आम के फल मक्खी का प्रबन्धन कीटनाशकों के बजाय फेरोमन ट्रैप से करें

Sanjay Kumar Singh

24-04-2023 11:38 AM

प्रोफेसर (डॉ) एस.के.सिंह
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवम्
सह निदेशक अनुसंधान
डॉ राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय
पूसा, समस्तीपुर - 848 125

आम को फलों का राजा कहते है। भारत वर्ष में विश्व का लगभग 54 प्रतिशत से अधिक आम होता है। आम उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश एवं बिहार में प्रमुखता से इसकी खेती होती है। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के वर्ष 2020-21 के संख्यिकी के अनुसार भारतवर्ष में 2316.81 हजार हेक्टेयर में आम की खेती होती है जिससे 20385.99 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। आम की राष्ट्रीय उत्पादकता 8.80 टन प्रति हेक्टेयर है। बिहार में 160.24 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती होती है जिससे 1549.97 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है। बिहार में आम की उत्पादकता 9.67 टन प्रति हे. है जो राष्ट्रीय उत्पादकता से थोड़ी ज्यादा है।

आम की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि आम के बाग का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन किया जाय एवम रोग एवम कीड़ों से होने वाले नुकसान को कम किया जाय। आम की उत्पादकता को बढ़ाने की भी असीम सम्भावनाये है। हमारे देश में कुल 35 से ज्यादा आम के किस्मों की खेती व्यापारिक स्तर पर हो रही है। आम में विटामिन सी, बीटा कैरोटीन एवम् खनिज तत्व प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं। आम लगाने से लेकर पुराने बागों तक कई सारे कीटों का हमला होता हैं जैसे कि मैंगो हॉपर, मीली बग, स्टेंम बोरर, छाल को खाने वाले कीड़े आदि लेकिन फल मक्खी ( फ्रूट फ्लाई) जो कि आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाने वाला कीट है जो 1 से लेकर 90 प्रतिशत या कभी कभी शत प्रतिशत तक आम को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके वयस्क घरेलू मक्खी के बराबर होते है, जिनपर पीले रंग की धारियां होती हैं। फल मक्खी लगभग आम के आधे आकार के फल जब तैयार हो जाते हैं ,तो इसकी मादा 300 से ज्यादा अंडे अपने जीवनकाल में देती है। सफेद रंग के बिना पैर वाले इसे मैगट्स फल के गूदे को खाते हैं और फल को सड़ा देते हैं। जिसके कारण फल गिरने लगते हैं। इसके लार्वा फिर वापस मिट्टी में चले जाते हैं और फिर से वयस्क के रूप में दिखाई देते हैं। फल मक्खी की समस्या भारत समेत विश्व के लिए नासूर है।

बिहार में पिछले साल फल मक्खी का प्रकोप कुछ ज्यादा ही देखने को मिला था, जिसकी वजह से करोड़ो रुपये का फल का नुकसान हुआ था। विगत वर्ष की तरह इस साल भी वातावरण में नमी ज्यादा देखने को मिल रहा है, इस साल भी बारिश लगातार अंतराल पर हो रही। फल मक्खी का प्रकोप उस समय देखने को मिलता है जब फल के गुद्दे पीले होने लगते है। लेकिन आवश्यकता इस बात की है की आम के फल में जब गुठली बनने लगे उसी समय से फल मक्खी के प्रबंधन के उपाय करना प्रारंभ कर देना चाहिए जिससे की फल मक्खी की जनसंख्या को कम किया जा सके।फल मक्खी के प्रबंधन हेतु कीटनाशकों के प्रयोग से बचना चाहिए क्योंकि फल पकने की प्रक्रिया शुरू हो गई रहती है उस समय कीटनाशकों के प्रयोग करने से मानव स्वास्थ प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है। फेरोमैन ट्रैप से फल मक्खी को बहुत अच्छी तरह से प्रबंधित किया जा सकता है।

