पशुओ में होनेवाले मुहपका और खुरपका रोग के लक्षण और रोकथाम कैसे करें

पशुओ में होनेवाले मुहपका और खुरपका रोग के लक्षण और रोकथाम कैसे करें
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Kisaan Helpline

Agriculture Aug 26, 2015

पशुओ मे खुर व मुहपका रोग अत्यन्त संक्रामक एवं घातक विषाणुजनित रोग है। आइये जानते है इस रोग के बारे मे विस्तार से

कारण- यह रोग पशुओं को विषाणू द्वारा होता है। मुंहपका-खुरपका रोग किसी भी उम्र की गायें एवं उनके बच्चों में हो सकता है। इसके लिए कोई भी मौसम निश्चित नहीं है, यह रोग कभी भी फैल सकता है।

मुख्य लक्षण-

· प्रभावित होने वाले पैर को झाड़ना (पटकना)

· खुर के आस-पास सूजन

· लंगड़ाना

· एक से दो दिन का बुखार

· खुर में घाव होना एवं घावों में कीड़ा लगना

· मुँह से लार गिरना

· जीभ, मसूड़े, ओष्ट आदि पर छाले पड़ जाते हैं, जो बाद में फूटकर मिल जाते है

· उत्पादन व कार्य क्षमता में अत्यधिक कमी

· प्रभावित पशु स्वस्थ्य होने के उपरान्त भी महीनों हांफते रहता है

· रोग से ठीक होने के बाद भी पशुओं की प्रजनन क्षमता वर्षों तक प्रभावित

· गर्भवती पशुओं में गर्भपात की संभावना बनी रहती है उपचार

· रोगग्रस्त पशु के पैर को नीम एवं पीपल के छाले का काढ़ा बना कर दिन में दो से तीन बार धोना चाहिए।

· एक मुट्ठी खाने के सोडा को एक बाल्टी पानी में मिलाकर घोल बनाएँ। इस घोल से मुह व खुर को दिन में कम से कम पाँच बार साफ करें।

· साफ करने के बाद तेल या घी में कत्था के पाउडर का मिश्रण बनाकर घाव पर लगाएँ।

· शहद और बोरिक एसिड के पाउडर का मिश्रण बनाकर घाव पर लगाएँ। शहद की जगह ग्लिसरीन का भी उपयोग कर सकते है।

· जब एक साथ ज्यादा पशुओं को रोग हुवा हो तो सामूहिक इलाज करें। 1.5 मीटर चौड़ा और 20 सेमी गहरा गड्ढा बनाकर उसमें 4% धोने के सोडा का घोल बनाकर उसमें से पशुओं के खुर को दिन में कम से कम दो बार धोयें। ऐसा करने से खुरियाँ धुल जाती है।

· पशुओं को हरी कोमल घास खिलाएँ। सुखी चारा घास न खिलाएँ। प्रारंभ में ऊपर अनुसार देखभाल की जाय तो अच्छी राहत रहती है। रोग आगे बढ़ने से रुक जाता है। फिर भी जरूरत के अनुसार डॉक्टर की सलाह लें।

· प्रभावित पैरों को फिनाइल-युक्त पानी से दिन में दो-तीन बार धोकर मक्खी को दूर रखने वाली मलहम का प्रयोग करना चाहिए।

· मुँह के छाले को 1 प्रतिशत फिटकरी अर्थात 1 ग्राम फिटकरी 100 मिलीलीटर पानी में घोलकर दिन में तीन बार धोना चाहिए। इस दौरान पशुओं को मुलायम एवं सुपाच्य भोजन दिया जाना चाहिए।

· पशु चिकित्सक के परामर्श पर दवा देनी चाहिए।

टीकाकरण

इस रोग का क्योंकि कोई इलाज नहीं है इसलिए रोग होने से पहले ही उसके टीके लगवा लेना फायदेमन्द है।‘‘इलाज से बेहतर है बचाव’’ के सिद्धांत पर छः माह से उपर के स्वस्थ पशुओं को खुरहा

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