ग्रीष्मकालीन समय में आप कद्दूवर्गीय यानी खरबूज, तरबूज, तोरई, लौकी, खीरा, ककड़ी, गिलकी, चप्पन कद्दू, और टिंडा आदि की खेती कर रहे हैं, तो मौजूदा समय में इन फसलों का विशेष ध्यान रखना होगा, क्योंकि इस समय सब्जियों की फसलों पर कई रोगों का प्रकोप हो सकता है।
बता दे की अगर एक बार फसल में ये हानिकारक रोग लग जाये, तो धीरे धीरे पूरी खड़ी फसल को बर्बाद कर सकते हैं। इन रोगो के कारण फसल की बढ़वार और पैदावार पर गहरा प्रभाव पड़ता हैं। ऐसे में किसानों को सब्जियों वाली फसलों का समय-समय पर देखभाल और विशेष ध्यान रखना होगा।
आइये जानते है सब्जियों की फसल में लगने वाले हानिकारक रोग और उनके रोकथाम के उपाय-
पाऊडरी मिल्ड्यू
इस रोग से पत्तों, तनों और पौधों के दूसरे भागों पर फफूंदी की सफेद आटे जैसी तह जम जाती है, यह रोग शुष्क मौसम में ज्यादा लगता है, फल का गुण व स्वाद खराब हो जाता है।
रोकथाम
केवल एक बार 8 से 10 कि.ग्रा. प्रति एकड़ डस्ट सल्फर (बारीक गंधक) का धूड़ा बीमारी लगे हर भाग पर धूड़ने से बीमारी रूक जाती है। धूड़ा सुबह या शाम के समय करें। दिन के उस समय जब अधिक गर्मी हो, तब दवाई का धूड़ा न करें। खरबूजे पर गंधक न धूड़ें। इसके स्थान पर 500 ग्राम घुलनशील गंधक (सल्फर) 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। तथा
ऐन्थ्रक्नोज व स्कैब
इस रोग से लौकी, घीया, तोरई समेत अन्य बेल वाली सब्जियों के पत्तों व फलों पर धब्बे पड़ जाते हैं, सात ही अधिक नमी वाले मौसम में इन धब्बों पर गोद जैसा पदार्थ दिखाई देता है।
रोकथाम
यह रोग 400 ग्राम एम-45 या हेक्साकोनाज़ोल+जिनेब दवा 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव किया जाए, तो इस बीमारी को रोका जा सकता है।
गम्मी कालर रॉट
खरबूज में यह बीमारी ज्यादातर लगती है, जो कि अप्रैल से मई में देखने को मिलती है, ऐसी बीमारी के प्रभाव से भूमि की सतह पर तना पीला पड़कर फटने लगता है और इन्हीं स्थानों से गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलने लगता है।
रोकथाम
प्रभावित पौधों के तनों की भूमि की सतह के पास 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम या हेक्साकोनाज़ोल 5 एस.सी.के घोल सिंचाई के साथ जमीन में देवे।
डाऊनी मिल्ड्यू
पत्तों की ऊपरी सतह पर पीले या नारंगी रंग के कोणदार धब्बे बनते हैं, जो कि शिराओं के बीच सीमित रहते हैं। नमी वाले मौसम में इन्हीं धब्बों पर पत्तों की निचली सतह पर सफेद या हल्के-बैंगनी रंग का पाऊडर दिखाई देता है। इस बीमारी का प्रकोप बढ़ने पर पत्ते सूख जाते हैं औप पौधा नष्ट हो जाता है।
रोकथाम
लौकी में लगने वाले खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए, पौधों पर एम-45 या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़क देना चाहिए, इसके अलावा खरबूजे में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव न करें, एक एकड़ के लिए 200 लीटर पानी में 400 ग्राम दवा का घोल बनाएं।
पीला मोजैक रोग
इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्ते पीले व कहीं से हरे दिखाई देते हैं, इससे फसल की पैदावार बहुत कम मिलती है। यह रोग सफ़ेद मक्खी के कारण फैलता है।
रोकथाम
विषाणु रोग अल (चेपा) और सफ़ेद मक्खी द्वारा फैलता है, अल (चेपा) को नष्ट करने के लए नियामित रूप से कीटनाशक दवाओं छिड़काव करें।