White Musli (सफेद मूसली)

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Cultivation

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Harvesting

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Sunlight

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pH value

6.5 -8.5

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Temperature

15 - 35 °C

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Fertilization

cow dung@80-100q/acre and mix well in the soil. Apply organic manure i.e. FYM @8-10ton/acre and mixe

White Musli (सफेद मूसली)

White Musli (सफेद मूसली)

Basic Info

सफेद मूसली एक बहुत ही उपयोगी पौधा है, जो कुदरती तौर पर बरसात के मौसम में जंगल में उगता है। सफेद मूसली की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं बनाने में किया जाता है। खासतौर पर इस का इस्तेमाल सेक्स कूवत बढ़ाने वाली दवा के तौर पर किया जाता है। सफेद मूसली की सूखी जड़ों का इस्तेमाल यौवनवर्धक, शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक दवाएं बनाने में करते हैं। इस की इसी खासीयत के चलते इस की मांग पूरे साल खूब बनी रहती है, जिस का अच्छा दाम भी मिलता है।

इस की उपयोगिता को देखते हुए इस की कारोबारी खेती भी की जाती है। सफेद मूसली की कारोबारी खेती करने वाले राज्य हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल व वेस्ट बंगाल  (ज्यादा ठंडे क्षेत्रों को छोडकर) में सफलता पूर्वक की जा सकती है। सफेद मूसली  को सफेदी या धोली मूसली के नाम से जाना जाता है जो लिलिएसी कुल का पौधा है। यह एक ऐसी “दिव्य औषधि“ है, जिसमें किसी भी कारण से मानव मात्र में आई कमजोरी को दूर करने की क्षमता होती है। सफेद मूसली फसल लाभदायक खेती है।

रासायनिक संगठन
सूखी जड़ों में पानी की मात्रा 5 % से कम होती है, इसमें कार्बोहइड्रेट 42 % प्रोटीन 8 - 9 %, रुट फाइबर 3 %, ग्लोकोसाइडल सेपोनिन 2 - 17 % के साथ साथ सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, जिंक एवं कॉपर जैसे खनिज लवण भी पाए जाते है।

भारत में सफ़ेद मुसली के स्थानीय नाम
सफ़ेद मुसली (हिंदी), मुसली (संस्कृत) तिरवइतनम, तन्निर विट्टंग (तमिल), द्रवंती (कन्नड़), सफ़ेद मुसली (मराठी), ढोली मुसली (गुजराती), साललगड्डा (तेलुगु), शिदेवेल्ली (मलयालम), द्रवंती (कन्नड़)।

Seed Specification

उन्नत किस्में
सफेद मूसली की वैसे तो 175 प्रजातियां होती है जिनमे चार प्रजातियां प्रमुख है, किस्म: RC-5, RC-15, CTI-1, CTI-2 और CTI-17 भारत में उपलब्ध कुछ संकर वाणिज्यिक किस्में हैं।
1. क्लोरोफाइटम बोरिबिलियनम
2. क्लोरोफाइटम लेक्सम
3. क्लोरोफाइटम अरुण्डिनेसियम
4. क्लोरोफाइटम ट्यूबरोसम

मध्य प्रदेश के जंगलों में क्लोरोफाइटम बोरिबिलियनम एवं क्लोरोफाइटम ट्यूबरोसम बहुतायत से पायी जाती है, इन दोनों में प्रमुख अंतर यह है की ट्यूबरोसम में क्राउन के साथ एक धागा जैसा लगा होता है तथा धागों के उपरांत उसकी मोटाई बढ़ती जाती है जबकि बोरिबिलियनम में कन्द के फिंगर की मोटाई ऊपर ज्यादा होती है या एक जैसी होती है एवं धागा जैसी कोई रचना नहीं होती, ट्यूबरोसम की कीमत बाजार में बोरिबिलियनम से काफी कम प्राप्त होती है एवं ट्यूबरोसम का छिलका उतरने में भी काफी कठिनाई होती है।

