Basic Info
काजू का पेड़ तेजी से बढ़ने वाला उष्णकटिबंधीय पेड़ है जो काजू और काजू का बीज पैदा करता है। जिसका फल सूखे मेवे के लिए बहुत लोकप्रिय है। काजू का आयात निर्यात एक बड़ा व्यापार भी है। काजू विदेशी मुद्रा प्राप्त करने वाली भारत की एक प्रमुख फसल है। वैसे तो काजू की व्यवसायिक एवं बड़े पैमाने पर खेती केरल, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, पं. बंगाल, छत्तीसगड़, गुजरात तथा उत्तर-पूर्वी प्रदेशों में की जाती है, परन्तु झारखंड राज्य के कुछ जिले जो बंगाल और उड़ीसा से सटे हुए है वहाँ पर भी इसकी खेती की विपुल सम्भावनाएँ हैं। काजू में काफी पोषक तत्व पाये जाते है जैसे की पोटैशियम, कॉपर, जिंक, सीलियम, आयरन, मैगनीशियम आदि जो हमारे सेहत के लिए अच्छे होते है।
Seed Specification
उन्नत किस्में
अलग-अलग राज्यों के लिए उच्च काजू की संस्तुति राष्ट्रीय काजू अनुसंधान केंद्र ने किया है। काजू की प्रमुख किस्में टी.-40 , बी.पी.पी.-1, बी.पी.पी.-2, वेगुरला-4, उल्लाल-2, उल्लाल-4 आदि है। जो किस्में उड़ीसा, मध्य प्रदेश, बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक के लिए अच्छा है, उनकी खेती झारखंड राज्य में भी हो सकती है।
पौधे तैयार करने का समय
मई-जुलाई का महीना पौधा तैयार करने के लिए सही समय होता है।
पौधरोपण का तरीका
पौधा रोपण हम बीज रोप के या पौधा रोप के दोनों तरीको से काजू का पौधा लगा सकते है। बीज के तरीके से खेती करने के लिए हमें एक गड्ढे में दो बीज रोपना है, और जब वह 5 साल बाद पौधा का रूप ले ले तो उससे अलग-अलग रोप देना है।पोधा रोपण के तरीके से खेती करने के लिए ग्राफ्टिंग है जो कि जुलाई-अगस्त के महीने में होता है और इस तरीके से हमें 2 साल में पौधा मिल जाता है।
दुरी
हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि गड्ढे के पास पानी जमा न हो और दो पौधे के बीच की दुरी 4*4 या 5*5 मीटर हो।
पौधे लगाने का तरीका
काजू के पौधे को साफ्ट वुड ग्राफ्टिंग या फिर भेंट कलम के जैसे तैयार किया जा सकता है। काजू के पौधे को 700-800 सेंटीमीटर के दूरी पर वर्गाकार तरीके से लगाना चाहिए, और खेत तैयार होने के बाद अप्रैल-मई में 60*60*60 सें.मी. की दूरी पर गड्ढे कर बना देने है। अब हमे गड्ढो को 15 दिन से 20 दिन तक खुला छोड़ देना है उसके बाद 2 किलोग्राम डी. ए. पी. के मिश्रण या रॉक फ़ॉस्फेट, 5 कि.ग्रा. गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिट्टी में मिलकर गड्ढे में भर देना है।
खेत में पौधरोपण का समय
काजू के पौधे का रोपण वर्षा के समय करना चाहिए और उसके बाद थाला बनाना चाहिए और समय-समय पर थालों में खरपतवार की निराई-गुड़ाई भी करते रहना है। थालों में सूखी घास भी बिछा देना चाहिए जिससे पानी संरक्षण भी हो सके।
Land Preparation & Soil Health
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
