Kisaan Helpline
भारत के अनेक हिस्सों में मक्का (भुट्टा) एक प्रमुख खरीफ फसल के रूप में उगाई जाती है। यह न केवल पशु चारे और मानव भोजन का अहम स्रोत है, बल्कि उद्योगों में भी इसका उपयोग किया जाता है। जगह-जगह किसानों से मिल रही शिकायतों के अनुसार, इस सीजन मक्का (भुट्टा) की फसल में अपेक्षित विकास नहीं हो पा रहा है। कई जगहों पर पौधों की वृद्धि रुक गई है, जिससे किसानों की चिंता बढ़ गई है। ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों की सलाह और वैज्ञानिक तकनीकों का सहारा लेकर किसान फसल को बेहतर बना सकते हैं।
मक्का की खेती में हो
रही समस्याएं
मक्का की बुवाई करने वाले कई किसानों की फसल को 50 से 55 दिन हो चुके
हैं। इस समय फसल में खरपतवार (जंगली घास) का असर बढ़ने लगता है, जिससे पौधों को
पोषक तत्व मिलना कम हो जाता है और उनकी ग्रोथ रुक जाती है। इसके अलावा मक्का की
फसल में पोषक तत्वों की कमी और कुछ रोगों का खतरा भी इस समय अधिक रहता है।
खरपतवार नियंत्रण है
सबसे ज़रूरी कदम
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मक्का की खेती में 40 से 55 दिन की अवधि
बहुत ही संवेदनशील होती है। इस समय यदि खरपतवारों को नियंत्रित नहीं किया गया तो
यह फसल की पैदावार को 30 से 40 प्रतिशत तक
घटा सकते हैं।
इसलिए,
खरपतवार नियंत्रण के लिए एट्राजिन 50%
डब्ल्यू पी और टेम्बोट्रायोन 34% एस सी
का संयोजन सबसे प्रभावी माना गया है। यह दवा संकरी और चौड़ी पत्तियों वाले दोनों
प्रकार के खरपतवारों को प्रभावी रूप से नष्ट कर देती है।
प्रयोग विधि:
·
फसल की अवस्था के अनुसार छिड़काव करें।
·
सही मात्रा और समय का विशेष ध्यान रखें।
·
छिड़काव के बाद खेत में 2–3 दिन तक सिंचाई न करें।
पोषक तत्वों की पूर्ति
भी जरूरी
मक्का की फसल की बढ़वार में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और
पोटाश जैसे प्रमुख पोषक तत्वों की जरूरत होती है। विशेषकर यदि पत्तियां पीली पड़
रही हैं या पौधों की ऊंचाई कम है तो यह नाइट्रोजन की कमी का संकेत हो सकता है।
ऐसे में किसान यूरिया का फोलियर स्प्रे या टॉप ड्रेसिंग कर
सकते हैं। इसके अलावा, जिंक, सल्फर और
मैग्नीशियम जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व भी फसल की गुणवत्ता को सुधारने में मदद करते
हैं। साथ ही शानदार बढ़वार और पैदावार के लिए आप टाटा स्टील धुर्वी गोल्ड का 25-50 किलोग्राम /
एकड़ की दर से प्रयोग कर सकते है।
सुनिश्चित करें ये
सावधानियां:
·
बुवाई के बाद 20-25 दिन
और फिर 45-50 दिन
के बीच दो बार निराई-गुड़ाई जरूर करें।
·
फसल में पानी भराव से बचाएं।
·
कीट एवं रोगों की समय-समय पर जांच करें।
किसानों के लिए सलाह:
मौसम परिवर्तन,
मिट्टी की स्थिति और कीट-रोगों को ध्यान में रखते हुए फसल की देखभाल जरूरी हो
गई है। वैज्ञानिक तरीके अपनाकर किसान कम लागत में ज्यादा उत्पादन पा सकते हैं।
सरकार द्वारा भी कई योजनाओं के तहत मुफ्त या सब्सिडी पर दवाइयां और खाद उपलब्ध
कराई जा रही हैं। किसानों को चाहिए कि वे स्थानीय कृषि अधिकारी या कृषि विज्ञान
केंद्र से संपर्क कर सही जानकारी प्राप्त करें।
यदि किसान समय पर खरपतवार नियंत्रण, पोषक तत्वों की
पूर्ति और खेत की सही निगरानी करें,
तो भुट्टे की फसल से शानदार उत्पादन लिया जा सकता है। वैज्ञानिक सलाह को
अपनाकर ही खेती को फायदे का सौदा बनाया जा सकता है।