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नई दिल्ली। हमारे भारत देश में मिट्टी को लेकर इस तरह की कई बातें कही गईं हैं। जैसे माटी कहे कुम्हार से तू क्या रौंदे मोहे, एक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूंगी तोहे, कबीर की यह पक्तियां हम सभी ने खूब सुनी हैं। कहा तो ये भी गया है कि माटी में जन्म लेने के बाद एक दिन हम सभी को इसी माटी में मिल जाना है। लेकिन इस माटी के बारे में हम ही लोग बेहद कम जानते हैं। लेकिन बातें करने से हम कभी नहीं चूकते। इसमें हम सभी एक से एक बढ़कर उस्ताद होते हैं और अपने को दूसरे के सामने यह जताने की कोशिश करते हैं कि हम जैसा ज्ञानी और कोई नहीं। लेकिन जब इन्हीं ज्ञानी लोगों से इस मिट्टी के बारे में यह पूछने लगें कि यह प्रदुषित क्यों हो रही है तो इनके चेहरे के हाव-भाव देखने लायक होते हैं। उस वक्त हम लोग बंगले ताक रहे होते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो चारों खाने चित।
बुरा मत मानियेगा लेकिन इनमें आप ही नहीं हम सभी बल्कि दुनिया के ज्यादातर लोग इसी तरह के हैं। इसके लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने हर वर्ष 5 दिसंबर को वर्ल्ड सोएल डे की शुरुआत की थी। इनका मकसद हम जैसा अंजान ज्ञानियों को यह ज्ञान देना था कि आखिर क्यों और कैसे हम लगातार मिट्टी को प्रदुषित करने का काम कर रहे हैं। इसकी शुरुआत यूएन के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन के रोम स्थित हैडक्वार्टर से की गई थी। वर्ष 2002 में पहली बार इसको लेकर विचार आया था। इसमें सबसे बड़ा योगदान थाइलैंड का रहा था। थाईलैंड ने एक ग्लोबल सोएल पार्टनरशिप के तहत इसकी शुरुआत करने की बात की थी। हालांकि मकसद वही था कि लोगों को मिट्टी में फैल रहे प्रदूषण के लिए जागरूक करना चाहिए। 2013 में 68वीं संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में वर्ल्ड सोएल डे मनाने का प्रस्ताव रखा गया। दिसंबर 2013 में संयुक्त राष्ट्र ने इसकी विधिवत शुरुआत की और इसके लिए पांच दिसंबर का दिन तय कर दिया गया।
मिट्टी में वातावरण से कहीं अधिक होते है कार्बन
यूनाइटेड नेशन के मुताबिक जितना कार्बन हमारे वातावरण में मौजूद है उससे करीब तीन गुणा कार्बन जमीन या हमारी मिट्टी में मौजूद है। यह क्लाइमेट चेंज के लिए एक बड़ी चुनौती भी है। यूएन के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब 815 मिलियन लोगों को भूखे पेट सोना पड़ता है तो वहीं करीब दो बिलियन लोग ऐसे हैं जिन्हें पोष्टिक खाना नहीं मिलता। इसकी वजह कहीं न कहीं हम और हमारे द्वारा मिट्टी में फैलाया जा रहा प्रदूषण ही है। आप कहेंगे कि भला हम कैसे इसके लिए जिम्मेदार हैं। तो जनाब आपको इतना तो पता ही है कि 95 फीसद भोजन के लिए चीजें हमें इसी जमीन या फिर मिट्टी से मिलती हैं। ऐसे में इसको खराब करने की जिम्मेदारी आपकी और हमारी नहीं है तो फिर किसकी है। आपको बता दें कि विश्व की एक तिहाई या करीब 33 फीसद जमीन या फिर मिट्टी या फिर खेती की जमीन खराब हो चुकी है। यह बेहद चौकाने वाले आंकड़े हैं जिस पर यदि गौर नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब आप और हमारे पास शायद एक आलीशान घर तो होगा लेकिन खाने के लिए उगाने लायक जमीन नहीं होगी।
आप और हम नहीं तो कौन है जिम्मेदार
मिट्टी में बढ़ रहे प्रदूषण के लिए आप और हम ही जिम्मेदार हैं और इसके प्रभाव से हम लोग नहीं बच सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2050 तक विश्व की आबादी करीब 9 बिलियन पहुंच जाएगी। ऐसे में यदि हमने अपना रवैया नहीं बदला तो जमीन से जहरीला खाना निकलेगा। इतना ही नहीं बढ़ता प्रदूषण जमीन के अंदर मौजूद पानी को भी इतना जहरीला बना देगा कि हम इसके प्रभाव में आए बिना बच नहीं सकेंगे।
कुछ लोग हैं, हमें जानकारी होती तो नहीं करते ऐसा
आप तो ज्ञानी है लेकिन आपको इस बात का अंदाजा नहीं होगा कि मिट्टी में इतनी ताकत होती है कि वह कई तरह के जहरीले पदार्थों और तत्वों को खुद ही साफ कर देती है। लेकिन इसकी भी एक मियाद होती है। हमारी लगातार बढ़ती जरूरतें, जमीन में अधिक फसल लेने के लिए जमीन में लगातार उर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी को अंदर से खोखला कर उसकी जान निकाल रहा है। इसके अलावा लगातार होता खनन, औद्योगिकरण, शहरों का कचरा, गंदे नालों का पानी लगातार मिट्टी को खराब कर रहा है। इसके अलावा हमार हमेशा की तरह उदासीन रवैया जो कभी बदलता ही नहीं वह इसके लिए घातक साबित हो रहा है।
यूएन का यह है 2030 एजेंडा
यह कहना गलत नहीं होगा कि बदलती तकनीक ने एक तरफ जहां मिट्टी को हरा-भरा करने में और अधिक लोगों का पेट भरने में मदद की है वही कहीं न कहीं अब नुकसान भी दे रही है। लेकिन अब तकनीक की मदद से ही वैज्ञानिक मिट्टी में छिपे ऐसे प्रदूषण के बारे में भी जान पा रहे हैं जिसकी जानकारी वह पहले नहीं लगा पा रहे थे। संयुक्त राष्ट्र ने इस धरती पर मौजूद हमारे वातावरण को साफ करने के साथ मिट्टी को भी प्रदूषणमुक्त करने के लिए 2030 एजेंडा तैयार किया है। इसके तहत चरणबद्ध तरीके से मिट्टी में फैल रहे प्रदूषण से निपटने का एक रोड़मैप भी तैयार किया गया है। युनाइटेड नेशन द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का मकसद ही है कि हम थोड़ा दिमाग लगाएं और मिट्टी में हो रहे प्रदूषण को रोकने के लिए आगे आएं।
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