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सोयाबीन की 400 किस्में लेकिन किसान तीन-चार पर ही निर्भर
उज्जैन | भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद आंचलिक परियोजना निदेशालय जोन-7 तथा विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर द्वारा कृषि विज्ञान केंद्रों की 22 वीं आंचलिक कार्यशाला के दूसरे दिन गुरूवार का कार्यक्रम पशुपालन, फसल उत्पादन और किस्म, संसाधन, प्रबंध एवं प्रसंस्करण पर केंद्रित रहा। सभी तकनीकी सत्रों में वैज्ञानिकों ने अपने क्षेत्रों की कृषि, उपलब्धि और समस्याएं बताई।
सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ ए.एन.शर्मा ने सोयाबीन की वैज्ञानिक प्रबंधन पर तकनीकी प्रस्तुतिकरण देते हुए कहा कि मालवा में ही सोयाबीन की 400 किस्में उपलब्ध है। लेकिन किसान सिर्फ तीन- चार किस्मों पर निर्भर है। उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष सोयाबीन का नए बीज की बुवाई करना चाहिए। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढेग़ी और नई किस्मों में निर्यात के ज्यादा अवसर पैदा किए जा सकते है। उन्होंने बताया पशुपालन कृषि के लिए महत्वपूर्ण है। कार्यशाला के पहले सत्र में कुलपति जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के डॉ यूएस तोमर, दूसरे सत्र में छत्तीसगढ़ दुर्ग विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.यू.के. मिश्रा, तृतीय सत्र में इंदिरागांधी राष्ट्रीय कृषि विवि के कुलपति डॉ. एस.के. पाटिल ने एवं चतुर्थ सत्र में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक एके सिंह ने अध्यक्षता की। तिलहन अनुसंधान भरतपुर के निदेशक डॉ.धीरसिंह ने तिलहन उत्पादन की उन्नत तकनीकी व खरपतवार अनुसंधान के डॉ ए.आर. शर्मा खरपतवार नियंत्रण पर विचार व्यक्त किए। प्रिंसिपल साइंटिस्ट भुवनेश्वर के डॉ लक्ष्मीनारायण ने फसलों की वैज्ञानिक तकनीक पर प्रस्तुतिकरण दिया
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