भरूच (गुजरात)। खबर का शीर्षक पढ़कर आप जरूर चौंक गए होंगे, लेकिन यह सच है। भरूच शहर के प्रसिद्ध शुक्लतीथ शिव मंदिर से लगभग 15 किमी दूर नर्मदा नदी के बीचों-बीच टापू पर स्थित इस जगह का ना है ‘कबीरवड’। इस जगह का नाम संत कबीर दासजी के नाम पर रखा गया है, उन्होंने यहां कई वर्ष गुजारे थे। उस समय यहां सिर्फ एक ही बरगद का पेड़ था, जो लगातार फैलता रहा और उसकी शाखाओं से अपने आप अन्य बरगद के पेड़ पनपते चले गए। इस एक पेड़ से अब यहां सैकड़ों बरगद के पेड़ हैं, जो फैलते हुए 3 किमी के क्षेत्र को अपने घेरे में ले चुके हैं।
इस जगह पहुंचने के बाद आपको सिर्फ और सिर्फ बरगद की हरियाली ही नजर आएगी। सभी पेड़ आपस में इतने जुड़े हुए हैं कि भीषण गर्मी में भी यहां धूप जमीन पर नहीं पहुंच पाती। इस तरह यह जगह अपने एतिहासिक कारणों से ही नहीं पहचानी जाती, बल्कि यह अपनी शांतता के कारण भी सैलानियों को आकर्षित करता है। इसके साथ ही यहां संत कबीरदास का एक मंदिर भी है।
भरूच के प्रसिद्ध शुक्लतीर्थ शिव मंदिर से नाव द्वारा आप यहां पहुंच सकते हैं। यह जगह भरूच ही नहीं, पूरे गुजरात में प्रसिद्ध है। भरूच आने वाला हरेक पर्यटक यहां आने की इच्छा रखता है। शुक्लतीर्थ को पाप से मुक्ति पाने का पवित्र स्थल माना जाता है। शुक्लतीर्थ के बारे में कहा जाता है कि पाटण के राजा चामुंड के बेटे की जवानी में मृत्यु हो गई थी। बेटे की अकाल मौत से दुखी राजा चामुंड ने अपने बाकी दिन इसी स्थल पर गुजारे थे। यहां प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर पांच दिवसीय मेला भी भरता है।