एटा ज़िला भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक ज़िला है। इसका ज़िला मुख्यालय एटा है। एटा ज़िला अलीगढ़ मंडल का एक भाग है।
जिले के लोगों का प्राथमिक व्यवसाय कृषि है यह क्षेत्र गंगा और यमुना (दोआब) के बीच स्थित है जो कि अत्यधिक उपजाऊ (जलोढ़ मिट्टी) है। किसान एक वर्ष में तीन फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। सिंचाई के लिए पानी वर्ष दौर उपलब्ध है। मुख्य कृषि उत्पाद चावल, गेहूं, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का; मिट्टी तंबाकू की खेती के लिए उपयुक्त है।
कृषि प्रधान जिले का जलेसर कस्बा जहां घुंघरू और घंटी उद्योग के लिए देशभर में विख्यात है। वहीं यहां करीब पांच सौ के आसपास चिकोरी की फैक्ट्रियां हैं। वहीं आटा चक्की, फर्नीचर सहित अन्य लघु और मझोले उद्योग हैं।
चार एकड़ से शुरू हुई चिकोरी की खेती अब बीस हजार एकड़ तक पहुंच गई है। इस फसल की खुशबू एटा से बाहर निकल सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, स्विटजरलैंड आदि देशों में कॉफी को महका रही है। हर साल करोड़ों का निर्यात हो रहा है। मूंग उत्पादक जिले के रूप में पहचान बनाए एटा को नई पहचान चिकोरी ने दी।
1980 से 1985 के बीच एक दौर ऐसा भी था कि मूंग उत्पादन में एटा पूरे एशिया में टॉप पर था। उसके बाद करीब डेढ़ दशक पहले बहुराष्ट्रीय कंपनी हिंदुस्तान लीवर ने कांट्रेक्ट फार्मिंग के जरिए एटा में चिकोरी की खेती शुरू कराई थी। इसकी शुरूआत करने वाले किसानों के घरों में खुशहाली आई तो दूसरे किसानों का रुझान भी इसके प्रति बढ़ता गया, साथ ही बढ़ता गया फसल का रक्बा। अब बीस हजार से अधिक हेक्टेयर में यह फसल बोई जा रही है। कारोबार से जुड़े लोगों की माने तो यह अपने आप में एक बड़ा रिकार्ड है।
चिकोरी की खेती के लाभ
- चिकोरी की फसल में नीलगाय व अन्य पशु नुकसान नहीं करते।
- स्वादहीन होने के चलते इसमें कीड़ा भी नहीं लगता।
- मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। इसके पत्ते हरी खाद का काम करते हैं।
- गेहूं की तुलना में इसका उत्पादन सात-आठ गुना होता है।
क्या है चिकोरी
इसका आकार मूली जैसा होता है। एक नकदी फसल के रूप में इसका चलन एटा में तेजी के साथ बढ़ रहा है। कॉफी में सुगंध, रंग और गाढेपन को लाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। कुछ देशों में सलाद के रूप में भी प्रयोग होता है। दक्षिण भारत में तो लोग रोस्ट एंड ग्राउंड (भुनी-पिसी) कॉफी के रूप में इसकी क्यूब्स का प्रयोग करते हैं।
कासनी Chicory/चिकोरी , वानस्पतिक नाम : Cichorium intybus एक बारहमासी पौधा है जो भूमध्य क्षेत्र में पाया जाता है। इसमें नीले रंग के पुष्प लगते हैं। यह एक जड़ी-बूटी है जिसके कई तरह के स्वास्थ्य लाभ होते हैं। चिकोरी की जड़ को यूरोप में आमतौर पर कॉफी के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाता है। लेकिन इसमें कैफीन नहीं होता है और इसका स्वाद चॉकलेट की तरह होता है। यदि इसे कॉफी के साथ प्रयोग किया जाए तो यह कैफीन के प्रभावों को रोकता है।
कासनी एक बहुपयोगी फसल है। इसका इस्तेमाल हरे चारे के अलावा औषधीय रूप में कैंसर जैसी बिमारी में किया जाता है और खाने में इसका इस्तेमाल कॉफ़ी के साथ किया जाता है। कॉफ़ी में इसकी जड़ों को भुनकर मिलाया जाता है जिससे काफी का स्वाद बदल जाता है। इसकी जड़ मूली के जैसा दिखाई देती है। कासनी के पौधे पर नीले रंग के फूल दिखाई देते हैं जिनसे इसका बीज तैयार होता है। इसके बीज छोटे, हल्के और और भूरे सफेद दिखाई देते हैं।
कासनी की खेती नगदी फसल के रूप की जाती है। कासनी की खेती से फसल के रूप में इसके कंद और दाने दोनों उपज के रूप में प्राप्त होते हैं। भारत में ज्यादातर जगहों पर लोग इसे हरे चारे की फसल के रूप में अधिक उगाते हैं. क्योंकि लोगों को इसकी खेती के उपयोग के बारें में अधिक जानकारी नही है। इसकी रबी की फसलों के साथ की जाती है। इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण दोनों जलवायु उपयुक्त होती है। इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है। कासनी की खेती के लिए सर्दी का मौसम सबसे उपयुक्त होता है।