Giloy ( गिलोय)

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गिलोय (Giloy) एक दिव्य ओषधि है, जिसे लाखों लोगों ने उपयोग में ला कर कई बिमारियों से छुटकारा पाया है। गिलोय देखने में लगभग पान के पत्ते की तरह होती है। यह लता के रूप में उगती है और बढती है। गिलोय के पत्ते पतले, हरे और दिल आकर के होते हैं। गिलोय के पीछे एक कहानी है जो इस प्रकार है: जब समुद्र मंथन हुआ तो उससे से अनेक चिजे निकली, जिसमे से की अमृत बहुत ही मूल्यवान थी जो की देवताओं को प्राप्त हुई। परन्तु दानवों ने छल से अमृत प्राप्त कर भागने लगे। भागने के क्रम में जहाँ जहाँ अमृत की बुँदे पृथ्वी पर गिरी, वहां वहां गिलोय पौधे के रूप में प्रकट हुआ, इसलिए इसे अमृत वल्ली भी बोला जाता है।

• गुडूची (Guduchi)
• अमृत वल्ली (Amrit Walli)
• मधुपर्णी (Madhuparni)

इसे मराठी (marathi) में गलो भी बोलते हैं। किसी भी प्रकार की भूमि में गिलोय की फसल हो सकती है, इस फसल के लिए मिट्टी का गीलापन ज्यादा फायदेमंद होता है आद्र्र या नम जलवायु इस लता के लिए लाभप्रद होती है।

गिलोय की खेती के लिए खेत में मेड़ बाड़ या बड़े पौधे का सहारा लेना चाहिए या खेत में लता को चलने में आसानी हो। अच्छे सशक्त और जल्दी बढ़ने वाले पौधों से 15- 20 से.मी. लंबाई की 4-5 आंखो वाली उंगली से थोड़ी मोटी शाखाओं के टुकड़ों को इस्तेमाल करे, इन टुकड़ों को मई॰जून माह में लगाकर पौधशाला की तैयारी करनी चाहिए। इसमें कलम लगाते वक्त रेज्ड बेडस या पालीथीन बैग का प्रयोग करना चाहिए कलम के निचले हिस्सो को रूटेक्स पाउडर के घोल में 15-20 मिनट डुबोकर रखने के बाद लगाना चाहिए पौधशाला का छाया में होना जरूरी होता है, इसके अलावा पौधशाला में एक दिन छोड़कर दूसरे दिन सिंचन करना चाहिए 30-45 दिन बाद पौधे स्थानांतरण योग्य हो जाते हैं कृषि योग्य भूमि में खेती करते वक्त दो पौधे और कतार में 120-150 से.मी. का अंतर रखना चाहिए इस फसल को अतिरिक्त खाद देने की जरूरत नहीं है मगर स्थानांतरण के 20-25 दिन बाद प्रति पौधा 15-20 ग्राम नत्रजन की मात्रा देने से पौधे की वृद्धि में तेजी आती है।

फसल किस्म: अमृताबालली सातवा, गिलोयसत्व, सत्तगिलो, सेंथिल कोडी

बुवाई: स्टेम कटिंग इस पौधे की सबसे अच्छी प्रसार सामग्री है और मुख्य रूप से जून-जुलाई के महीने में की जाती है। इस पौधे के प्रसार के लिए भी बीज का उपयोग किया जाता है, बुवाई से पहले बीज को अंकुरण के लिए 24 घंटे तक पानी में भिगोया जाता है। हाइड्रोप्रिमेड बीज मई-जुलाई के दौरान पॉलीबैग में बोए जाते हैं।

बीज उपचार: गिलोय एक पर्वतारोही है जिसे आप आम, नीम इत्यादि जैसे बड़े पेड़ों पर पा सकते हैं। आपको सीधे एक तना काटना होगा और इसे एक पेड़ के पास मिट्टी में डालना चाहिए (जिस पर यह चढ़ सकता है) कुछ पानी के साथ यह अपने तने वाले भाग से बढ़ता है और इसका तना सबसे अधिक लाभकारी भाग होता है।

बुआई समय: दो गांठों के साथ 6-8 इंच के कटिंग सीधे लगाए जाते हैं। जून-जुलाई में मुख्य पौधे से प्राप्त तने 24 घंटे के भीतर सीधे खेत में लगाए जाते हैं।

अनुकूल ​​जलवायु: यह पौधा बहुत कठोर होता है और इसे लगभग सभी जलवायु में उगाया जा सकता है, लेकिन यह गर्म जलवायु को पसंद करता है।

फसल अवधि: इन पौधों की नर्सरी की अवधि डेढ़ महीने तक है।

सिंचाई: इसके लिए 50 मिली से 100 मिली पानी की आवश्यकता होती है। यह विभिन्न प्रकार के बड़े पेड़ों जैसे आम, नीम आदि पर चढ़ने का एक प्रकार है जहाँ से तने को काटकर कुछ पानी के साथ एक पेड़ के पास मिट्टी में डाल सकते हैं।

उर्वरक एवं खाद: पौधों को रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना उगाया जाना चाहिए। फार्म यार्ड खाद (FYM), वर्मीकम्पोस्ट, हरी खाद जैसी जैविक खादों का उपयोग प्रजातियों की आवश्यकता के अनुसार किया जा सकता है।

कटाई समय: बीज परिपक्व होने के लिए लगभग दोगुने से अधिक समय लेते हैं और समान मात्रा में उपज देते हैं। पौधे को बढ़ने के लिए समर्थन की आवश्यकता होती है, जो लकड़ी के दांव या ट्रेलिस को बढ़ाकर प्रदान किया जा सकता है।

उपज दर: तने की उपज दर लगभग 0.8-1 टन प्रति हेक्टेयर है।

सफाई और सुखाने: गिलोय के पत्तों को पकाने के बाद, उन्हें पानी से धोया जाना चाहिए और यदि आप गिलोय का पाउडर बनाना चाहते हैं तो आप इसे सुखा सकते हैं और इस पाउडर को बाहर निकाल सकते हैं। बार-बार इसका इस्तेमाल कई उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकता है।

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