सोयाबीन की वैज्ञानिक खेती, जानिए सोयाबीन की उन्नत खेती का तरीका

सोयाबीन की वैज्ञानिक खेती, जानिए सोयाबीन की उन्नत खेती का तरीका
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Kisaan Helpline

Crops Apr 15, 2022
Soyabean Ki Kheti: सोयाबीन (ग्लाइसिन मैक्स) दलहन कुल की तिलहनी फसल है। इसके मुख्य घटक प्रोटीन (40-42 प्रतिशत), कार्बोहाइड्रेट (21 प्रतिशत), वसा (85 प्रतिशत), तेल (19-20 प्रतिशत), नमी ( 8-10 प्रतिशत), खनिज (406 प्रतिशत) तथा रेशे (307 प्रतिशत) होते हैं। सोयाबीन के कई उत्पाद जैसे-सोया मिल्क, सोया पनीर, सोया बटर, सोया ऑयल, सोया कर्ड, सोया फ्लोर, सोया क्रीम, सोया कैंडी, सोया चीज आदि बाजार में उपलब्ध हैं। लिसिथिन नामक सोया उत्पाद उद्योगों में स्नेहक के रूप में काम आता है। इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसे 'वंडर फसल और गोल्डन बीन' भी कहा जाता है। सोयाबीन को सामान्यतः वर्षा आधारित खेती के रूप में करने, जैविक और अजैविक तनाव प्रतिरोधक किस्मों का अभाव होने, बीज अंकुरण की समस्या और कीटप्रिय फसल होने के कारण इसकी उत्पादकता कम है। इससे कृषकों को आर्थिक दृष्टिकोण से ज्यादा लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है। इसकी वैज्ञानिक खेती पर पुरजोर ध्यान देना होगा। सोयाबीन की अच्छी वृद्धि तथा उपज के लिए मुख्यत: उष्ण, गर्म और नम जलवायु की आवश्यकता होती है। बीजों के अंकुरित होने के लिए लगभग 25 एवं फसल बढ़ोतरी के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। सोयाबीन की अच्छी फसल के लिए वार्षिक वर्षा 40 से 70 सें.मी. होनी चाहिए।

उपयुक्त भूमि 
सोयाबीन की सफल खेती के लिए उपजाऊ, उचित जल निकास, लवणरहित, मध्यम से भारी दोमट मृदा (पी-एच मान 6.5 से 7.5) उपयुक्त होती है।

उन्नत किस्मों का चयन
उन्नत किस्मों का चयन किसी फसल का अधिकाधिक उत्पादन लेने में उन्नत किस्म और उसके गुणवतापूर्ण बीज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्रमुख किस्में
शिलाजीत, पूसा-16, वीएल सोया-2, वीएल सोया-47, हरा सोया, पालम सोया, पंजाब-1, पीएस-1241, पीएस-1092, पीएस-1347, वीएलएस-59, वीएलएस-63, पीके - 416, पूसा - 16, पीएस-564, एसएल-295, एसएल-525, पीएस-1024, पीएस-1042, डीएस-9814, जेएस-93-05, जेएस-95-60, जेएस-335, एनआरसी-7, एनआरसी-37, जेएस-80-21, समृद्धि, एमएयूएस-81, को-1, को-2, एमएसी एस-24, पूजा, पीएस-1029, एलएसबी-1, प्रतिकार, फुले कल्याणी, प्रसाद, इंदिरा सोया-9, प्रताप सोया-9, एमएयूएस-71, जेएस-80-21 आदि।

