कोई त्यौहार हो या कोई पूजा या फिर कोई यज्ञ, अनुष्ठान या धार्मिक कार्य हर जगह फूलो की आवश्यकता को जरुरी माना जाता है, और खास करके बात अगर गेंदे के फूलो की हो तो हम ज्यादातर गेंदे के फूल का उपयोग करते है। तो आइये आज हम आपको बताते है की गेंदे के फूल की अच्छी प्रजाति कौन सी होती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित गेंदा की किस्में
1. पूसा नारंगी गेंदा : यह अफ्रीकन गेंदा वर्ग की खुले परागण वाली प्रजाति है। इस प्रजाति के पौधे औसतन 60 - 70 सेंमी, ऊँचे तथा स्वस्थ होते हैं। इसके फूल नारंगी रंग के बहुपंखुड़ियों तथा 7 - 8 सेंमी. व्यास वाले होते है। इसके फूलों की उपज 300 - 350 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है। यह प्रजाति बगीचों की क्यारियों व गमले सजावट हेतु उगाने के लिये अति उत्तम है। इसके फूल माला बनाने, धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तथा प्राकतिक रंग निकालने के लिये भी उपयुक्त हैं। उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में यह प्रजाति मुख्यतया फरवरी - मार्च में पुष्पन करती है।
2. पूसा बसन्ती गेंदा: यह अफ्रीकन गेंदा वर्ग की खुले परागण वाली प्रजाति है। इस प्रजाति के पौधे औसतन 60 -70 सेंमी. ऊँचे तथा स्वस्थ होते हैं। फूल गन्धक के समान पीले रंग के बहुपंखुड़ियों वाले तथा 6 -7 सेंमी. के व्यास वाले होते हैं। यह किस्म घरों के आसपास उद्यानों, बगीचों, गमलों तथा क्यारियों में लगाने के लिए अति उपयुक्त है। उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में यह प्रजाति मुख्यतया फरवरी - मार्च में पुष्पन करती है।
3. पूसा अर्पिता: यह फ़्रांसिसी गेंदा वर्ग की खुले परागण वाली प्रजाति है। इसके पौंधे जोड़दार वुद्वि तथा 90 से 100 सेंमी. ऊचाई वाले होते हैं। इसके पुष्प सुगंठित व मध्य आकार के नारंगी रंग के होते हैं। यह फ्रांसीसी गेंदा वर्ग में प्रचुर मात्रा में फूल देने प्रजाति हैं जिसकी औसत उपज 18 से 20 टन प्रति हेक्टयर होती है। उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में यह प्रजाति मुख्यतया मध्य दिसम्बर से मध्य फरवरी तक पुष्पन करती है।
4. पूसा बहार: यह अफ्रीकन गेंदा वर्ग की खुले परागण वाली प्रजाति है, इसके पौधे जोरदार वृद्वि तथा 75 सेंमी. ऊंचाई वाले होते हैं। इसके पुष्प सुगंठित, चपटे, आकर्षक व बड़े आकार वाले (8 - 9 सेंमी. व्यास) पीले रंग के होते हैं। यह प्रचुर मात्रा में फूल देने वाली प्रजाति है जिसमें प्रति पौधा औसतन पुष्प की सख्या 50 - 60 होती है। यह प्रजाति उद्यानों में उगाने एवं पुष्प सज्जा हेतु उपयुक्त है। उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में यह प्रजाति मुख्यतया फरवरी - मार्च में पुष्पन करती है।