उज्जैन. देश में एक और शहर जैसा गांव है। जहां मकान आलीशान है। सड़कें सीमेंटेड है। अधिकतर बच्चें फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते है। बेटियां और बहुएं ग्रेजुएट से कम नहीं है। जहां 30 प्रतिशत से अधिक लोग विदेश में है। बावजूद वहां संस्कृति गांव की दिखाई देती है। गांव का नाम कदवाली है। जिस पर नाम के मुताबिक गांव के हर दूसरे-तीसरे घर में एक कदवाली शख्सियत भी रहती है।
देश-विदेश में इस गांव का कोई इंजीनियर, कोई प्रोफेसर, तो कोई अफसर है। उज्जैन जिला मुख्यालय से कदवाली गांव करीब 30 किमी है। घट्टिया तहसील स्थित ये गांव मुख्य सड़क से करीब डेढ़ किमी भीतर है। मुख्य सड़क से कदवाली तक का कच्चा मार्ग गांव होने का ही अहसास कराता है लेकिन गांव में दाखिल होने पर दिखाई देने वाले आलीशान मकान शहर का अहसास कराते हैं।
इसलिए नाम कदवाली : गांव के पूर्वज राजस्थान के बिजोलिया गांव से आए थे। ये गांव कदवाली नदी के किनारे बसा है। संभवत: इसलिए पूर्वजों ने नदी के नाम पर गांव को कदवाली नाम दिया।
उज्जैन में आयकर आयुक्त एमएस परमार सहित कई अफसर है जिसमें हेमंतप्रतापसिंह स्क्वाडन लीडर एयरफोर्स, मयंक प्रभासिंह तोमर डिप्टी कमिश्नर, प्रीति कीर्तिसिंह एसएलआर, प्रो. नलिनसिंह पंवार विक्रम यूनिवर्सिटी उज्जैन, प्रो. प्रदीपसिंह पंवार विक्रम यूनिवर्सिटी उज्जैन प्रो. किरण पंवार बड़ौदा विश्वविद्यालय, प्रो.उपेंद्रसिंह पंवार जीआईटीएस इंदौर, राकेशसिंह पंवार इंजीनियर अमेरिका, नेहा पंवार प्रोफेसर अमेरिका, ऋषिराजसिंह इंजीनियर अमेरिका, संदीपसिंह बेहरिन में पेट्रोकेमिकल अफसर व विश्वनाथसिंह सऊदी अरब में इंजीनियर हैं।
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