बीज गलन और अंगमारी - यह बीमारी पिथियम, पैनिसिलियम, फ्यूजेरियम व स्कलेरोसियम नामक फफूंद के कारण होती है। इस बीमारी से बीज या उगता हुआ पौधा गल या मर जाता है व जिससे जिससे जमाव कम होता है और पौधों का फुटाव कम होने से पौधों की संख्या कम भी हो जाती हैं।
प्रबंधन - थीराम (4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) नामक दवाई से इस बीमारी के समाधान के लिए बीजाई के समय बीज का उपचार करें।
मेडिस पत्ता अंगमारी - इस बीमारी की अगर बात करे तो यह बीमारी फसल की प्रारम्भिक अवस्था में लग जाये तथा इसका ठीक समय पर प्रबंधन न किया जाए तो उपज की भारी हानि हो सकती है। यह रोग बाईपोलरिस मेडिस नामक फफूंद से होता है। इसके कारण पत्तों पर स्लेटी व भूरे रंग के धब्बे बनने लगते है तथा उसके चारों ओर गहरे पीले हरे रंग के होते हैं और पत्तों को सुखा देते हैं।
प्रबंधन - जब भी इस बीमारी का पता लगे 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) मैन्कोजेब नामक दवाई 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। इसके बाद 10 दिन के अंतर पर एक या दो और छिड़काव करें। मक्का के रोग प्रतिरोधी किस्मे जैसे एचक्यूपीएम-4, एचक्यूपीएम-5, एचक्यूपीएम-7 तथा एचएम-10 लगायें।
पत्ती अंगमारी - इस बीमारी का कारण राईजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूंद है। यह बीमारी मक्का की फसल के पत्तों के घास या जमीन से स्पर्श होने के कारण होती है। इस रोग से पत्तों और शीथ पर बड़े-बड़े धब्बे बनते हैं जो कि पत्तों तथा शीथ को सुखा देते हैं। इन धब्बों में बैण्ड बन जाते हैं। इस रोग से दानों का आकार तथा वजन कम हो जाता है।
प्रबंधन - इसके समाधान के लिए खेत में घास न होने दें तथा नीचे के दो या तीन पत्तों को शीथ सहित पौधे से अलग करके नष्ट करें। अगर आपको फसल पर बीमारी के लक्षण दिखाई दे तो 0.2 प्रतिशत वैलिडामाईसिन, 0.2 प्रतिशत कार्बेंडाजिम अथवा 0.1 प्रतिशत मौनस्रन नामक दवा का छिड़काव करें।
सामान्य रतुआ - यह बीमारी पक्सीनिया सोरगाई नामक फफूंद के कारण होती है। इस बीमारी के अंतर्गत स्फोर पस्टयूल पत्तियों पर अधिक मात्रा में होते है। गोल्डन ब्राऊन से सैन्नामोन ब्राऊन स्फोर पत्ती का दोनों सतहों पर विकीर्ण छितरा-बिखरा होता है तथा पादक परिपक्वता के कारण भूरा काला रंग हो जाता है।
प्रबंधन - पौधे की पत्तियों पर स्फोर पस्टयू दिखाई देते ही 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) मेंकोजेब नामक दवाई 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ के हिसाब से 10-15 दिन के अंतराल पर तीन बार छिड़केेंं। इसके अलावा रोग प्रतिरोधी किस्में जैसे की एचक्यूपीएम-1, 4,एचएम-2, एचएम-4, एचएम-5, एचएम-10 और एचएम-11 लगाएं।