बुवाई करते समय यह ध्यान रखें की यदि कन्द का आकार बड़ा है (ज्यादा फिंगर है ) तो उसे चाकू की सहायता से छोटा कर लेना चाहिए, ध्यान रहे की कन्द में कम से कम 2 - 3 फिंगर अवश्य होनी चाहिए, मूसली की बुवाई हेतु 5 - 10 ग्राम की क्राउन युक्त (अंकुरित) फिंगर सर्वाधिक उपयुक्त रहती है, एक एकड़ खेत हेतु अधिकतम 80,000 क्राउन युक्त फिंगर्स (औसतन 4 कुंतल प्रति एकड़) पर्याप्त होती है।

क्लोरोफाइटम बोरिमिलियनम की उन्नत किस्में: एम सी बी – 405, एम सी बी - 412
क्लोरोफाइटम ट्यूबरोसम की उन्नत किस्में: एम सी टी – 405
ये किस्में जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के मंदसौर उद्यानिकी महाविद्यालय द्वारा विकसित की गयी है।

बीज उपचार
बुवाई से पूर्व अंकुरित जड़ों को 2 मिनट तक बावेस्टीन (कार्बेन्डाजिम - 2 ग्राम प्रति लीटर) के घोल में अथवा 1 घंटे तक गौमूत्र के घोल में डूबा कर रखा जाना चाहिए, जिससे ये रोगमुक्त हो जाते है (जड़ों को मेकोजेब, एक्सट्रान, डिथोन M-45 और जेट्रान से उपचारित किया जा सकता है।)

रोपाई का तरीका
कंदों को बनाये गए बेड्स पर 6-6 इंच की दूरी पर लगाना चाहिए तथा इनकी बुवाई 2 इंच की गहराई पर करना उपयुक्त रहता है, रोपाई के उपरांत यदि वर्षा न हो तो सिंचाई करना आवश्यक होता है, मूसली के कन्द लगाने के 5-6 दिन के उपरांत इनका अंकुरण प्रारम्भ हो जाता है, अंकुरण प्रारम्भ होने के 15 दिन के उपरांत इनकी निराई गुड़ाई करना आवश्यक होता है, निराई गुड़ाई करते समय यह ध्यान देना चाहिए की मुख्य फसल को कोई नुकसान न पहुंचे। इसके उपरांत 15-20 दिन के अंतराल पर बायोएंजाइम, गौमूत्र, वर्मी वाश के पानी का छिड़काव करना चाहिए जिकी मात्रा इस प्रकार से है।
प्रति 15 लीटर पानी में 
गौमूत्र- 1-1.5 किलोग्राम 
बायोएंजाइम- 30 ग्राम 
वर्मी वाश- 1 किलोग्राम

Land Preparation & Soil Health

खाद एवं रासायनिक उर्वरक
खेत की तैयारी समय, वर्मी कम्पोस्ट या अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद  8-10 टन प्रति एकड़ डालें और मिट्टी में मिलाये। अन्य पोषक तत्व मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही प्रयोग करे।

रोग एवं उपचार
बुआई के कुछ दिनों के बाद पौधा बढ़ने लगता है उसमें पत्ते, फूल एवं बीज आने लगते हैं एवं अक्टूबर-नवम्बर में पत्ते पीले होकर सूखकर झड़ जाते हैं एवं कंद अंदर रह जाता है। साधारणत: इसमें कोई बीमारी नहीं लगती है। कभी-कभी कैटरपीलर लग जाता है जो पत्तों को नुकसान पहुँचाता है। सफेद मूसली के पौधों को दीमक से बचना बहुत जरूरी होता है। इसलिए खेत में नीम से बने दीमक नाशक उत्पाद डालना जरूरी होता है। इस प्रकार 90-100 दिनों के अंदर पत्ते सुख जाते हैं परन्तु कंद को 3-4 महीना रोककर निकालते हैं जब कंद हल्के भूरे रंग के हो। हल्की सिंचाई कर एक-एक कंद निकालते हैं।

Crop Spray & fertilizer Specification

सफेद मूसली एक बहुत ही उपयोगी पौधा है, जो कुदरती तौर पर बरसात के मौसम में जंगल में उगता है। सफेद मूसली की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं बनाने में किया जाता है। खासतौर पर इस का इस्तेमाल सेक्स कूवत बढ़ाने वाली दवा के तौर पर किया जाता है। सफेद मूसली की सूखी जड़ों का इस्तेमाल यौवनवर्धक, शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक दवाएं बनाने में करते हैं। इस की इसी खासीयत के चलते इस की मांग पूरे साल खूब बनी रहती है, जिस का अच्छा दाम भी मिलता है।

