कीट
मूंगफली की सफेद गिडार : इसकी गिडारें पौधों की जड़े खाकर पूरे पौधे को सुखा देती हैं । गिडारें पीलापन लिए हुए सफेद रंग की होती हैं , जिनका सिर भूरा कत्थई या लाल रंग का होता है ,ये छूने पर गेन्डुल के समान मुड़कर गोल हो जाती हैं। इसका प्रौढ़ मूंगफली की फसल को हानि नहीं करता। यह प्रथम वर्षा के बाद आसपास के पेड़ों पर आकर मैथुन क्रिया करता है तथा पुनः 3 - 4 दिन बाद खेतों में जाकर अण्डे देता है।
उपचार :
मानसून के प्रारम्भ पर 2 - 3 दिन के अंदर पोषक पेड़ो जैसे नीम , गुलर आदि पर प्रौढ़ कीट को नष्ट करने के कार्बराइल 0 . 2 प्रतिशत या मोनोक्रोटोफास 0 . 05 प्रतिशत य फेन्थोएट 0 . 03 प्रतिशत या क्लोरपाइरीफास 0 . 03 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए ।
बुवाई के 3 - 4 घंटे पूर्व क्लोरपायरीफास 22 ई सी . या क्यनालफास 25 ई . सी . 25 मिली . प्रति किलो बीज की दर से बीज का उपचारित करके बुवाई करें । • खड़ी फसल में प्रकोप होने पर क्लोरपायरीफास या क्यूनालफास रसायन की 4 लीटर मात्रा प्रति हे . की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग किया करें ।
एनी सोल फैरोमोन का प्रयोग करें ।
2 . दीमक : ये सूखे की स्थिति में जड़ों तथा फलियों को काटती हैं । जड़ कटने से पौधे सूख जाते हैं । फली के अन्दर गिरी के स्थान पर मिट्टी भर देती है ।
उपचार : सफेद गिडार के लिए किये गये बीजोपचार एंव कीटनाशक का प्रयोग सिंचाई के पानी के साथ करने से दीमक का प्रकोप रोका जा सकता हैं।
हेयरी कैटरपिलर : जब फसल लगभग 40 - 45 दिन की हो जाती है तो पत्तियों की निचली सतह पर प्रजनन करके असंख्य संख्यायें तैयार होकर पूरे खेत में फैल जाते हैं । पत्तियों को छेदकर : छलनी कर देते हैं, फलस्वरूप पत्तियां भोजन बनाने में अक्षम हो जाती हैं।
उपचार : डाईक्लोरवास 75 प्रति ई . सी . 1 लीo / हे ) की दर से वर्णीय छिड़काव करना चाहिए।
3 . मूगफली क्राउन राट : अंकुरित हो रही मूंगफली इस रोग से प्रभावित होती है। प्रभावित हिस्से पर काली फफूदी उग जाती है। जो स्पषट दिखायी देती है।
उपचार : इसके लिए बीज शोधन अवश्य करना चाहिए।
4 . डाईरूट राट या चारकोल राट : नमी की कमी तथा तापक्रम अधिक होने पर यह बीमारी जड़ो में लगती है। जड़ो भूरी होने लगती हैं और पौधा सूख जाता है।
उपचार : बीज शोधन करें। खेत में नमी बनाये रखें। लम्बा फसल चक्र अपनायें
5 . बड नेक्रोसिस : शीर्ष कलियां सूख जाती हैं। बाढ़ रूक जाती है । बीमार पौधों में नई पत्तियां छोटी बनती हैं और गुच्छे में निकलती हैं। प्रायः अंत तक पौधा हरा बना रहता है , फूलङ्कफल नहीं बनते।
उपचार : जून के चौथे सप्ताह से पूर्व बुवाई न की जाय। थ्रिप्स कीट जो रोग का वाहक है का नियंत्रण निम्न कीटनाशक दवा से करें। डाईमेथोएट 30 ई.सी .एक लीटर प्रति हेक्टर की दर से।