बुआई का समय
  • खरीफ: (जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह) सभी सोयाबीन क्षेत्रों में।
  • रबी: (नवंबर) मध्य भारत के कुछ ; क्षेत्रों और दक्षिण भारत के सभी सोयाबीन क्षेत्रों में।
  • जायद: (फरवरी से मार्च) दक्षिण भारत के सभी सोयाबीन क्षेत्रों में।
बीज दर
  • छोटा दाना: 60 से 65 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर
  • मध्यम दानाः 70 से 75 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर 
  • मोटा दानाः 80 से 85 कि.ग्रा. प्रति
बीज एवं बीजोपचार
सदैव प्रमाणित बीज ही काम में लें। बुआई से पहले बीज को थीरम या कैप्टॉन या कार्बेण्डाजिम 2 ग्राम या ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम/कि.ग्रा. और थायोमिथाक्सेम 78 डब्ल्यूएस 3 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बोयें। इसके बाद राइजोबियम कल्चर (राइजोबियम जापोनिकम) और पीएसबी जीवाणु टीके की 5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर की मात्रा से ठंडे गुड़ के घोल में मिलाकर बीज को उपचारित करें। इसके बाद बीज को छाया में सुखाकर तुरंत बुआई कर दें।

बुआई विधि
सोयाबीन की बुआई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सें.मी. तथा 45 सें.मी. (लंबी किस्मों) और पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सें.मी. होनी चाहिए। बुआई 2.5 से 3 सें.मी. गहराई पर करनी चाहिए। पोषक तत्व प्रबंधन सोयाबीन से अच्छा उत्पादन लेने के लिए लगभग 5 से 10 टन प्रति हैक्टर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद एवं 150 से 200 कि.ग्रा. जिप्सम बुआई से लगभग 20 से 25 दिनों पहले खेत में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। बुआई के समय 20 से 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 से 80 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 30 से 40 कि.ग्रा. पोटाश, जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा. एवं 20 कि.ग्रा. गंधक प्रति हैक्टर दें।

पौध संरक्षण
कीट प्रबंधन
सोयाबीन की फसल पर तना मक्खी, तनाछेदक, तम्बाकू इल्ली, माहू एवं चक्रभृंग (गर्डल बीटल) आदि का प्रकोप होता है। कीटों के आक्रमण से 5 से 50 प्रतिशत तक पैदावार में कमी आ जाती है।
  • तना मक्खी: थायोमेथाक्जाम 70 डब्ल्यूएस, 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. नीला भृंग एवं गर्डल बीटल: क्विनालफॉस 25 ई.सी., 105 लीटर प्रति हैक्टर।
  • पत्ती खाने वाली इल्लियां : क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी., 105 लीटर या क्विनालफॉस 25 ई.सी., 1.5 लीटर या पोफेनोफॉस 50 ई.सी., 1.25 लीटर या इंडोक्साकार्ब 14.5 एस सी, 0.30 लीटर या डायफ्लूबैजूरॉन 25 डब्ल्यूपी, 300 ग्राम प्रति हैक्टर।
  • चने का फलीछेदक कीट: इंडोक्साकार्ब 14.5 एससी, 0.30 लीटर या इमामेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी, 180 ग्राम प्रति हैक्टर।
  • रस चूसने वाले कीट: इयोफेनप्रॉक्स 10 ई.सी., 100 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 150-200 ग्राम प्रति हैक्टर।
जैविक नियंत्रण
पर्यावरण सुरक्षा और दीर्घकालीन लाभ की दृष्टि से कीट प्रबंधन के लिए मकड़ी, छिपकली, मकोड़े, टिड्डे; बैक्टीरिया आधारित जैविक कीटनाशक, जैसे-डायपेल, बायबिट आदि या फफूंद आधारित जैविक कीटनाशकों जैसे नीम बीज का घोल 5 प्रतिशत, बायोसॉफ्ट, बायोरिन या डिस्पेल आदि की एक लीटर मात्रा का प्रति हैक्टर छिड़काव करें।

कटाई एवं गहाई
जब सोयाबीन की पत्तियों व फलियों का रंग पीला/भूरा हो जाए और पत्तियां सूखकर झड़ने लगें, तब फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। कटाई के बाद चार से पांच दिनों तक खेत में ही इन्हें सूखने देना. चाहिए, जब तक दानों में नमी की मात्रा कम होकर 13 से 14 प्रतिशत हो जाए। जहां तक संभव हो बीज के लिए गहाई लकड़ी से पीटकर करनी चाहिए, जिससे अंकुरण प्रभावित न हो।

पैदावार
सही किस्मों के चयन और उपयुक्त सस्य विधियों के साथ 20 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

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