इस की उपयोगिता को देखते हुए इस की कारोबारी खेती भी की जाती है। सफेद मूसली की कारोबारी खेती करने वाले राज्य हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल व वेस्ट बंगाल  (ज्यादा ठंडे क्षेत्रों को छोडकर) में सफलता पूर्वक की जा सकती है। सफेद मूसली  को सफेदी या धोली मूसली के नाम से जाना जाता है जो लिलिएसी कुल का पौधा है। यह एक ऐसी “दिव्य औषधि“ है, जिसमें किसी भी कारण से मानव मात्र में आई कमजोरी को दूर करने की क्षमता होती है। सफेद मूसली फसल लाभदायक खेती है।

रासायनिक संगठन
सूखी जड़ों में पानी की मात्रा 5 % से कम होती है, इसमें कार्बोहइड्रेट 42 % प्रोटीन 8 - 9 %, रुट फाइबर 3 %, ग्लोकोसाइडल सेपोनिन 2 - 17 % के साथ साथ सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, जिंक एवं कॉपर जैसे खनिज लवण भी पाए जाते है।

भारत में सफ़ेद मुसली के स्थानीय नाम
सफ़ेद मुसली (हिंदी), मुसली (संस्कृत) तिरवइतनम, तन्निर विट्टंग (तमिल), द्रवंती (कन्नड़), सफ़ेद मुसली (मराठी), ढोली मुसली (गुजराती), साललगड्डा (तेलुगु), शिदेवेल्ली (मलयालम), द्रवंती (कन्नड़)।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण 
सफ़ेद मूसली की अच्छी वृद्धि के लिए 3 महीने तक कसी की सहायता के साथ गोड़ाई करें और मेंड़ के साथ मिट्टी लगाएं| अंकुरण के बाद 2-3 बार करें| अगर पौधे के विकास में कोई कमी दिखाई दें, तो तुरंत आवश्यक छिड़काव करें|

सिंचाई
रोपाई के बाद ड्रिप द्वारा सिंचाई करें। बुआई के 7 से 10 दिन के अन्दर यह उगना प्रारम्भ हो जाता हैं। उगने के 75 से 80 दिन तक अच्छी प्रकार बढ़ने के बाद सितम्बर के अंत में पत्ते पीले होकर सुखने लगते हैं तथा 100 दिन के उपरान्त पत्ते गिर जाते हैं। फिर जनवरी फरवरी में जड़ें उखाड़ी जाती हैं।

Harvesting & Storage

मूसली खोदने का समय
मूसली को जमीन से खोदने का सर्वाधिक उपयुक्त समय नवम्बर के बाद का होता है। जब तक मूसली का छिलका कठोर न हो जाए तथा इसका सफेद रंग बदलकर गहरा भूरा न हो तब तक जमीन से नहीं निकालें। मूसली को उखाडने का समय फरवरी के अंत तक है।
खोदने के उपरांत इसे दो कार्यों हेतु प्रयुक्त किया जाता है।
1. बीज हेतु रखना य बेचना
2. इसे छीलकर सुखा कर बेचना
बीज के रूप में रखने के लिये खोदने के 1-2 दिन तक कंदो का छाया में रहने दें ताकि अतरिक्त नमी कम हो जाए फिर कवकरोधी दवा से उपचारित कर रेत के गड्ढों, कोल्ड एयर, कोल्ड चेम्बर में रखे।
सुखाकर बेचने के लिये फिंर्गस को अलग-अलग कर चाकू अथवा पीलर की सहायता से छिलका उतार कर धूप में 3-4 दिन रखा जाता है। अच्छी प्रकार सूख जाने पर बैग में पैक कर बाजार भेज देते है।
प्रत्येक पौधों से विकसित कंदों की संख्या 10-12 होती है। इस प्रकार उपयोग किये गये प्लांटिंग मेटेरियल से 6-10 गुना पौदावार प्राप्त कर सकते हैं।

