Umesh Dhakad
12-02-2022 01:42 AMउमेश कुमार एम. एस सी हॉर्टिकल्चर (फ्रूट साइंस) SRF निकरा परियोजना, डॉ चतरा राम फाटवा, डॉ. रोहताश सिंह भदौरिया, डॉ सर्वे त्रिपाठी, डॉ बरखा भार्मा, डॉ. रामधन घासवा कृषि विज्ञान केंद्र जावरा, रतलाम (म.प्र.)
लहसुन व प्याज के प्रमुख कीट व बीमारियां एवं उनके निदान
लक्षण:- बल्ब माईट के प्रकोप से लहसुन के पोधों की वृद्धि रुक जाती है, प्रकोप उग्र होने पर बल्ब खेत में सड़ने लगते हैं। कभी कभी बल्ब भंडारण में भी इस किट के प्रकोप से प्रभावित होते हैं। बल्ब माईट द्वारा पौधों को नुकसान प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों रूप से होता है। बल्ब माईट पौधों का रस चूस कर प्रत्यक्ष रूप से नुकसान करती है। अप्रत्यक्ष रूप से बल्ब माईट दूसरे रोग कारकों को आक्रमण की अनुमति देती है, जिससे बल्ब में सड़न पैदा होती है।
कीट पहचान:
बल्ब माईट जो कि क्रीमी सफेद रंग एक मिली मीटर से छोटा, मोती के समान दिखाई देता है।
प्रबंधनः
लक्षण:- लीफ माइनर का लार्वा पत्तियों के हरे भाग को ही खाता है, जिससे पत्तियों पर सफ़ेद पतले सर्पिलाकार निशान दिखाई देने लगते हैं। अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों पर सफ़ेद धब्बे बन जाते है। पत्तियां समय से पहले ही सुखकर गिर जाती है। लीफ माइनर अंडे पत्तियों की सतह पर देते हैं जिससे लार्वा अंडों से निकाल कर सीधे पत्तियों का हरा भाग खाने लगता हैं। लीफ माइनर का अधिक प्रकोप होने पर उपज में कमी आती है।
पहचानः-
वयस्क लीफ माइनर काले रंग का छोटा कीट होता है तथा इसका लार्वा सफेद क्रीमी रंग का होता है।
प्रबंधन: -
लक्षण:- थ्रिप्स पत्तियों का रस चूसता है, जिससे पत्तियों पर रंगहीन विकृत उत्तक से दाग बन जाते हैं। अधिक सक्रमण होने पर पतिया सिल्वर कलर की हो जाती है। लिप्स का प्रकोप फसल की शुरुआती अवस्था में (रोपाई के 45 दिन) अधिक होता है। पत्तियों का मुड़ना व सिकुड़ना तथा पत्तियों पर सफेद व सिल्वर धब्बों की उपस्थिति इसका एक मुख्य लक्षण है। अधिक सक्रमण होने पर पौधा धब्बेदार तथा सफेद हो जाता हैं।
कीट की पहचान:- कीट 1.5 मिलीमीटर लम्बा व आकार में पतला होता है। यह नग्न आंखों स्पष्ट दिखाई नहीं देता है, इसे स्पष्ट देखने के लिए हैंड लेंस की आवश्यकता होती है। वयस्क किट सफेद पीला से भूरा होता है तथा निम्फ छोटा और हल्का रंग का होता है।
प्रबंधन:-
लक्षण:- इस कीट का प्रकोप होने पर पौधों की पत्तिया पूरी तरह नहीं खुलती है, तथा पूरा पौधा बोना, मुड़ा हुआ, सिकुड़ा हुआ, पीला धब्बेदार दिखाई देता है। ये धब्बे अधिकांशत: पत्तियों के किनारे पर दिखाई देते हैं।
प्रबंधन:-
इरिऑफाईड माईट का नियंत्रण रसायनिक दवाओं से करना कारगर सिद्ध होता है। डाईकोफोल (18.5% ई.सी.) 2 मिलीलीटर प्रति लीटर या सल्फर (80% डबल्यू.पी.) 5 ग्राम प्रति लीटर दवा का प्रयोग लक्षण दिखते ही करना चाहिए। आवश्यकता होने पर पुन 15 दिन बाद छिड़काव करना चाहिए।