फ्रूट फ्लाई ट्रैप
फल मक्खी के प्रबन्धन के लिए  “फ्रूट फ्लाई ट्रैप” सबसे बढ़िया विकल्प है। प्रति हेक्टेयर 15-20 फरोमैन ट्रैप लगाकर फ्रूट फ्लाई मक्खी को प्रबंधित किया जा सकता है। इन ट्रैपो को निचली शाखाओं पर 4 से 6 फीट की ऊंचाई पर बांधना चाहिए। एक ट्रैप से दुसरे ट्रैप के बीच में 35 मीटर की दुरी रक्खे । ट्रैप को कभी भी सीधे सूर्य की किरणों में नहीं रक्खे। ट्रैप को आम की बहुत घनी शाखाओ के बीच में नहीं बाधना चाहिए। ट्रैप बाग़ में स्पष्ट रूप से दिखाई देना चाहिए की कहा बाधा गया है। ट्रैप बांधने की अवस्था फल पकने से 60 दिन से पहले होना चाहिए और 6 से 10 सप्ताह के अंतराल पर नर की सुगंध बदलते रहना चाहिए। इसे रसायनों से भी प्रबंधित किया जा सकता है लेकिन फल के ऊपर रसायनों का प्रयोग करने से बचा जाना चाहिए। बाग को साफ़ सुथरा रख कर भी इस मक्खी की उग्रता में कमी लाया जा सकता है। फल मक्खी से आक्रांत फल को एकत्र करके बाग से बाहर ले जाकर नष्ट कर देना चाहिए। फेरोमन ट्रैप बाजार में भी मिलता है, खरीद कर आप प्रयोग कर सकते है। आप अपना ट्रैप स्वंम भी  बना सकते है ,बनाने के लिए, आपको 1 लीटर वाली इस्तेमाल की हुई प्लास्टिक की बोतलों की आवश्यकता होगी। गर्दन पर छेद करने के लिए लोहे की छड़ गरम करें। ढक्कन पर एक छेद भी करें, जो तार से गुजरने के लिए पर्याप्त हो। ढक्कन के छेद में एक तार डालें। चारा (लुयर)को बोतल के अंदर रखें। निचली पत्तियों के ठीक ऊपर पेड़ के छायादार भाग में जाल को लटका दे।

ट्रैप एक साधारण मेल एनीहिलेशन तकनीक (MAT) पर काम करता है। ट्रैप में एक छोटा प्लास्टिक कंटेनर होता है जिसमें प्लाईवुड का एक टुकड़ा होता है जिसे मिथाइल यूजेनॉल और डाइक्लोरोवोस से उपचारित किया जाता है जिसे पेड़ पर लटका दिया जाता है। यह जाल नर फल मक्खी को अपने तरफ आकर्षित करता है। नर की अनुपस्थिति में मादा प्रजनन करने में विफल हो जाती है और इसलिए फल संक्रमण से मुक्त हो जाएगा। ट्रैप लगाने से पर्यावरण को कोई नुक्सान नहीं है। इससे हमारे मित्र कीटों को कोई नुकसान नहीं है। इस तकनीक को अपनाने से कोई नुकसान नहीं होता है। इसने संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों को आमों के निर्यात की सुविधा प्रदान की है, जिन्होंने पहले फल मक्खी के कारण भारतीय आमों पर प्रतिबंध लगा दिया था।

फल मक्खी का प्रबंधन हेतु निम्नलिखित उपाय किये जा सकते है
फल मक्खी की उग्रता में कमी लाने के लिए निरंतर जमीन पर गिरे हुए फल मक्खी से संक्रमित फलों को इकट्ठा करें और उन्हें 60 सेंटीमीटर गहरे गड्ढों में डंप करके और दफन कर दें। गर्मी के दिनों में बाग की गहरी जुताई करने से इस कीट के प्यूपा गर्म सूरज की किरणों के संपर्क में आ कर मर जाते है। परिपक्व फलों की समय पर तुड़ाई की जानी चाहिए। फलों को गर्म पानी के साथ 48 डिग्री सेल्सियस पर एक घंटे के लिए रखने से भी कीट मर जाता है। प्रति हैक्टेयर 15-20 फेरोमेन ट्रैप (मिथाइल यूजेनॉल ट्रैप) का प्रयोग  करें। फलों के सेट होने के 45 दिन बाद कम से कम 15 दिनों के अंतराल पर तीन बार डेल्टामेथ्रिन 0.03 प्रतिशत का छिड़काव करने से भी इस कीट की उग्रता में कमी आती है। फलों की तुड़ाई से चार सप्ताह पहले 0.03 प्रतिशत डिमेथोएट का छिड़काव भी प्रभावी है।

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