बीज एकत्रीकरण
सफेद मूसली की बुवाई के तीस चालीस दिनों के उपरांत पुष्प दंड निकलना प्रारम्भ हो जाते है जिसमे फल एवं बीज बनने लगते है फलों के पकने पर उन्हें तोड़ लेना चाहिए यह क्रम 50 - 60 दिनों तक चलता रहता है फलों से बीज निकलकर उन्हें सुखाकर भंडारित कर लेना चाहिए

अंतर्वर्ती फसलें
सफेद मूसली को पॉपुलर, पपीता, अरंडी या अरहर की फसलों के बीच अंतर्वर्ती फसल के रूप में लगाया जा सकता है, आवंला, आम, नीम्बू आदि फल वृक्षों के कतार के बीच में भी इसकी खेती की जा सकती है

भण्डारण
यदि भण्डारण की बात करे तो मूसली में 8 - 9 प्रतिशत नमी भण्डारण हेतु उपयुक्त रहती है, मूसली के कंदों को गत्तों में भर कर रखा जाना उपयुक्त रहता है, कंदों को गत्तों में भरने के पश्चात् उसके ऊपर छनी हुई बारीक बालू रेत डाल देनी चाहिए और अच्छी तरह से उसे बंद कर छायादार स्थान पर रख देना चाहिए।

उत्पादन
जहाँ तक इसके उत्पादन की बात है तो यदि आप सिंगल फिंगर्स लगाए है तो लगभग 15 क्विंटल का उत्पादन प्रति एकड़ प्राप्त होता है और यदि आप ने 2 - 3 फिंगर्स वाले कंदों की बुवाई की है तो लगभग 20 - 25 कुंतल प्रति एकड़ उत्पादन प्राप्त होता है।

मूसली की श्रेणीकरण
  • “अ“ श्रेणी:- यह देखने में लंबी. मोटी, कड़क तथा सफेद होती है। दांतो से दबाने पर दातों पर यह चिपक जाती है। बाजार में प्रायः इसका भाव 1000-1500 रू. प्रति तक मिल सकता है।
  • “ब“ श्रेणी:- इस श्रेणी की मूसली “स“ श्रेणी की मूसली से कुछ अच्छी तथा “अ“ श्रेणी से हल्की होती है। प्रायः “स“ श्रेणी में से चुनी हुई अथवा “अ“ श्रेणी में से रिजेक्ट की हुई होती है बाजार में इसका भाव 700-800 रू. प्रति कि.ग्रा. तक (औसतन 500 रू. प्रति कि.ग्रा.) मिल सकता है।
  •  “स“श्रेणी:- प्रायः इस श्रेणी की मूसली साइज में काफी छोटी तथा पतली एवं भूरे-काले रंग की होती हैं। बाजार में इस श्रेणी की मूसली की औसतन दर 200 से 300 रू. प्रति. कि.ग्रा. तक होती है।

Crop Disease

Leaf Blight

Description:
{फंगस ने शुरू में सफेद से ग्रे मायसेलियल ग्रोथ का उत्पादन किया जो 5-7 दिनों के बाद प्रचुर मात्रा में स्पोरुलेशन के कारण लाल भूरे रंग का हो गया। Acervuli कई थे, गोलाकार से तश्तरी के आकार के साथ बड़ी संख्या में गहरे भूरे रंग के सेट 96-124 माइक्रोन लंबे होते हैं। Conidiophores छोटे, सरल और हाइलिन थे। कोनिडिया असेप्टेट, फ्यूसीफॉर्म, सिकल शेप और सिंगल सेल वाले थे। पीडीए पर 7-10 दिनों के बाद मेजबान सामग्री से वे 10-15 (13) x 3-4 (3) माइक्रोन और 10-21 (14) x 3-5 (4) माइक्रोन थे। इन रूपात्मक विशेषताओं के आधार पर कवक की पहचान कोलेटोट्रिचम कैप्सिसि के रूप में की गई। आइसोलेट्स, कोलेटोट्रिचम कैप्सिसी आइसोलेट्स को संक्रमित करने वाले ओसिमम बेसिलिकम (आलम एट अल। 1981) के समान रूपात्मक रूप से समान थे। रोगजनकता साबित करने के लिए, 5-6 पत्तियों वाले 45-दिन पुराने स्वस्थ पौधों को 1.5 x 106 कोनिडिया प्रति मिलीलीटर के जलीय निलंबन में लखनऊ और पंतनगर क्षेत्रों से कोलेटोट्रिचम कैप्सिसि आइसोलेट्स के साथ छिड़काव किया गया था। स्वाभाविक रूप से पाए जाने वाले लक्षणों के समान लक्षण टीकाकरण के 3-5 दिनों के बाद देखे गए। 7-12 दिनों के बाद मूल घाव लंबाई-वार फैल गए थे और अक्सर लंबी नेक्रोटिक धारियाँ बनाने के लिए एकत्रित हो गए थे, जिससे विशिष्ट लीफ ब्लाइट लक्षण पैदा होते थे (चित्र 1)। टीका लगाए गए पौधे समय से पहले मर गए।}

