सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली अपनाकर 30-40 फीसदी पानी की बचत, कम लागत में फसल का अधिक उत्पादन, जानिए इसके बारे में

सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली अपनाकर 30-40 फीसदी पानी की बचत, कम लागत में फसल का अधिक उत्पादन, जानिए इसके बारे में
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Kisaan Helpline

Agriculture Sep 02, 2021
सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली सामान्य रूप से बागवानी फसलों में उर्वरक व पानी देने की सर्वोत्तम एवं आधुनिक विधि मानी जाती है। सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली में कम पानी से अधिक क्षेत्र की सिंचाई की जाती है। इस प्रणाली में पानी को पाइपलाइन के माध्यम से स्रोत से खेत तक पूर्व-निर्धारित मात्रा में पहुँचाया जाता है। इससे पानी की बर्बादी को तो रोका ही जाता है, साथ ही यह जल उपयोग दक्षता बढ़ाने में भी सहायक है। देखने में आया है कि सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली अपनाकर 30-40 फीसदी पानी की बचत होती है। इस प्रणाली से सिंचाई करने पर फसलों की गुणवत्ता और उत्पादकता में भी सुधार होता है। सरकार भी ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ के मिशन के अंतर्गत फव्वारा (Sprinkler) व टपक (Drop) सिंचाई पद्धति को बढ़ावा दे रही है। हमारे देश में अधिकांशतः खेतों में सिंचाई के लिये कच्ची नालियों द्वारा पानी लाया जाता है, जिससे तकरीबन 30-40 फीसदी पानी रिसाव की वज़ह से बेकार चला जाता है। ऐसे में सूक्ष्म सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल करने में फायदा-ही-फायदा है।

सब्सिडी और लाभ के बारे में
इस योजना का लाभ किसान व्यक्तिगत या कम से कम दो या अधिक किसानों के समूह के रूप में ले सकते हैं। व्यक्तिगत रूप में किसानों को वाटर टैंक के निर्माण पर 70 प्रतिशत, सोलर पंप पर 75 प्रतिशत तथा मिनी स्प्रिंकलर, ड्रिप पर 85 प्रतिशत सब्सिडी (Subsidy) दी जाएगी।
इसी प्रकार किसानों के समूह को वाटर टैंक के निर्माण पर 85 प्रतिशत, सोलर पंप पर 75 प्रतिशत तथा मिनी स्प्रिंकलर या ड्रिप पर 85 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी.
ड्रिप सिंचाई जल उपयोग कार्यक्षमता को बढ़ाता है और उत्पादकता को भी। इसका यह अर्थ है कि एक तरफ तो हम पानी के उपयोग को बढ़ायेंगे और दूसरी तरफ हम उत्पादन बढ़ाने में भी सक्षम होंगे।

ड्रिप सिंचाई और फव्वारा विधि के कुछ लाभ इस प्रकार हैं:
  • जल उपयोग कार्यक्षमता में वृद्धि किया जाना संभव है।
  • पानी के कम से कम उपयोग से अधिक से अधिक उत्पादन।
  • सस्ती लागत में उत्पादन।
  • बंजर और परती भूमि में भी खेती की जा सकती है।
  • फसल उत्पादन की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
  • खराब गुणवत्ता और खारा पानी का उपयोग किया जा सकता है।
  • पर्यावरण प्रदूषण में कमी आती है और मिट्टी के उपजाऊपन में सुधार होगा।
  • कुल मिलाकर खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना।

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