आइये जानते है गर्मियों की जैविक मूंग की फसल में हानिकारक कीट और उनके रोकथाम के उपाय

आइये जानते है गर्मियों की जैविक मूंग की फसल में हानिकारक कीट और उनके रोकथाम के उपाय
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Kisaan Helpline

Crops Apr 10, 2021
मिट्टी उपचार
फसल को बीज जनित एवं मृदा जनित बीमारियों से बचाने के लिए 100 किलोग्राम गोबर खाद में 10 किलो ट्राईकोडर्मा को बुवाई के 15 से 20 दिन नमीयुक्त छायादार स्थान में रखकर उसे बुवाई से पूर्व खेत में डालें जिससे मृदा जनित रोग से फसल की सुरक्षा की जा सके।

बीज उपचार
जैव उर्वरकों से बीज उपचार: जैव उर्वरक प्रकृति में उपस्थित नाईट्रोजन एवं मृदा में उपस्थित फास्फोरस, जिंक (अघुलनशील को घुलनशील बनाकर) आदि आवश्यक पोषक तत्व पौधों को उपलब्ध कराते हैं। जिससे आवश्यकता से अधिक रसायनिक उर्वरकों की आवश्यकता नहीं पड़ती एवं हमारी लागत भी कम होती है, इस हेतु राईजोबियम, पी. एस. बी. (फास्फोरस घोलक जीवाणु) आदि सूक्ष्मजीवों से बीजोपचार किया जाता है।
इसके अलावा फसल को मृदा जनित बीमारियों से बचाने के लिए कुछ लाभदायक सूक्ष्म जीव जैसे ट्राईकोडर्मा, स्यूडोमोनास सूक्ष्म जीवों का उपयोग बीज उपचार में करें।
बीज उपचार हेतु 10 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से इन लाभदायक सूक्ष्म जीवों का उपयोग किया जा सकता है।

पौध सरंक्षण
गर्मियों में किसान मूंग को एक नकदी फसल के रूप में बुवाई करते हैं। यदि फसल में सही समय पर कीट नियंत्रित न किया जाए, तो फसल के उत्पादन व गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ता है। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए फसल में कीटों व रोगों का जैविक विधियों द्वारा किस प्रकार से नियंत्रित किया जा सकता है।

हानिकारक कीट एवं उनके रोकथाम के उपाय
रसचूसक कीट
सफेद मक्खी : इसका प्रकोप पौधे के एक पत्ती अवस्था से ही प्रारम्भ हो जाता है जो कि फसल की हरी अवस्था तक प्रकोप करता रहता है। शिशु एवं वयस्क पौधे से रस चूसते हैं। गंभीर प्रकोप में पत्तियां मुड़ जाती हैं। यह मक्खी पीले मोज़ेक वायरस रोग के प्रसार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि संक्रमण अधिक है, तो युवा मक्खियों के शरीर से हनीड्यू स्राव बाहर निकलता है और उस पर काली धूमिल फफूंद का विकास दिखाई देता है जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में रूकावट आ जाती है।

माहू: निम्फ और वयस्कों का रंग काला होता है। शुरुआत में उनकी संख्या कम होती है, लेकिन मादा सीधे बच्चों को जन्म देती है, जिसके कारण उनकी संख्या बढ़ जाती है। माहू युवा शाखाओं, पत्तियों और फलियों में चिपके हुए दिखाई देते हैं। निम्फ और वयस्क कीट युवा तनों से रस चूसते है, जिसके परिणामस्वरूप पत्तियां पीली हो जाती हैं। पौधे की वृद्धि में रुकावट आती है। अधिक संक्रमण में, पौधे के ऊपरी भाग और उसकी फली मुड़ जाते है और उत्पादन और गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। माहू के शरीर से हनीड्यू स्राव बाहर निकलता है जो पत्तियों की सतह पर चिपक जाता है, और वे चमकदार दिखाई देते हैं। इस पदार्थ पर काली कवक बढ़ती है। जिससे पूरा पौधा काला हो जाता है। पत्तियां काली हो जाने पर प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में रुकावट आ जाती है।

