गुणों से भरपूर चना हमारे आहार का प्रमुख स्रोत है। हमारे आहार को पोषक बनाता चना ठंडे मौसम की फसल है लेकिन बढ़ते तापमान के कारण इसकी उपज लगातार गिर रही है। चिंता का विषय ये है की, किसान भी इस खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने चने में ऐसे जेनेटिक कोड की खोज की है, जिसकी मदद से विकसित प्रजाति पर सूखा और बढ़ते तापमान का कोई असर नहीं पड़ेगा। उत्पादन भी बेहतर होगा और किसानो को इस से बहोत राहत मिलेगी। वैश्विक स्तर का यह शोध कृषि वैज्ञानिक डा. राजीव वाष्र्णेय के सहयोग से सफल हुआ है। डा. वाष्र्णेय चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय के जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग में शोधार्थी रहे हैं।
किया गया यह शोध विश्व प्रसिद्ध 'नेचर जेनेटिक्स' पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है। 429 प्रजातियों पर रिसर्च कृषि वैज्ञानिक डा. राजीव कई साल से चने की ऐसी प्रजाति खोजने में जुटे हैं, जो बढ़ते तापमान में भी भरपूर उत्पादन दें और पोषक तत्वों की भी प्रचुरता हो। डा. राजीव ने चने की 429 प्रजातियों पर रिसर्च की। काफी समय के
बाद इसमें उन्होंने एक ऐसे जीन को खोजा है, जो सूखा और बढ़ते तापमान में भी फसल को सूखने नहीं देगा। इस जेनेटिक कोड की सहायता से चने की ऐसी प्रजाति विकसित की जाएगी, जिस पर उच्च तापमान का कोई असर नहीं होगा और पैदावार भी भरपूर मिलेगी।
वैश्विक स्तर पर 45 देशों के 21 शोध संस्थानों और 39 वैज्ञानिकों की टीम इस रिसर्च में जुटी रही। इसके प्रमुख डा. राजीव वाष्र्णेय रहे हैं। डा. वाष्र्णेय वर्तमान में इंटरनेशनल क्राप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फार सेमी-एरिड ट्रापिक्स, हैदराबाद में रिसर्च प्रोग्राम डायरेक्टर हैं। ये हैं प्रभावी जींस डा. वाष्र्णेय बताते हैं कि चने में आरइएन-1, बी-1, 3, ग्लूकेनेज, आरइएफ-6 जैसे जींस की खोज की गई है। इससे चने की नई प्रजाति विकसित कर सकेंगे। इस प्रजाति की फसल 38 डिग्री तापमान पर भी भरपूर उपज दे सकती है।
क्रांतिकारी होगा यह कदम चने की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और बिहार में होती है। इन प्रदेशों में देश के कुल चना क्षेत्रफल की लगभग 90 प्रतिशत फसल पैदा होती है जबकि कुल उत्पादन का करीब 92 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं प्रदेशों से प्राप्त होता है। भारत चने का सबसे अधिक उत्पादक है। चौ. चरण सिंह विवि में जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग के प्रोफेसर और डा. वाष्र्णेय के शिक्षक रहे पीके गुप्ता का कहना है कि सूखा और गर्मी से बेअसर प्रजाति विकसित करने में डा. राजीव का यह शोध क्रांतिकारी कदम साबित होगा।