काजू की खेती में अच्छे उत्पादन के लिए हर साल पौधे को 10 से 15 किलोग्राम गोबर या वर्मी कम्पोस्ट और सही मात्रा में रासायनिक खाद भी डाल देना चाहिए। पहले साल हर पौधा में 300 ग्राम यूरिया, 70 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश, 200 ग्राम रॉक फास्फेट डालना है। दूसरे साल इसका दुगुना खाद डालना है और तीसरे साल के बाद पौधो को 600 ग्रा. रॉक फास्फेट,1 कि.ग्रा. यूरिया और 200 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश हर साल मई-जून और सितम्बर-अक्टूबर के महीने में आधा-आधा देना चाहिए।
Crop Spray & fertilizer Specification
काजू का पेड़ तेजी से बढ़ने वाला उष्णकटिबंधीय पेड़ है जो काजू और काजू का बीज पैदा करता है। जिसका फल सूखे मेवे के लिए बहुत लोकप्रिय है। काजू का आयात निर्यात एक बड़ा व्यापार भी है। काजू विदेशी मुद्रा प्राप्त करने वाली भारत की एक प्रमुख फसल है। वैसे तो काजू की व्यवसायिक एवं बड़े पैमाने पर खेती केरल, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, पं. बंगाल, छत्तीसगड़, गुजरात तथा उत्तर-पूर्वी प्रदेशों में की जाती है, परन्तु झारखंड राज्य के कुछ जिले जो बंगाल और उड़ीसा से सटे हुए है वहाँ पर भी इसकी खेती की विपुल सम्भावनाएँ हैं। काजू में काफी पोषक तत्व पाये जाते है जैसे की पोटैशियम, कॉपर, जिंक, सीलियम, आयरन, मैगनीशियम आदि जो हमारे सेहत के लिए अच्छे होते है।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण
काजू के पौधे की अच्छी बढ़त और अच्छी फसल के लिएखरपतवार पर नियंत्रण करना बागबानी प्रबंधन के कार्य का ही एक हिस्सा है। ऊर्वरक और खाद की पहली मात्रा डालने से पहले खरपतवार को निकालने के लिए निराई गुड़ाई करना चाहिए। तथा बाद में आवश्यकता अनुसार निराई गुड़ाई करना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण का दूसरा तरीका मल्चिंग यानी पलवार का प्रयोग करना चाहिए।
सिंचाई
आमतौर पर काजू की फसल वर्षा आधारित मजबूत फसल है। हालांकि, किसी भी फसल में समय पर सिंचाई से अच्छा उत्पादन होता है। पौधारोपण के शुरुआती एक दो साल में मिट्टी में अच्छी तरह से जड़ जमाने तक सिंचाई की जरूरत पड़ती है। फल के गिरने को रोकने के लिए सिंचाई का अगला चरण पल्लवन और फल लगने के दौरान चलाया जाता है।
Harvesting & Storage
कटाई - छंटाई
काजू के पौधे को शुरुआत में ढांचा अच्छा देना के लिए ट्रेनिंग के साथ-साथ पेड़ की कटाई-छंटाई की जरूरत होती है। पेड़ के तने को एक मीटर तक विकसित करने के लिए नीचे वाली शाखाओं या टहनियों को हटा दें। जरूरत के हिसाब से सूखी और मृत टहनियों और शाखाओं को हटा देना चाहिए।
फल की तोड़ाई एवं भंडारण
काजू का पौधा तीसरे साल से फसल देना शुरू कर देता है। आमतौर पर अच्छा काजू भूरे-हरे रंग का, चिकना और पूरी तरह भरा हुआ होता है। काजू के फल को तोड़ा नहीं जाता है सिर्फ गिरे हुए फल को जमा किया जाता है। जमा किये गये फल को धुप में अच्छी तरह सुखाने के बाद काजू को छांट कर पैकिंग की जाती है।
उत्पादन
हर साल, एक पेड़ से औसतन 8 से 10 किलो नट मिल जाता है। एक हेक्टेयर में 10 से 15 क्विंटल के आस-पास का नट मिल जाता है। जिनको प्रसंस्करण के बाद खाने वाले काजू मिलते है।