रोकथाम के उपाय
माहू के संक्रमण के साथ साथ, परभक्षी कीट, लेडी बर्ड बीटल भी देखी जाती है। इस बीटल के लार्वा और वयस्क (पीले पट्टियों के साथ काले रंग का) माहू को खाते हैं और माहू की संख्या को कम करते हैं। एक और परभक्षी कीट, क्राईसोपा लार्वा भी माहू को खाते हैं। ऐसे समय में कीटनाशकों के छिड़काव टालें।
पीला विषाणु रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला दें।
पीले चिपचिपे ट्रेप का उपयोग करें चाहे तो इन्हें घर पर भी बना सकते हैं टीन की प्लेट या चादर में पीले रंग का पेंट करके उसमें ग्रीस या सरसों का तेल लगाकर उपयोग कर सकते हैं इन्हें प्रति एकड़ 20 से 25 ट्रेप उपयोग किये जा सकते हैं।
जैविक कीटनाशी वर्टिसेलियम लेकैनी का छिड़काव करें।
पत्तियों एवं फलियों को क्षति पहुंचाने वाले हानिकारक कीट
हरी अद्र्धकुण्डलाकार इल्ली : कीट की इल्ली अवस्था फसल की पत्तियाँ खाकर नुकसान पहुंचाती है। जिससे पत्तियों पर छोटे-छोटे छिद्र बनते हंै। तृतीय अवस्था की इल्ली के खाने से बड़े छिद्र बनते हंै। इल्लियाँ मोटी शिरायें छोड़कर पूर्ण पत्तियाँ खाती हैं। छोटी इल्ली द्वारा पत्तियों में छोटे-छोटे छेद बनाकर खाती है जबकि बड़ी इल्लियों पत्तियों पर बड़े एवं अनियमित छेद करती है। अधिक प्रकोप अवस्था में फसल की पत्तियों के केवल शिराएं बची रह जाती हैं।

तम्बाकू की इल्ली : कीट की नवजात इल्लियाँ समूह में रहकर पत्तियों का पर्ण हरित खुरचकर खाती है, जिससे ग्रसित पत्तियाँ जालीदार हो जाती है जो कि दूर से ही देख कर पहचानी जा सकती है। पूर्ण विकसित इल्ली पत्ती, कली एवं फली तक को नुकसान करती है।

बिहार काम्बलिया कीट : नवजात इल्लियाँ अंड-गुच्छों से निकलकर एक ही पत्ती पर झुण्ड में रह कर पर्ण हरित खुरच कर खाती है। नवजात इल्लियाँ 5-7 दिनों तक झुण्ड में रहने के पश्चात पहले उसी पौधे पर एवं बाद में अन्य पौधों पर फ़ैल कर पूर्ण पत्तियाँ खाती है। जिससे पत्तियाँ पूर्णत: पर्ण विहीन जालीनुमा हो जाती है। इल्लियों द्वारा खाने पर बनी जालीनुमा पत्तियों को दूर से ही देख कर पहचाना जा सकता है।

फल्ली छेदक : नवजात इल्लियाँ कली, फूल एवं फल्लियों को खाकर नष्ट करती है पर फल्लियों में दाने पडऩे के पश्चात इल्लियाँ फल्ली में छेद कर दाने खाकर आर्थिक रूप से हानि पहुंचाती है। फल्ली के समय 3-6 इल्लियाँ प्रति मीटर होने पर फसल की पैदावार में 15-90 प्रतिशत तक हानि हो सकती है।

रोकथाम के उपाय
फेरोमोन ट्रेप 10-12/हे. लगाकर कीट प्रकोप का आकलन एवं उनकी संख्या कम करें। अंडे व इल्लियों के समूह को इकट्ठा कर नष्ट कर दें।
40-50/हे. खूंटियां (3-5 फीट ऊँची) पक्षियों के बैठने हेतु फसल की शुरुआत से ही लगाये। जिन पर पक्षी बैठ कर इल्लियाँ खा सके। निरंतर फसल की निगरानी करते रहें। जब कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर से ऊपर होने पर सिफारिश अनुसार ही कीटनाशक का छिड़काव करें।
जैविक कीटनाशक बोवेरिया बेसियाना 400 मिली/ एकड़ का उपयोग करें।

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