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अलीगढ़ जिले के अतरौली इलाके के गांव गनियावली के एक किसान ने ऐसा कमाल कर दिखाया है कि जिसको भी पता चल रहा है दांतों तले ऊँगली दबाने पर विवश हो जा रहा है। जलालुद्दीन नाम के किसान ने केसर की खेती की है। इन दिनों जलालुद्दीन केसर के फूलों को चुन-चुन कर सुखा रहे हैं। साथ ही वे केसर बेचने के लिए खरीदारों की तलाश भी कर रहे हैं।
आमतौर पर कश्मीर के ठंडे इलाकों में केसर की पैदावार होती है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि अलीगढ़ में किसी किसान ने केसर उगाई हो। अब अगर इस हाइब्रिड केसर का अर्क अच्छा हो तो 70 हज़ार रुपये प्रति किलो के दर से बिक सकता है।
जलालुद्दीन ने बताया कि कश्मीर में तैनात रहे एक फौजी ने अपने रिश्तेदार गांव बहरावद निवासी राजेंद्र सिंह को केसर के कुछ बीज लाकर दिए थे। चार साल तक राजेंद्र केसर को अपने ही घर में उगाते रहे और उसका बीज तैयार किया।
क्योंकि जलालुद्दीन और राजेंद्र गहरे दोस्त हैं, दोनों ने तय किया किवे केसर उगायेंगे। लेकिन आर्थिक रूप से कमज़ोर जलालुद्दीन के लिए सात लाख रुपए प्रति किलो केसर की बीज ख़रीदना संभव नहीं था। इसीलिए दोनों ने मिलकर यह तय किया कि खेती करंगे जलालुद्दीन और बीज राजेंद्र सिंह का रहेगा और फसल का मुनाफा आधा-आधा बांटा जायेगा। इसके बाद जलालुद्दीन ने लगभग तीन बीघा खेत में केसर के बीज बो दिए।
कैसे होती है केसर की खेती?
केसर की खेती भारत में जम्मू के किश्तवाड़ तथा जन्नत-ए-कश्मीर के पामपुर (पंपोर) के सीमित क्षेत्रों में अधिक की जाती है। केसर को ठंडा ,सूखा और धूप जलवायु पसंद है और समुद्र स्तर से ऊपर 1500 से लेकर 2500 मीटर ऊंचाई में बढ़ता है। केसर का विकास मिट्टी के विभिन्न प्रकार रेतीले चिकनी बलुई मिट्टी से लेकर दोमट मिट्टी में कर सकते हैं। हालांकि सड़न से बचने के लिए उचित जल निकासी की जरूरत है।
अमेरिकन हाइब्रिड स्पेनिश केसर का 50 ग्राम बीज एक बीघा जमीन पर रोपा जाता है। जिससे पांच महीने में करीब 10 किलो केसर का उत्पादन हो जाता है। यदि टेस्टिंग में केसर का 45 प्रतिशत अर्क निकला, तो उसका भाव 70 हजार रुपए किलो तक मिल सकता है। अन्य फसलों की तुलना में केसर की खेती करना सरल है। ड्रिप पद्धति से इसकी सिंचाई होती है। इसके पौधों में कोई बीमारी भी नहीं लगती। जैविक फसल का पौधा 4-5 फुट लंबा होता है, जिस पर दो सौ से ढाई सौ तक फूल लगते हैं। इन्ही की पंखुड़ियों से केसर मिलता है।\
निश्चित रूप से जलालुद्दीन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के सामने एक महत्वपूर्ण उदहारण पेश किया है। क़र्ज़, मौसम और सरकारी उपेक्षा झेल रहे किसान क्या अब केसर की खेती की ओर रुख करेंगे, यह देखना रोचक रहेगा।
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