लक्षण:- पोधों की पत्तियां सफेद रंगहिन हो जाती है साथ ही पत्तियों पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तियों पर मकड़ी के जाले होने से पत्तियों पर सुखी पत्तियों, धूल आदि चिपक जाते हैं, जिससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया में बाधा के कारण पोधों का भोजन बनना बंद हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप पोधों की वृद्धि रुक जाती है और पौधे की उत्पादन क्षमता में कमी है।
कीट की पहचान- लाल मकड़ी (रेड स्पाइडर माइट) आकार में 1 मिलीमीटर से भी छोटी लाल रंग का कीट है। यह पत्तियों पर झुंड में दिखाई देती है।
प्रबंधन:-
लक्षण:- यह निमेटोड पौधों में तना व कंद में पुटिका (गांठ) का निर्माण करते हैं। निमेटोड पुटिका (गांठ ) में रहकर पौधे से रस घुसते हैं। यह पुटिका (गांठ) कवक व जीवाणुओं के लिए प्रवेश द्वार बनाता है। पौधा बोना दिखाई पड़ता है, बल्ब रंगहीन तथा तना फूला हुआ दिखाई देता है।
प्रबंधन:-
1. डाउनी मिल्ड्यू (काली मस्सी):- यह बीमारी परनोस्पोरा डिस्ट्रक्टर नामक फफूंद (कवक) से होती है।
लक्षण:- बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों पर पीले फीके धब्बे दिखाई देते हैं, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है। बीमारी उग्र होने पर पत्तियों की सतह पर भुरी बैंगनी (ग्रे पर्पल) रंग की अस्पष्ट वृद्धि दिखाई देती है। पत्तिया पीली पड़ कर सूखने लगती हैं।
अनुकूल समय:- यह बीमारी ठंडे तापमान तथा अधिक आर्द्रता (पत्तियों के गीलेपन) के कारण उत्पन्न होती है।
प्रबंधन:-
2. पर्पल ब्लोच (बैंगनी धब्बा):- यह बीमारी अल्टरनेरिया पोरी नामक फफूंद (कवक) से होती है।
लक्षण- पत्तियों पर सफ़ेद केंद्र के साथ पानी वाले घाव बन जाते हैं। घाव बड़े होकर भूरे तथा बैंगनी (पर्पल) रंग के हो जाते हैं, साथ ही वह क्षेत्र पीला हो जाता है जिसमें लाल बैंगनी (पर्पल) रंग की मार्जिन बन जाती है। बड़े घाव बढ़ते जाते है तथा पत्तियों में गर्डल (खाई) बन जाती है। घाव वाले स्थान के उत्तक मर जाते हैं तथा रोग का उग्र होने पर पत्तियां ही मर (सुख) जाती है।
अनुकूल समयः- पत्तियों पर नमी की अधिकता इस बीमारी को उत्पन्न करने में सहायक होती है साथ ही रात के समय उच्च आर्द्रता होने से बीजाणुओं का निर्माण होता है।
प्रबंधनः-
3. व्हाइट रॉट (सफेद सड़न):- यह बीमारी स्क्लेरोटीयम सेपीवोरम नामक फफूंद (कवक) से होती हैं।
लक्षणः- पौधे की पुरानी पत्तियां पीली पड़ जाती है तथा पौधे की वृद्धि रुक जाती है। रोग का उग्र संक्रमण होने पर सभी पत्तियां मर (सुख) जाती है तथा कंद (बल्ब) पर सफेद रंग की रोएदार वृद्धि दिखाई देती है, जो कंद (बल्ब) से पत्तियों तक फैल जाती है।
