लहसुन एक नकदी फसल है। भारत में इसकी मांग साल भर बनी रहती है। मसाला से लेकर औषधि के रूप में इस्तेमाल होने के कारण यह आम भारतीय किचन का अहम हिस्सा है।
रतलाम के किसानों द्वारा आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर बनाई गई नई वैरायटी ‘रियावन सिल्वर’ अफ्रीका के साथ-साथ अब अन्य देशो के किसानों की भी पसंद बन गई है। इस वैरायटी ने लहसुन की ऊटी, अमलेटा, तुलसी, जी-वन जैसी वैरायटीयों को पीछे छोड़ दिया है| इस लहसुन की खासियत है कि बोवनी के 6-7 में अंकुरित होने वाली यह लहसुन 12 महीने तक खराब नहीं होती है। सामान्य लहसुन से ज्यादा वजन व गुणवत्ता वाली व 15 से 20 प्रतिशत तक कम लागत जैसी खासियत इसे अन्य वैरायटी से भिन्न करती है। चार साल तक किये गए प्रयोग के पश्चात इस परम्परागत लहसुन पर रियावन के किसानों ने बड़े पैमाने पर उत्पादन प्रारंभ किया है।
लहसुन की इस किस्म का नाम रिया वन है। एक एकड़ में खेती करने पर उत्पादन करीब 50 क्विंटल तक होता है।
इस किस्म का नाम एक गांव के नाम पर पड़ा है। रतलाम का एक गांव है रिया वन, जहां पर यह प्रजाति इजाद हुई है और इसी इलाके में इस किस्म की बंपर पैदावार होती है। रिया वन लहसुन की गुणवत्ता बाकी लहसुन की फसलों के मुकाबले काफी बेहतर है।
रिया वन लहसुन की विशेषता
इसका कवर कागज की तरह मोटा होता है और बाकी लहसुन की प्रजातियों के मुकाबले ज्यादा सफेद होता है। रिया वन लहसुन की जड़ काटने में सुविधाजनक होती है क्योंकि इसकी जड़ बाहर की तरफ रहती है। इसकी कटिंग बहुत सफाई से की जा सकती है।
बाजार में सामान्य लहसुन का दाम ₹8000 प्रति क्विंटल तक मिल जाता है, जबकि पीक सीजन में रिया वन लहसुन का दाम 10000 से 21000 रुपए प्रति क्विंटल तक मिल जाता है। रिया वन लहसुन मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिलों के अलावा चेन्नई, मदुरै और दक्षिण भारत के कई राज्यों में भेजा जाता है।
रिया वन लहसुन में बाकी लहसुन के मुकाबले मेडिसिनल कॉन्टेंट जैसे कि ऑयल और सल्फर ज्यादा मात्रा में होता है।खास बात यह है कि लहसून की यह किस्म 1 साल तक खराब नहीं होती। जबकि बाकी लहसुन की किस्में 5 से 7 महीने तक ही टिकती हैं। अगर कल्टीवेशन अच्छा हो तो इसकी एक गांठ 100 से 125 ग्राम तक हो जाती है।