Jasmine (चमेली)

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pH value

6.5 - 7.5

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Temperature

24°C - 32°C

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Fertilization

FYM @50-60q/acre and mix well in soil. Apply inorganic fertilizer dose of N:P:K @40:50:25 kg/acre in

Jasmine (चमेली)

Basic Info

जैसे की आप जानते है, चमेली (Jasmine) की खेती एक महत्वपूर्ण फूल की फसल है, जो व्यापारिक स्तर पर पूरे भारत में हर स्थान पर की जाती है। चमेली का पौधा 10 से 15 फीट की ऊंचाई तक पहुंच जाता है। इसके सदाबाहार पत्ते किस्म के आधार पर 2 से 3 इंच लम्बे, हरे, तना पतला और सफेद रंग के फूल पैदा करते है। चमेली के फूल मार्च से जून के महीने में खिलते हैं। इसे मुख्य तौर पर पुष्पमाला, सजावट और भगवान की पूजा के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी अत्याधिक सेन्ट जैसी सुंगंध के कारण इसको परफ्यूम और साबुन, क्रीम, तेल, शैम्पू और कपड़े धोने वाले डिटर्जेंट में खुशबू के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत में पंजाब, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और हरियाणा इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं। जबकि निचले हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, बिहार, यूपी महाराष्ट्र ,गुजरात जैसे राज्यों में नई किस्मों से अच्छी कमाई की जा सकती है।

Seed Specification

बुवाई का समय
जून से नवंबर तक बुवाई की जाती है|

दुरी
मोगरा (Mogra) के लिए,  75 से.मी. x 1 मी. या 1.2 मी x 1.2 मी. या 2 मी. x 2 मी. का फासला रखें तथा जय जुई (Jai Jui) और कुंडा (Kunda) के लिए, 1.8 x 1.8 मी. का फासला रखें।

बीज की गहराई
इसकी बुवाई 15 सैं.मी. गहराई पर करें।
 
बुवाई का तरीका
इसका प्रजनन पौधे के भाग को काटकर (कलम विधि), गाठों (कंदो द्वारा), ग्राफ्टिंग, बडिंग और टिशू कल्चर द्वारा किया जाता है।

पौधे रोपण का तरीका 
चमेली की खेती के लिए 15 दिन पहले खेत में गड्डे खोदने चाहिए, गड्डों की आपसी दुरी के 1 से 3 मीटर तक किस्म के अनुसार के अनुसार रखी जाती है, कम फैलने वाली किस्मों में आपसी दुरी कम रखी जाती है, 45 से 60 क्यूबिक सेंटीमीटर आकार के गड्डे खोदने चाहिए।

बीज की मात्रा
प्रत्येक गड्ढे में एक तैयार पौधा लगाएं।

बीज का उपचार
चमेली के फूल के लिए बीज उपचार की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि इसे प्रजनन विधि द्वारा उगाया जाता है।

Land Preparation & Soil Health

खाद एवं रासायनिक उर्वरक
चमेली के पौधों के अच्छे विकास के लिए 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद खेत तैयारी के समय आख़िरी जुताई में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। इसके साथ ही 200 किलोग्राम नाइट्रोजन, 400 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 125 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा गड्ढो में खेत तैयारी के समय देना चाहिए। तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा फूल आने की अवस्था में देना चाहिए। इसके बाद भी आवश्यकतानुसार देते रहना चाहिए।अच्छी पैदावार के लिए यह आवश्यक है।

