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शीतलहर एवं पाले से सर्दी के मौसम में सभी फसलों को थोड़ा नुकसान होता है। टमाटर, मिर्च, बैंगन आदी सब्जियों पपीता एवं केले के पौधों एवं मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ, अफीम आदि वस्तुओं से सबसे ज्यादा 80 से 90% तक नुकसान हो सकता है। अरहर में 70%, गन्ने में 50% एवं गेहूं तथा जौ में 10 से 20% तक नुकसान हो सकता है।
पाला दो तरह का होता है
"पाला दरअसल दो तरह का होता है। पहला एडवेक्टिव और दूसरा रेडिएटिव अर्थात विकिरण आधारित। एडवेक्टिव पाला तब पड़ता है जब ठंडी हवाएं चलती है। ऐसी हवा की परत एक-डेढ़ किलोमीटर तक हो सकती है। इस अवस्था में आसमान खुला हो या बादल हों, दोनों परिस्थितियों में एडवेक्टिव पाला पड़ सका है।"
"परन्तु जब आकाश बिलकुल साफ हो और हवा शांत हो, तब रेडिएटिव प्रकार का पाला गिरता है। जिस रात पाला पड़ने की आंशका व्यक्त की जाती है, उस रात बादल पृथ्वी के कम्बल की तरह काम करते हैं जो जमीन से ऊपर उठने वाले संवहन ताप को रोक लेते हैं। ऐसे में बहती हवाएं इस रोकी गई हवा से मिल जुलकर तापमान एक समान कर देती हैं। और शांत हवाएं विकिरण ऊष्मा को पृथ्वी से अंतरिक्ष में जाने से रोक देती है।"
“ऐसे में हवा के नहीं चलने से एक इनवर्शन परत बन जाती है। इनवर्शन यानी एक ऐसी वायुमंडलीय दशा जो सामान्य दिनों की तुलना में उल्टी हो। सामान्य दशा में हवा का ताप ऊंचाई बढ़ने से घटता है। इनवर्शन के कारण ठंडी हवा पृथ्वी की सतह के पास इकट्ठा हो ताजी है और गर्म हवा इस पर्त के ऊपर होती है।”
"भौगोलिक परिस्थितियां भी पाले का प्रभावित करती है। ढलान की तलहटी में ठंडी हवा नीचे बैठ जाती है, क्योंकि गर्म हवा से भारी होती है। अत: घाटी में फ्रास्ट बनता है जहां ठंडी हवा घिर जाती है। यही कारण है कि पहाड़ों के शीर्ष एवं घाटियों में पाला ज्यादा पड़ता है जबकि पहाड़ के अन्य हिस्से उससे बचे रहते हैं।"
पाले से पौधे व फसल पर प्रभाव
पाले के प्रभाव से फल मर जाते है, व फूल झड़ने लगते है। प्रभावित फसल का हरा रंग समाप्त हो जाता है तथा पत्तियों का रंग मिट्टी के रंग जैसा दिखता है। ऐसे में पौधों के पत्ते सड़ने से बैक्टीरिया जनित बीमारियों का प्रकोप अधिक बढ़ जाता है। पत्ती, फूल एवं फल सूख जाते है। फल के ऊपर धब्बे पड़ जाते हैं व स्वाद भी खराब हो जाता है। पाले से प्रभावित फसल, फल व सब्जियों में कीटों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। सब्जियों पर पाले का प्रभाव अधिक होता है। कभी-कभी शत प्रतिशत सब्जी की फसल नष्ट हो जाती है। फलदार पौधे पपीता, आम आदि में इसका प्रभाव अधिक पाया गया है। शीत ऋतु वाले पौधे 2 डिग्री सेंटीग्रेड तक का तापमान सहने में सक्षम होते है। इससे कम तापमान होने पर पौधे की बाहर व अन्दर की कोशिकाओं में बर्फ जम जाती है। पाला पहाड़ के बीच के क्षेत्रों में अधिक पड़ता है। पाले के कारण अधिकतर पौधों के फूलों के गिरने से पैदावार में कमी हो जाती है। पत्ते, टहनियां और तन के नष्ट होने से पौधों को अधिक बीमारियां लगती है।
शीतलहर एवं पाले से फसल की सुरक्षा के उपाय
जिस रात पाला पड़ने की संभावना हो उस रात 12:00 से 2:00 बजे के आस-पास खेत की उत्तरी पश्चिमी दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास, मेड़ों पर रात्रि में कूड़ा-कचरा या अन्य व्यर्थ घास-फूस जलाकर धुआं करना चाहिए, ताकि खेत में धुआं हो जाए एवं वातावरण में गर्मी आ जाए। धुआं करने के लिए उपरोक्त पदार्थों के साथ क्रूड ऑयल का प्रयोग भी कर सकते हैं। इस विधि से 4 डिग्री सेल्सियस तापमान आसानी से बढ़ाया जा सकता है। पौधशाला के पौधों एवं क्षेत्र वाले उद्यानों/नकदी सब्जी वाली फसलों को टाट, पॉलिथीन अथवा भूसे से ढ़क दें। वायुरोधी टाटिया को हवा आने वाली दिशा की तरफ से बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगाएं तथा दिन में पुनः हटा दें। पाला पड़ने की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिए। नमी युक्त जमीन में काफी देर तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापमान कम नहीं होता है। इस प्रकार पर्याप्त नमी नहीं होने पर शीतलहर व पाले से नुकसान की संभावना कम रहती है। सर्दी में फसल में सिंचाई करने से 0.5 डिग्री से 2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाता है। जिन दिनों पाला पड़ने की संभावना हो उन दिनों फसलों पर गंधक के तेजाब के 0.1% घोल का छिड़काव करना चाहिए। इस हेतु 1 लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टर क्षेत्र में प्लास्टिक के स्प्रेयर से छिड़काव का असर 2 सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर पाले की संभावना बनी रहे तो गंधक के तेजाब के छिड़काव को 15-15 दिन के अंतराल पर दोहराते रहे। सरसों , गेहू, चावल, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक के तेजाब का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौह तत्व एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है, जो पौधों में रोगरोधिता बढ़ाने में एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है। दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी, एवं जामुन आदि लगा दिए जाए, तो पाले और ठंडी हवा के झोंकों से फसल का बचाव हो सकता है।
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