पशु पोषण लोबिया एक तेज बढ़ने वाला दलहनी चारा है। अधिक पौष्टिक एवं पाचकता से भरपूर होने के कारण इसे घासों के साथ मिलाकर देने से उनकी पोषकता बढ़ जाती है। यह एक अति उत्तम कवर क्रॉप है , जो कि साथी खरपतवार को नष्ट करके भूमि की उर्वरता को बढ़ाती है। इसको खरीफ तथा जायद मौसम में छायादार परिस्थति में भी उगाया जा सकता है।
पोषकताः इसके हरे चारे में ( शुष्क भार आधार पर ) 20 - 24 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन , 43 - 49 प्रतिशत उदासीन अपमार्जक रेशे ( एनडीएफ ) , 34 - 77 प्रतिशत एसिड डिटर्जेट फाइबर ( एडीएफ ) , 23 - 25 प्रतिशत सेल्यूलोज तथा 5 - 6 प्रतिशत हेमीसेल्यूलोज होता है ।
मृदा एवं उसकी तैयारी : लोबिया सामान्यतः हल्की एवं अच्छे जल निकास वाली मृदा में बेहतर उपज देती है । खेत तैयार करने के लिए हैरो या कल्टीवेटर से दो जुताइयां करने से अंकुरण जल्दी और अच्छा होता है।
बुआई का समय : गर्मियों की फसल के लिये बुआई का उपयुक्त समय मार्च होता है। खरीफ मौसम में लोबिया की बुआई बारिश होने के पश्चात जुलाई में करनी चाहिए।
बीज दर एवं दूरी : लोबिया चारे की फसल की बुआई 25 से 30 सें . मी . की दूरी पर पंक्तियों में हल के पीछे तथा सीडड्रिल से करनी चाहिए। इसकी एकल फसल लेने के लिए 35 से 40 कि . ग्रा बीज का उपयोग करते हुए बुआई की जानी चाहिए।
खाद एवं उर्वरकः दलहनी फसल होने के कारण यह वातावरण की नाइट्रोजन से अपनी नाइट्रोजन आवश्यकता पूर्ण कर लेती है। 20 कि . ग्रा . नाइट्रोजन तथा 60 कि . ग्रा . फॉस्फोरस / हैक्टर बुआई के समय देनी चाहिए। सल्फर की कमी वाली भूमि में ( 10 पीपीएम से कम ) 20 से 40 कि . ग्रा . / हैक्टर के प्रयोग से फसल की उपज में सुधार आता है।
सिंचाई : गर्मियों की फसल में 8 से 10 दिनों के अंतराल पर 6 - 7 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है , जबकि खरीफ मौसम में आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है , लेकिन लंबे अंतराल तक बारिश न होने की दशा में 10 से 12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण : 20 से 25 दिनों की अवस्था पर खरपी अथवा वीडर कम मल्चर से एक निराई - गडाई कर खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है। इमाजेथापर ( 0 . 1 कि . ग्रा . क्रियाशील तत्व ) को 500 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 20 - 25 दिनों बाद छिड़काव करके खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है।