इस तकनीक पर ICAR-DMR के वैज्ञानिकों ने तीन साल तक काम किया। उनका कहना है कि मशरूम की खेती में ये तकनीक पारंपरिक तरीकों की तुलना में ज़्यादा फ़ायदा देगी।
छतरी के आकार के दिखने वाले मशरूम को पौष्टिक गुणों का भंडार कहा जाता है। बाज़ार में इसकी मांग भी ज़्यादा रहती है। मशरूम की खेती से आज बड़ी संख्या में किसान जुड़े हैं। इसकी वजह भी है। छोटे और सीमांत किसान कम जगह और कम लागत में मशरूम की खेती शुरू कर अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। गेहूं,धान जैसी कई फसलों की पारंपरिक खेती के मुकाबले इसमें आमदनी ज़्यादा होती है। पिछले कुछ सालों से सरकार भी मशरूम की खेती को बढ़ावा दे रही है। इस खेती की ख़ास बात है कि ये फसल किसानों को 12 माह आमदनी देती है।मशरुम की अलग-अलग किस्मों की खेती किसान सालभर कर सकते हैं। एक ऐसी ही किस्म है बटन मशरूम। इस लेख में हम आपको बटन मशरूम की एक ऐसी तकनीक के बारे में बताने जा रहे हैं, जो न सिर्फ़ पौष्टिक गुणों से भरपूर है, बल्कि उत्पादन भी ज़्यादा देती है।
गन्ने की खोई से कंपोस्ट तैयार
आमतौर पर मशरूम की खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले कंपोस्ट को गेहूं, धान के भूसे और सरसों के भूसे से तैयार किया जाता है। इस नई तकनीक में गन्ने की खोई से कंपोस्ट को तैयार किया गया है। इस तकनीक को ICAR-DMR ( भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-खुम्ब अनुसंधान निदेशालय) ने विकसित किया है। इस तकनीक पर वैज्ञानिकों ने तीन साल तक काम किया।
क्या होती है गन्ने की खोई?
गन्ने का रस निकलने के बाद जो फसल का कचरा बचता है, उसे ही खोई यानी कि बगास (Bagasse) कहते हैं। शुरुआत में लोग खोई का इस्तेमाल नहीं जानते थे, लेकिन अब इसका इस्तेमाल जैविक खाद (Biomanure), जैविक-ईंधन (Biofuel), जैविक-प्लास्टिक (Bioplastic) बनाने में किया जाता है। अब ICAR-DMR के वैज्ञानिकों ने इससे कंपोस्ट तैयार कर मशरूम की खेती कर रहे किसानों को एक नई सौगात दी है।
पारंपरिक तरीकों की तुलना में ये तकनीक कारगर
ICAR-DMR ने अपनी रिसर्च में पाया कि बटन मशरूम की खेती में, पारंपरिक तरीकों की तुलना में गन्ने की खोई के इस्तेमाल से ज़्यादा उपज और फसल में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। वैज्ञानिकों ने दावा किया कि इस तकनीक के इस्तेमाल से उत्पादन की लागत भी कम होगी।
बटन मशरूम के ये फायदे
दिल के लिए फायदेमंद, मशरूम में मौजूद फाइबर, पोटेशियम, विटामिन सी ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखते हैं। वहीं मशरूम में भरपूर मात्रा में विटामिन डी, कैल्शियम और फास्फोरस पाया जाता है, यह हड्डियों को मजबूत रखती है। कैंसर से बचाए रखने में सहायक समेत प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।
डीएमआर सोलन के निदेशक डॉ. वीपी शर्मा ने कहा कि बटन मशरूम को गन्ने के भूसे पर तैयार करने का सफल प्रशिक्षण किया है। इसका लाभ किसानों को भी मिलेगा। गन्ने के अवशेष से तैयार भूसा गेहूं से आधे दामों में मिल जाएगा। मशरूम की पैदावार भी आठ प्रतिशत अधिक होगी। मशरूम प्रोटीन से भरपूर है।
बाज़ार में क्या है मशरूम के उत्पादों का दाम?
मशरूम से कई तरह के प्रॉडक्ट्स तैयार किए जा सकते हैं। मशरूम के पापड़, प्रोटीन का सप्लीमेंट्री पाउडर, अचार, बिस्किट, कूकीज, नूडल्स, जैम (अंजीर मशरूम), सॉस, सूप, चिप्स, सेव और भी कई उत्पाद बनाए जाते हैं। मशरूम के पापड़ 300 रुपये प्रति किलो, मशरूम का पाउडर 500 से हज़ार रुपये प्रति किलो, 200 ग्राम के मशरूम अचार की कीमत करीब 300 रुपये, 700 ml की मशरूम सॉस की बोतल 300 से 400 रुपये, मशरूम के चिप्स 1099 प्रति किलो के हिसाब से बाज़ार में बिक जाते हैं।
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