Sunflower Farming: सूरजमुखी न केवल एक सुंदर फूल है। यह सेहत का खजाना है। इसके तेल के सेवन से दिल और दिमाग दोनों चुस्त रहते हैं। मार्डन, सूरजमुखी की एकमात्र किस्म बहुत लोकप्रिय है लेकिन इन दिनों बीएसएस-1, केबीएसएस-1 आदि जैसी किस्में हैं। सूरजमुखी की फसल प्रकाश संवेदनशील होती है। इसे साल में तीन बार रबी, खरीफ और जायद मौसम में बोया जा सकता है। किसान सबसे अधिक जायद के मौसम में बुआई करते हैं।
जायद के मौसम में कतार से कतार की दूरी चार से पांच सेंटीमीटर होती है। और पौधे से पौधे की दूरी 25-30 सेमी।
सूरजमुखी में खाद व उर्वरक की मात्रा बुआई से पूर्व सात-आठ टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय मिलाना चाहिए व अच्छी उपज के लिए सिचित अवस्था में यूरिया 130 से 160 किग्रा., एसएसपी 375 किग्रा. व पोटाश 66 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
नाइट्रोजन की मात्रा का 2/3, स्फूर और पोटाश की सारी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें। नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा को बुवाई के 30-35 दिन बाद पहली सिचाई के समय खड़ी फसल में देना लाभप्रद पाया गया है।
सिंचाई प्रबंधन
जायद (फरवरी माह में) में बोई गई सूरजमुखी की फसल में तीन सिचाई की आवश्यकता होती है।
पहली सिचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद करें व इसी अवस्था में नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा का उपयोग करें।
द्वितीय सिचाई 20-25 दिन बाद फूल आने की अवस्था में करें एवं अंतिम सिचाई बीज बनने की अवस्था में करें।
फसल सुरक्षा
सूरजमुखी की फसल में एफिड्स, जैसिड्स, हरे रंग की सुंडी व हेड बोरर का प्रकोप अधिक होता है। रस चूसक कीट, एफिड्स, जैडिस की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 125 ग्राम प्रति हेक्टेयर या एसिटामिप्रिड 125 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
सूंडी व हैड बोरर के नियंत्रण के लिए क्विनालाफास 20 फीसद एक लीटर दवा अथवा प्रोफेनोफास 50 ईसी 1.5 लीटर दवा को 600-700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कें।
सूरजमुखी की फसल में मुख्यत: रतुआ, डाउनी मिल्ड्यू, हेड राट, राइजोपस हेड राट जैसी समस्याएं आती हैं। पत्ती झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु मेंकोजेब तीन ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
सूरजमुखी को चिड़िया, तोते सर्वाधिक नुकसान पहुंचाते हैं। तोते दाने पड़ने की अवस्था से लेकर दाने पकने की अवस्था तक (एक माह) अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। उनसे बचाव का प्रबंध करें।
फसल कटाई
सूरजमुखी फसल की कटाई उस समय करें, जबकि फूल का पिछला हिस्सा नींबू जैसा पीला रंग का हो जाए और फूल झड़ जाए तो फसल तैयार समझना चाहिए। इस स्थिति में फूल को काटकर खलिहान में लाएं व तीन-चार दिन खलिहान में सूखने के बाद डंडों से पीटकर बीज निकालें।