फल है। इससे अनेक परिरक्षित पदार्थ (शरबत, मुरब्बा) बनाया जा सकता है। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसके अलाव इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में की जाती है।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
सिंचाई
नये पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए एक दो वर्ष सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। स्थापित पौधे बिना सिंचाई के भी अच्छी तरह से रह सकते है।
Harvesting & Storage
फलों की तुड़ाई
जब फलों का रंग गहरे हरे रंग से बदलकर पीला हरा होने लगे तो फलों की तुड़ाई 2 सें.मी. डंठल के साथ करनी चाहिए। तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फल जमीन पर न गिरने पायें। इससे फलों की त्वचा चिटक जाती है, जिससे फल भीतर से सड़ जाते है।
भंडारण
बेल के फलों को नमी रहित सुखी जगह पर भंडारित करना चाहिए।
उपयोग
बेल एक लाभकारी फल है अत: इसके अधिकाधिक उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। कच्चे फलों को मुरब्बा एवं कैंडी, या भुनकर खाने से पेचिश, भूख न लगना एवं अन्य पेट के विकारों से छुटकारा पाया जा सकता है। और इसका उपयोग शरबत, जेम, टाफी, बेल चूर्ण बनाने में भी किया जाता है।