Kisaan Helpline
खेती के पारंपरिक तरीकों को छोड़ अब किसान वैज्ञानिक विधियों की ओर बढ़ रहे हैं। इसी कड़ी में तिल की नई उन्नत किस्म 'विभूति' ने किसानों के बीच नई उम्मीद जगाई है। न केवल इसकी पैदावार अधिक है, बल्कि बाजार में भी इसका भाव अच्छा मिल रहा है, जिससे किसानों की आमदनी में उल्लेखनीय इजाफा हो रहा है।
'विभूति' तिल की किस्म क्यों है खास?
'विभूति' किस्म को खास
तौर पर सूखा सहन करने की क्षमता के साथ तैयार किया गया है। यह किस्म ऐसे इलाकों
में भी अच्छा उत्पादन देती है,
जहाँ बारिश की अनियमितता एक बड़ी चुनौती रही है। साथ ही इसके दाने चमकदार और
तेल की मात्रा अधिक होने के कारण बाजार में इसकी मांग भी ज्यादा रहती है।
खेती की सही तकनीकें
जो बनाएं तिल उत्पादन को लाभकारी:
1. बीज की बुआई और बीजोपचार:
खेती की शुरुआत बीज से होती है। 'विभूति' किस्म की बुआई
के लिए प्रति हेक्टेयर 5 किलो
बीज की आवश्यकता होती है। बीज बोने से पहले कार्बेंडाजिम, पी.एस.बी., एजोटोबैक्टर और
जे.एस.बी. जैसे सूक्ष्मजीवों से बीजोपचार करने की सलाह दी जाती है। इससे बीजों की
अंकुरण क्षमता बढ़ती है और पौधे शुरुआती चरण में ही मजबूत बनते हैं।
2. उर्वरक और पोषक तत्व प्रबंधन:
अच्छी पैदावार के लिए खेत में 5 टन गोबर की
खाद के साथ-साथ 60:40:20
एन.पी.के. (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश) और 25 किलो जिंक
सल्फेट प्रति हेक्टेयर देना आवश्यक है। इससे न केवल पौधे जल्दी बढ़ते हैं, बल्कि फसल की
गुणवत्ता भी बेहतर होती है।
3. सिंचाई का वैज्ञानिक तरीका:
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सही समय पर सिंचाई करने से पौधों को भरपूर नमी मिलती है।
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पहली सिंचाई बुआई के 25-30 दिन
बाद,
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दूसरी 40-55 दिन
पर,
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और तीसरी सिंचाई 60-65 दिन
के बीच करनी चाहिए।
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यह तरीका फसल के बढ़ने और दाने भरने के समय पौधों को जरूरी
पानी प्रदान करता है।
4. खरपतवार और कीट-रोग नियंत्रण:
तिल की खेती में खरपतवार बड़ी समस्या बन सकते हैं। इसलिए
बुआई से पहले और बाद में ऑक्सीफ्लोरोफेन और मेट्रीब्यूजिन जैसी प्रभावी औषधियों का
उपयोग करना चाहिए।
फसल को कीटों से बचाने के लिए थायोमेथोक्सम का छिड़काव
असरदार साबित होता है। वहीं,
फफूंद से बचाव के लिए कार्बेंडाजिम और मैंकोजेब का मिश्रित स्प्रे फायदेमंद है, जिससे पत्तियों
पर धब्बे और अन्य बीमारियों से सुरक्षा मिलती है।
कितनी बढ़ सकती है उपज?
वैज्ञानिक तकनीकों का सही तरह से पालन करने पर किसान 20-25% अधिक उत्पादन
प्राप्त कर सकते हैं। सामान्य मौसम और बेहतर प्रबंधन के तहत एक हेक्टेयर में औसतन 8 से 10 क्विंटल तक
तिल का उत्पादन संभव है।
कृषि वैज्ञानिकों का
सहयोग बना रहा है ताकत:
'विभूति' किस्म के
प्रचार-प्रसार और प्रशिक्षण कार्यों में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर
की अहम भूमिका रही है। किसानों को समय-समय पर प्रशिक्षण, बीज वितरण और
तकनीकी परामर्श प्रदान किए जा रहे हैं,
जिससे उन्हें खेती में नया आत्मविश्वास मिला है।
'विभूति' किस्म ने यह
साबित कर दिया है कि अगर वैज्ञानिक तकनीकों का सही उपयोग किया जाए, तो खेती को न
केवल मुनाफे का व्यवसाय बनाया जा सकता है,
बल्कि किसानों का जीवन स्तर भी सुधारा जा सकता है। आज के समय में जब खेती एक
चुनौतीपूर्ण पेशा बन गया है,
तब इस तरह की पहलें किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण बन रही हैं।