Crop Spray & fertilizer Specification

जैसे की आप जानते है, चमेली (Jasmine) की खेती एक महत्वपूर्ण फूल की फसल है, जो व्यापारिक स्तर पर पूरे भारत में हर स्थान पर की जाती है। चमेली का पौधा 10 से 15 फीट की ऊंचाई तक पहुंच जाता है। इसके सदाबाहार पत्ते किस्म के आधार पर 2 से 3 इंच लम्बे, हरे, तना पतला और सफेद रंग के फूल पैदा करते है। चमेली के फूल मार्च से जून के महीने में खिलते हैं। इसे मुख्य तौर पर पुष्पमाला, सजावट और भगवान की पूजा के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी अत्याधिक सेन्ट जैसी सुंगंध के कारण इसको परफ्यूम और साबुन, क्रीम, तेल, शैम्पू और कपड़े धोने वाले डिटर्जेंट में खुशबू के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत में पंजाब, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और हरियाणा इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं। जबकि निचले हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, बिहार, यूपी महाराष्ट्र ,गुजरात जैसे राज्यों में नई किस्मों से अच्छी कमाई की जा सकती है।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण
चमेली की फसल को खरपतवार काफी हानि पहुंचाते है, और साथ ही खेती की लागत में भी बढ़ोत्तरी कर देते है। इनकी रोकथाम करने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहे। पौधों के पास जब और जैसे ही खरपतवार दिखाई दें, उन्हें तुरन्त निराई-गुड़ाई करके निकाल देना चाहिए। पौधों के चारों तरफ 30 सेमी जगह छोड़कर फावड़े से खुदाई करें। वर्ष में कम-से-कम दो से तीन खुदाई करना अति आवश्यक है, इससे पौधों की वृद्धि अच्छी होती है।

सिंचाई
चमेली जाति के पौधों को नियमित रूप से पानी देना चाहिए, गर्म मौसम में एक सप्ताह में कम से कम दो बार सिंचाई करें और संतुलित मौसम में इसकी सप्ताह में केवल एक बार सिंचाई करें, मौसम और भूमि के अनुसार ही भी इनकी सिंचाई महत्व रखती है।

Harvesting & Storage

कटाई छँटाई
चमेली की खेती में जिस समय फूल आना समाप्त हो जाए, उस समय से रोगग्रस्त सूखी तथा उन शाखाओं को जो दूसरी शाखाओं की वृद्धि पर कुप्रभाव डालती हैं, उनको काट कर निकाल देना चाहिए। कभी-कभी जब पौधे पुराने हो जाते हैं, और फूलों की पैदावार भी कम हो जाती है। तो उस समय ऐसे पौधों को जमीन की सतह से 15 से 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई से काट देते हैं।
इसके बाद इन पौधों के चारों तरफ खुदाई करके गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में मिला देते हैं, तथा पानी दे देते हैं। इससे जो नई शाखाएं निकलती हैं। उनमें से भी कुछ स्वास्थ शाखाओं को छोड़कर शेष शाखाओं को काट देना चाहिए। इस तरह स्वस्थ पौधों की प्राप्ति हो जाती है, और उनसे अच्छी उपज मिलती है।

फसल की कटाई
चमेली का पौधा लगाने के लगभग 9 से 10 माह बाद फूल आने प्रारम्भ हो जाते है। हालाँकि कुछ किस्मों में फूल पूरे वर्ष उपलब्ध रहते हैं। अधिकांश जातियों में फूल आने का समय मार्च से अक्टूबर तक रहता है। फूल सुबह सूर्य निकलने से पहले ही तोड़े जायें तो काफी अच्छा रहता है, इससे उनकी खुशबु बनी रहती है। यदि क्षेत्र बहुत अधिक हो तो फूलों की तुड़ाई सायं चार बजे के बाद से भी शुरू की जाती है।

भंडारण
फूलों की तुड़ाई के बाद फूलों को रात में खुले स्थान पर रखना चाहिए।आवश्यकतानुसार इन फूलों पर पानी भी छिड़कते रहना चाहिए।

उत्पादन
फूलों की उपज चमेली किस्म, भूमि की उर्वरा शक्ति और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है। फूलों को सुबह के समय तोड़ते है, तो 1 किलोग्राम भार में लगभग 9 से 13 हजार फूल होते है। प्रति वर्ष 4 से 7 किलोग्राम तक प्रति पौधा मिल जाते है।

लाभ
फूलों का न्यूनतम मूल्य 250 रू किलो है जबकि शादी या त्योहारों के समय 400 रू किलो तक बिकते हैं।

Crop Disease

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