टिप्पणीः- यह बीमारी एक बार अगर खेत में स्थापित हो जाती है तो वह खेत लहसुन के उत्पादन के लिए अनुपयोगी हो जाता है, क्योंकि यह फफूंद (कवक) 20 साल तक जीवित रह सकती है। यह बीमारी लहसुन व प्याज की सबसे खतरनाक बीमारी है। यह बीमारी पूरे विश्व भर में एलियम कुल की सभी फसलों में लगती है। इस बीमारी से लहसुन व प्याज बहुत अधिक मात्रा में हानि होती है।
प्रबंधनः-
4. स्टेम फाईलियम ब्लाइट- यह बीमारी स्टेमफाईलीयम वेसीकेरियम नामक फफूंद (कवक) से होती हैं।
लक्षणः- पत्तियों के मध्य में छोटे पीले नारंगी धब्बे और धारियां बन जाती है, जो कि जल्द ही दीर्घाकार हो जाते हैं। पत्तियों पर अंडाकार धब्बे गुलाबी किनारों के साथ दिखाई देते हैं। बीमारी का उग्र संक्रमण होने पर पत्तियां झुलस जाती है।
प्रबंधनः- इस बीमारी के नियंत्रण के लिए मैनकोज़ेब (75% डब्ल्यू.पी.) 2 ग्राम प्रति लीटर या हेक्साकोनाजोल (5% एस.सी.) 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या प्रॉपिकॉनाजोल (25% ई.सी.) 1 मिलीलीटर प्रति लीटर दवा का छिड़काव 10 से 15 दिन के अंतराल में बीमारी दिखने पर छिड़काव करें।
1. ओनियन येल्लो ड्वार्फ वायरस (व्ल्क्ट):- यह वायरस जनित बीमारी है।
लक्षणः- पत्तियों पर हल्की हरी से पीली धारियां दिखाई देती हैं। उग्र संक्रमण होने पर पत्तियां मुड़ी हुई दिखाई देती है। इससे पौधे की वृद्धि मंद हो जाती है।
प्रबंधनः-
2. इरिश येल्लो स्पॉट वायरस ; प्ल्टै) :- यह एक वायरस जनित बीमारी है।
लक्षणः- पत्तियों पर भूसे के रंग के तर्कुरूपी धब्बे बन जाते हैं। यह धब्बे बाद में दीर्घाकार हो जाते हैं। इस बीमारी से पत्तियों के सिरे कमजोर हो जाते हैं। इस बीमारी के लक्षण पुरानी पत्तियों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
प्रबंधनः-
1. पेनिसिलियम रॉटः- यह बीमारी पेनिसिलियम ओरिमबीफेरम नामक फफूंद (कवक) से होती हैं।
लक्षणः- इस बीमारी के प्रमुख लक्षण कंदो का वजन कम होना, कलियों का मुलायम पड़ना तथा शुष्क होना। कंदो में सड़न तथा कलियों पर हरे व ग्रे पाउडर का बनना आदि हैं।
प्रबंधनः- लहसुन व प्याज का भंडारण शुष्क अवस्था में करें ताकि सड़न को कम किया जा सके।
2.फ्यूजेरियम रॉटः- यह बीमारी स्यूडोमोनास स्पीशीज़ नामक फफूंद (कवक) से होती हैं।
लक्षणः- कंदो काला तथा रंगहीन होना, माइसीलियम की काली धारियां बनना, बाहरी शलक पर कोनिडिया का बनना तथा अनुकूल अवस्था में कंदो का सिकुड़ना आदि इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं।
प्रबंधनः- कंदो को अच्छी तरह से सुखाकर शुष्क स्थान पर भंडारण करें। कंदो को कटाई, भंडारण व स्थानांतरण के समय खरोचों से बचाएं।
नोटः- कंदो के सुरक्षित भंडारण हेंतु ताप, आर्द्रता तथा भंडारण अवधि का विवरण निम्नानुसार हैः-
क्र. भंडारण तापमान भंडारण आद्र्रता भंडारण अवधि
1. 20-30 डिग्री सेल्सियस 75ः आद्र्रता 1-2 माह
2. 15-18 डिग्री सेल्सियस 75ः आद्र्रता 4-5 माह
3. -1-0 डिग्री सेल्सियस 75ः आद्र्रता 9 माह
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