Vikas Singh Sengar
09-03-2022 01:57 AMखीरे की खेती
विकास सिंह सेंगर, संजय दत्त गहतोड़ी1, गोविंद कुमार, सलोनी सिंह , श्वेता डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर
शिवालिक इंस्टीट्यूट आफ प्रोफेशनल स्ट्डीज देहरादून उत्तराखंड
कद्दूवर्गीय फसलों में खीरा का महत्वपूर्ण स्थान है। खीरा का उत्पादन देश भर में किया जाता है। गर्मियों में खीरे की बाजार में काफी मांग रहती है। मुख्यत: साथ सलाद के रूप में कच्चा खाया जाता है। ये शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है। बाजार मांग को देखते हुए जायद सीजन में इसकी खेती करके अच्छा लाभ कमाया जा सकता है खीरे के बीज का उपयोग तेल निकालने के लिए किया जाता है, जो शरीर और मस्तिष्क के लिए बहुत अच्छा होता है। खीरे में 96 प्रतिशत पानी होता है, जो गर्मी के मौसम में अच्छा होता है, 100 ग्राम खाने योग्य भाग में 96.3 प्रतिशत जल, 2.7 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 0.4 प्रतिशत प्रोटीन, 0.1 प्रतिशत वसा और 0.4 प्रतिशत खनिज पदार्थ पाया जाता है। इसके अलावा इसमें विटामिन बी की प्रचुर मात्राएँ पाई जाती हैं।
उन्नत किस्में
जलवायु व मिट्टी
अच्छे जल निकास वाली बलुई एवं दोमट मिट्टी में अच्छी रहती है।
बुवाई का समय
खेत की तैयारी:
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके 2-3 जुताई देशी हल से कर देनी चाहिए। इसके साथ ही 2-3 बार पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा बनाकर समतल कर देना चाहिए।
बीज की मात्रा:
2.5 -3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
बुवाई का तरीका
1.5-2 मीटर की दूरी पर लगभग 65-75 से.मी चौड़ी नाली के दोनों ओर मेड़ के पास 1-1 मी. के अंतर पर 4-5 बीज की एक स्थान पर बुवाई करते हैं।
खाद व उर्वरक
15-20 दिन पहले 20-25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद मिला देते हैं। अंतिम जुताई के समय 20 कि.ग्रा नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा फास्फोरस व 50 कि. ग्रा पोटाशयुक्त उर्वरक मिलाते हैं। फिर बुवाई के 40-45 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग से 30 कि.ग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से खड़ी फसल में प्रयोग की जाती है।
सिंचाई
जायद में हर सप्ताह हल्की सिंचाई करना चाहिए। वर्षा ऋतु में सिंचाई वर्षा पर निर्भर करती है। ग्रीष्मकालीन फसल में 5-6 दिनों के अंतर पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
निराई-गुड़ाई
खुरपी या हो के द्वारा खरपतवार निकालना चाहिए। ग्रीष्मकालीन फसल में 15-20 दिन के अंतर पर 2-3 तथा वर्षाकालीन फसल में 15-20 के अंतर पर 4-5 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है।
तोड़ाई
बुवाई के लगभग दो माह बाद फल देने लगता है। जब फल अच्छे मुलायम तथा उत्तम आकार के हो जायें तो लताओं से तोडक़र अलग कर लेते हैं। प्रति हे. 50 -60 क्विंटल फल प्राप्त किए जा सकते है।
प्रमुख कीट
रोग नियंत्रण
चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू)
फफूंदीनाशक दवा जैसे कैराथेन या कैलिक्सीन आधा मि.ली. दवा एक लीटर पानी में घोल बनाकर 7-10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें, प्रोपीकोनाजोल 1 मि.ली. दवा 4 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
मृदुल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू)
बीजों को मेटालेक्जिल नामक कवकनाशी से 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए, मैंकोजेब 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम/लीटर पानी)
म्लानि एवं जड़ विगलन रोग
ट्राइकोडर्मा 3-5 कि. ग्रा./हे की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर खेत में प्रयोग करें, रोग ग्रसित पौधों को खेत से निकालकर जला देना चाहिए, बीज को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए, फल विगलन रोग ट्राइकोडर्मा 5 कि.ग्रा./हे की दर से खेत में डालें, खेत में उचित जल निकाल की व्यवस्था करें।
श्यामवर्ण (एन्थ्रेकनोज)
बीज को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए। खेत में रोग लक्षण शुरू होने पर कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल 10 दिन के अंतराल पर छिड़क देना चाहिए।
खीरा मोजैक वायरस
रोग वाहक कीटों से बचाव करने के लए थायोमिथेक्साम 0.05 प्रतिशत (0.5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का घोल बनाकर 10 दिन के अंतराल में 2-3 बार छिड़काव फल आने तक करें।
उपज
350 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
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