उड़ाते थे खिल्ली, कहते थे शेखचिल्ली, अब उसी से सीख रहे फलियों की खेती करने का कौशल

उड़ाते थे खिल्ली, कहते थे शेखचिल्ली, अब उसी से सीख रहे फलियों की खेती करने का कौशल
News Banner Image

Kisaan Helpline

Agriculture Feb 19, 2019

बलिया: द्वाबा में किसान अब पारंपरिक खेती की तुलना में सब्जियों की खेती पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। सिताबदियारा क्षेत्र के कई किसान टोला बाजराय में इस क्षेत्र का एक उदाहरण हैं। उनमें से एक हैं पुरेंद्र पांडेय जो बीन्स की खेती कर रहे हैं। पंजाब और झाड़खंड राज्य में बहुतायत मात्रा में पैदा होने वाली बींस फली की खेती, द्वाबा में भी में पसंद की जा रही है।

 

BST बांध से पांच सौ मीटर की दूरी पर पांच बीघा में बीन्स की खेती करने वाले किसान पुरेंद्र पांडेय बताते हैं कि वर्ष 2018 में, वह पहली बार इसकी खेती करना शुरी की, आसपास के किसान उनसे हँस रहे थे। लेकिन अब कई किसान उत्पादन देख बीन्स की खेती सीखने के लिए भी पहुंच रहे हैं। बीन्स की फली की खेती करने के लिए खेत को पहले आलू की तरह तैयार किया जाता है।

 

इसके बाद 1.5 फीट की दूरी पर लाइन बनाते हुए, 10 इंच की दूरी पर बीज बोए जाते हैं। बीज बोते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि खेत में पर्याप्त नमी हो। इसलिए बुवाई के साथ खेत के अनुसार नाली भी बनाई जाती है। वह बताते हैं कि लोबिया, बीन्स और चाइनीज फली के रूप में जानी जाने वाली लेग्युमिनस बीन्स का उपयोग अब शादी समारोहों में सबसे ज्यादा हो रहा है। डॉक्टर बताते हैं कि इसकी सब्जी खाने से शुगर कुछ हद तक शांत रहती है।

 

यह देखभाल का तरीका - उन्होंने बताया कि जब बीज मिट्टी में बनता है, तो इसे 15 दिनों के भीतर कीटनाशक दवाई का छिड़काव कर देना चाहिए। सेम की फली का बीज लखनऊ में 700 रुपये प्रति किलो की दर से मिलता है। एक एकड़ में तीन किलो के आसपास बीज लगाए जाते हैं। यानी एक एकड़ की फलियों की खेती में करीब छह से आठ हजार रुपये का खर्च आता है। इसके अलावा अगर खेत किराए पर है, तो खर्च में छह हजार और जोड़ दिए जाते हैं। अक्टूबर तक बोई जाने वाली यह फसल जनवरी के अंत से फल देना शुरू कर देती है।

Agriculture Magazines

Pashudhan Praharee (पशुधन प्रहरी)

Fasal Kranti Marathi

Fasal Kranti Gujarati

Fasal Kranti Punjabi

फसल क्रांति हिंदी

Smart farming and agriculture app for farmers is an innovative platform that connects farmers and rural communities across the country.

© All Copyright 2024 by Kisaan Helpline