Organic Solution:
सफेद मुसली की पत्ती झुलसा के प्रबंधन के लिए उपयुक्त विकल्प के एक भाग के रूप में विभिन्न रोग प्रबंधन उपकरणों के प्रभाव का परीक्षण किया गया। कवकनाशी प्रोपिकोनाज़ोल और पेनकोनाज़ोल नियंत्रण के विरुद्ध 100 प्रतिशत निषेध दिखा रहे हैं। वानस्पतिक में 5 और 10 प्रतिशत सांद्रता में नीलगिरी एसपीपी के अर्क। ने अधिकतम वृद्धि अवरोध (78.90%, 84.07%) दिखाया, इसके बाद क्रमशः एगल मार्मेलोस (77.04%, 82.47%) का स्थान रहा।

Chemical solution:
सफेद मुसली की पत्ती झुलसा के प्रबंधन के लिए उपयुक्त विकल्प के एक भाग के रूप में विभिन्न रोग प्रबंधन उपकरणों के प्रभाव का परीक्षण किया गया। आठ कवकनाशी जैसे, प्रोपिकोनाज़ोल (0.1%), मैनकोज़ेब (0.25%), पेनकोनाज़ोल (0.1%), कार्बेन्डाजिम (0.1%), कॉपर हाइड्रॉक्साइड (0.2%), कर्ज़ेट M8 (0.2%), क्लोरोथालोनिल (0.2%), थियोफ़ेनेट एम (0.2%)

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Frequently Asked Question

आप सफेद मुसली कैसे उगाएंगे हैं?

सफ़ेद मुसली को उगने के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर रेतीली दोमट मिट्टी आवश्यकता है, मौसम अनुकूल और आर्द्र जलवायु की स्थिति एवं मिट्टी की नमी में सफेद मुसली की जड़ो का आछा है। इसको लगाने का सबसे सही समय 15 मई से लगाकर 15 जून होता है।

सफेद मुसली को अंग्रेजी में क्या कहते है?

सफेद मुसली को अंग्रेजी (Chlorophytum borivilianum) क्लोरोफाइटम बोरिविलियनम लैंसोलेट पत्तियों के साथ एक जड़ी बूटी है, जो प्रायद्वीपीय भारत में उष्णकटिबंधीय आर्द्र वनों से है। हिंदी नाम सफेद मुसली (जिसे आमतौर पर मुसली भी कहा जाता है) है। इसे भारत के कुछ हिस्सों में पत्ती की सब्जी के रूप में उगाया और खाया जाता है, और इसकी जड़ों का इस्तेमाल तंदूर के नाम पर हेल्थ टॉनिक के रूप में किया जाता है।

एक एकड़ में सफेद मुसली की कितनी पैदावार होती है।

औसतन यह फसल प्रति एकड़ 15 से 20 क्विंटल गीली मुसली की उपज देती है। छीलने और सुखाने के बाद यह लगभग 30% तक कम हो जाता है, और 4 से 4.5 क्विंटल सूखी मुसली प्राप्त होती है।

भारत में प्रमुख सफेद मूसली उत्पादक क्षेत्र कौन सा है?

भारत में मुख्य सफीद मुसली खेती करने वाले राज्य: हालांकि इसे पूरे भारत में उगाया जा सकता है, राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश सफेद मुसली फसल के मुख्य उत्पादन राज्य हैं। Safed Musli Varities: - RC-5, RC-15, CTI-1, CTI-2 और CTI-17 भारत में उपलब्ध कुछ संकर वाणिज्यिक किस्में हैं।

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