गर्मियों में तिल की खेती से कमा सकते है अच्छा मुनाफा, जानिए उन्नत खेती के तरीकों के बारे में

गर्मियों में तिल की खेती से कमा सकते है अच्छा मुनाफा, जानिए उन्नत खेती के तरीकों के बारे में
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Kisaan Helpline

Crops Jan 19, 2023
तिल की खेती: गर्मियों में तिल की खेती (Til Ki Kheti) करना बेहद आसान है। कम लागत में अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए किसान गर्मियों में तिल की बुआई कर सकते हैं। तिल का उत्पादन वर्षा ऋतु की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में अधिक होता है। गर्मी में कीट व रोगों का प्रकोप भी बहुत कम होता है, जिससे फसल अच्छी होती है। तिल में 20% प्रोटीन की मात्रा होती है साथ ही तिल से 45 से 50% तिल निकाला जाता है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि तिल एक तिलहनी फसल है। इसे दुनिया की पहली तिलहनी फसल भी कहा जाता है। तिल से तेल निकाला जाता है जिसका उपयोग खाना बनाने में किया जाता है। भारत में प्राचीन काल से तिल की खेती की जाती है, हम दो प्रकार के तिल बोते हैं, सफेद और काला तिल, केवल सफेद तिल का तेल निकाला जाता है। इस फसल में एक मीटर तक के पौधे होते हैं, जिन पर सफेद-बैंगनी रंग के फूल आते हैं साथ ही काले तिल का भी खूब प्रयोग होता है, जानिए भारत के प्रमुख तिल उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, और आंध्र प्रदेश है।

तिल की खेती के लिए अनुकूल गर्मी का मौसम
जलवायु के संदर्भ में, तिल को लंबे गर्म मौसम के साथ उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है। इसका पौधा गर्म जलवायु में उगता है। इसकी खेती अच्छी जल निकासी वाली भूमि में की जानी चाहिए, इसे वर्षा के पानी की आवश्यकता नहीं होती है, इसकी बुवाई सामान्य पीएच मान वाली भूमि में की जानी चाहिए, पौधे की उच्च वृद्धि के लिए 25 से 27 डिग्री तापमान अच्छा होता है, साथ ही क्योंकि इसके पौधे 40 डिग्री सामान्य तापमान आसानी से सहन कर लेते हैं।

उपयुक्त मिट्टी
वैसे तो तिल की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन अधिक उपज प्राप्त करने के लिए किसान भाई इसे बलुई दोमट मिट्टी में बोते हैं जिसमें जीवाश्म अधिक होता है जो तिल की खेती के लिए अच्छा होता है।

खेत की तैयारी
खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए और खेत को समतल करके समतल कर लेना चाहिए। खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट उचित मात्रा में डालें।

तिल की उन्नत किस्में
ग्रीष्मकालीन प्रमुख किस्मे
  • टी.के.जी. 21 यह किस्म 80 से 85 दिनों में पककर लगभग 6 से 8 प्रति हेक्टेयर उपज देती है।
  • टी.के.जी. 22, जे.टी. 7, 81, 27 :- 75 से 85 दिन में पककर तैयार हो जाती है, 30 से 35 दिन में इस पर फूल आने लगते हैं तथा 8 से 10 प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है।
  • इसके साथ ही किसान इन किस्मों की बुआई कर अधिक उत्पादन भी प्राप्त कर सकता है जैसे:
  • टी.सी. 25, आर.टी. 46, टी. 13, आर. टी. 125, टी. 78, आर. टी. 127, आर. टी. 346, वी आर आई- 1, पंजाब तिल 1, टी एम वी- 4, 5,  6, चिलक रामा, गुजरात तिल 4, हरियाणा तिल 1, सी ओ- 1, तरुण, सूर्या, बी- 67, प्यायूर- 1, शेखर और सोमा आदि।
बुवाई का समय
गर्मी के मौसम में किसान फरवरी माह में इसकी बुआई कर सकते हैं।

बीज दर
यदि किसान छिडकाव विधि से बुवाई करता है तो 5 से 6 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है, यदि पंक्ति में बोते हैं तो 4 से 5 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। अधिक उपज के लिए पौधे से पौधे की दूरी 8 सेमी रखनी चाहिए।

खाद और उर्वरक
अधिक उपज प्राप्त करने के लिए किसान भाई को बुवाई से पूर्व 250 किग्रा जिप्सम का प्रयोग करना चाहिए साथ ही 100 से 120 किग्रा यूरिया प्रति हेक्टेयर खेत में डालना चाहिए।

सिंचाई
गर्मियों में इसकी 8 से 10 दिनों में सिंचाई कर देनी चाहिए।

कीटों से फसल सुरक्षा
तिल में पत्ती और फलों के बोलवर्म का खतरा अधिक होता है। कीट पत्तियों और फलों को खाकर जाल बनाते हैं।
कीट नियंत्रण फसल में जैविक कीट नियंत्रण पर जोर दिया जाता है क्योंकि रासायनिक कीट नियंत्रण से फसल की लागत बढ़ने के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः जैविक नियंत्रण में बुवाई से पूर्व नीम की खली 250 किग्रा0 प्रति हे0 एवं ट्राइकोडर्मा हर्जियानम 4 ग्राम प्रति किग्रा0 बीजोपचार के साथ 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से मिट्टी में मिलाकर बुआई करें। जब फसल डेढ़ माह की हो जाए तो नीम आधारित एजाडिरिचटिन 3 मिली प्रति लीटर पानी की दर से या नीम का तेल 10 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। मूंग की मिश्रित खेती करने से फसल में कीट का प्रकोप कम होता है तथा उपज में वृद्धि होती है।

रोग नियंत्रण
तिल का फाइलोडी- यह माइक्रोप्लाज्मा के कारण होता है। इस रोग के कारण पौधों की पुष्प व्यवस्था पत्तियों के विकृत रूप में परिवर्तित होकर गुच्छा बन जाती है।
फाइटोफ्थोरा झुलसा रोग- इस रोग के आने पर पौधों की पत्तियां तथा कोमल भाग झुलस जाते हैं।
एकीकृत रोग नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 4 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित कर बुआई करें। नीम के तेल का 10 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

किसान भाइयों तिल की खेती में सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली बात यह है कि जब इसके पौधों में फूल आ जाएं तो इसकी अधिक सिंचाई नहीं करनी चाहिए नहीं तो फूल गिरने की संभावना रहती है।

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