Sanjay Kumar Singh
09-01-2023 10:57 AMडॉ. एस.के .सिंह
प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक (पौधा रोग)
एवम्
सह निदेशक अनुसंधान
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय
पूसा, समस्तीपुर बिहार
सफेद सड़ांध एक कवक (स्केलेरोटिनिया स्क्लेरोटोरियम) के कारण होने वाली एक विनाशकारी बीमारी है जो फ्रेंच बीन एवम राजमा के पौधों के सभी उपरी हिस्सों को संक्रमित कर सकती है।
इस रोग का रोग कारक पॉलीफेगस स्वभाव का होता है जो फ्रेंच बीन, राजमा के अतरिक्त कई अन्य फसलों को भी आक्रांत करता है जैसे,: फेजोलस वल्गेरिस (बीन), ब्रैसिका, गाजर, धनिया, खीरा, सलाद, खरबूज, प्याज, कुसुम, सूरजमुखी, टमाटर इत्यादि।
सफेद सड़न रोग के प्रमुख लक्षण
सफेद सड़ांध रोग में भूरा-भूरा नरम सड़ांध लक्षण तनो, पत्तियों, फूलों, फलियों पर विकसित होती है, उसके बाद एक सफेद कॉटनी मोल्ड जैसी संरचना दिखाई देती है।
मिट्टी के सतह के पास तनो के संक्रमित होने से पौधे टूट कर गिर जाते है। तनो के पास एवम तनों के अंदर काले बीज जैसी संरचना (ब्लैक, सीड-लाइक रेस्टिंग बॉडीज) जिसे'स्क्लेरोटिया' कहा जाता है (स्टेम के केंद्र में स्थित ऊतक) विकसित होती है।
रोग का विकास
इस रोग के प्रति पौधे सभी उम्र में अतिसंवेदनशील होते हैं, लेकिन ज्यादातर संक्रमण फूल आने के दौरान और बाद में फलियों पर होता है। वायु जनित बीजाणु (एस्कॉस्पोरस) पुराने और मरने वाले फूलों को संक्रमित करते हैं फिर कवक आस पास के ऊतकों और अंगों में बढ़ता है, जो तेजी से मारे जाते हैं। पत्तियों और शाखाओं पर गिरने वाले संक्रमित फूल भी एक फसल के भीतर रोग फैलाएंगे। ट्रांसपोर्टेशन और भंडारण में भी फलियों पर सफेद सड़ांध रोग विकसित हो सकती है।
संक्रमण का फैलाव
वायुजनित (एयरबोर्न) बीजाणु प्रसार और संक्रमण का सबसे महत्वपूर्ण साधन हैं। बीजाणु एपोथेसिया से निकाले जाते हैं (छोटे,नारंगी, कप जैसी संरचनाएं जो बीज की तरह स्क्लेरोटिया द्वारा निर्मित होती हैं) और हवा द्वारा कई किलोमीटर तक फैल सकते हैं। इस रोग के कवक विभिन्न माध्यम से फैल सकते है जैसे बीज,सिंचाई का पानी, पौधे से पौधे का संपर्क इत्यादि। जानवरों के पाचन तंत्र से गुजरने के बाद भी इस रोग का स्केलेरोटिया जिंदा रहता है। इस रोग के बीजाडू (Ascospores) मधुमक्खियों द्वारा भी फैल सकते है।
इस रोग के फैलाव के लिए निम्नलिखित परिस्थितियां सहायक होती है जैसे पौधे को सस्तुति दूरी पर नही खाए जाने से पौधों का घना होना ,लंबे समय तक उच्च आर्द्रता, ठंडा, गीला मौसम, 20 डिग्री सेल्सियस से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान इस रोग के विकसित होने में सहायक होता है। यह रोग 5 डिग्री सेल्सियस से लेकर 30 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर सफेद सड़ांध विकसित हो सकता है। स्क्लेरोशीया पर्यावरण की स्थिति के आधार पर कई महीनों से लेकर 7 साल तक कहीं भी मिट्टी में जीवित रह सकता है।मिट्टी के ऊपरी 10 सेमी में स्केलेरेट्स नम स्थितियों के संपर्क में आने के बाद अंकुरित होकर रोग फैलाने लगते है।
सफेद सड़न को कैसे प्रबंधित करें
सिंचाई न करें, और दोपहर में सिंचाई से बचें। फूल के दौरान एक कवकनाशी जैसे साफ या कार्बेन्डाजिम @2ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। घनी फसल लगाने से बचें।संक्रमित फसल में जुताई गहरी करनी चाहिए। रोग की उग्र अवस्था में बीन्स के बीच में कम से कम 8 साल का फसल चक्र अपनाना चाहिए।
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