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धान की खेती भारत के लाखों किसानों की आजीविका का मुख्य स्रोत है। लेकिन अगर नर्सरी की तैयारी वैज्ञानिक विधि से की जाए, तो यह उत्पादन को दो गुना तक बढ़ा सकती है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि धान की अच्छी फसल की नींव उसकी सुदृढ़ नर्सरी होती है। यदि किसान कुछ जरूरी कदमों का पालन करें तो उन्हें पैदावार में जबरदस्त लाभ मिल सकता है। आइए जानते हैं कैसे करें वैज्ञानिक विधि से धान की नर्सरी की तैयारी:
खेत की गहरी जुताई है
सबसे पहला कदम
नर्सरी की तैयारी से पहले खेत की गहरी जुताई बेहद जरूरी है।
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल (mouldboard
plough) से करें ताकि मिट्टी की ऊपरी परत नीचे चली जाए और खरपतवार, कीट व बीज नष्ट
हो जाएं। इसके बाद, रोटावेटर
से जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी और समतल हो जाए।
खेत का समतलीकरण: जल
भराव से बचे रहेंगे पौधे
एक बार जब जुताई पूरी हो जाए, तो खेत को अच्छी तरह समतल कर लेना चाहिए। इससे जल भराव की
समस्या नहीं होगी और पौधे सड़ने से बचेंगे। धान की नर्सरी में जल भराव फसल की
प्रारंभिक वृद्धि पर बुरा असर डालता है।
जैविक खाद और
ट्राइकोडर्मा से करें मृदा शोधन
अंतिम जुताई के पहले,
खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद और वर्मी कंपोस्ट को अच्छे से मिला लें। इससे
मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं। साथ ही, 2 किलो
ट्राइकोडर्मा प्रति एकड़ खेत में डालकर मिट्टी को कीट और फफूंद से बचाया जा सकता
है। यह एक अत्यंत प्रभावी जैविक मृदा शोधन विधि है।
नर्सरी की क्यारियाँ
बनाना क्यों है जरूरी?
नर्सरी की बुवाई के लिए लगभग 1 मीटर चौड़ी
क्यारियाँ बनानी चाहिए। क्यारी की लंबाई किसान अपनी सुविधा के अनुसार रख सकते हैं।
क्यारियों की यह संरचना कई फायदे देती है:
·
पानी का बेहतर प्रबंधन होता है।
·
खरपतवार नियंत्रण करना आसान होता है।
·
नर्सरी में काम करने के लिए किसान मेड़ पर बैठ सकते हैं, जिससे पौधे
खराब नहीं होते।
मृदा शोधन से बचें कीट
व रोगों से
नर्सरी बुवाई से पहले मृदा शोधन जरूरी है। ट्राइकोडर्मा के
अलावा, बीज
शोधन भी किया जा सकता है ताकि रोगों से बचाव हो। इससे नर्सरी में पौध स्वस्थ रहते
हैं और आगे चलकर मुख्य खेत में रोपाई के समय अच्छी वृद्धि करते हैं।
छोटे प्रयास,
बड़े परिणाम
छोटे-छोटे कृषि प्रयास, जैसे कि समय पर जुताई,
सही खाद, और
वैज्ञानिक पद्धतियों का पालन,
धान की उत्पादकता में बड़ा अंतर ला सकते हैं। इस वैज्ञानिक तरीके से तैयार की
गई नर्सरी से न सिर्फ रोग-मुक्त पौधे मिलते हैं, बल्कि फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों बढ़ जाती हैं।
यदि किसान भाई इन वैज्ञानिक विधियों का पालन करते हैं, तो न केवल वे
अच्छी गुणवत्ता वाली नर्सरी तैयार कर सकते हैं, बल्कि उन्हें उत्पादन में भी दुगुना लाभ हो सकता है। कृषि
विज्ञानियों और कृषि विभाग की सलाह लेकर स्थानीय मौसम और मिट्टी के अनुसार बदलाव
कर सकते हैं।
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