जैविक खेती का मुख्य आधार ट्राइकोडर्मा ,प्राकृतिक बायोकंट्रोल एजेंट आइए जानते है की इसका प्रयोग कैसे करते हैं?

Sanjay Kumar Singh

17-10-2022 12:30 PM

डॉ एस के सिंह
प्रोफेसर, प्लान्ट पैथोलॉजी 
 सह निदेशक अनुसंधान
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (फल)
डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय,पूसा, समस्तीपुर बिहार

आइए जानते है ट्राइकोडर्मा  क्या है ? ट्राइकोडर्मा से क्यों करते है ? ट्राइकोडर्मा से कैसे करते है ? ट्राइकोडर्मा से क्या न करें ? ट्राइकोडर्मा से क्यों न करें? इस तरह के तमाम तमाम प्रश्न बहुधा पूछे जाते है जिसका जबाब बहुत लोगों के पास नही होता है ।आप के इन प्रश्नों का जबाब यहाँ देने का प्रयास किया गया है ।
ट्राइकोडर्मा हाइपोक्रेसी परिवार में कवक का एक जीनस है जो सभी मिट्टी में मौजूद रहता है। यह सर्वाधिक प्रचलित खेती में प्रयोग होने वाला  कवक हैं।  इस जीनस की कई प्रजातियों को अवसरवादी अविरल पौधे सहजीवन के रूप में वर्णित किया जा सकता है।  यह कई ट्राइकोडर्मा प्रजातियों की कई पौधों की प्रजातियों के साथ पारस्परिक एंडोफाइटिक संबंध बनाने की क्षमता रखता है। कई ट्राइकोडर्मा प्रजातियों के जीनोम अनुक्रमित किए गए हैं और सार्वजनिक रूप से जेजीआई में उपलब्ध हैं।


ट्राइकोडर्मा क्या है? 
ट्राइकोडर्मा एक भिन्न फफूँद है, जो मिट्टी में पाया जाता है। यह जैविक फफूँदीनाशक है जो मिट्टी एवं बीजों में पाये जाने वाले हानिकारक फफूँदों  का नाश कर पौधे को स्वस्थ एवं निरोग बनाता है। 
ट्राइकोडर्मा से क्या क्या करते है ?
ट्राइकोडर्मा  से बीज का शोधन कैसे करते है?

  • पौधशाला की मिट्टी का शोधन ट्राइकोडर्मा से करें ।
  • पौध के जड़ को ट्राइकोडर्मा  के घोल में डुबोकर लगायें ।
  • पौध रोपण के समय खेत में प्रर्याप्त मात्रा में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग कार्बनिक खादों जैसे, कम्पोस्ट, खल्ली, के साथ मिलाकर करें । 
  • खड़ी फसल में पौधों के जड़ क्षेत्र के पास ट्राइकोडर्मा का घोल डालें । 
  • खेत में हरी खाद का अधिक से अधिक प्रयोग करें । 
  • खेत में प्रर्याप्त नमी बनाये रखें।


ट्राइकोडर्मा से क्यों करते है ?

  • मृदा जनित रोगेां की रोकथाम का सफल एवं प्रभावकारी तरीका है। 
  • इससे आर्द्रगलन, उकठा, जड़-सड़न, तना सड़न , कालर राट, फल-सड़न जैसी बीमारिया नियंत्रित होती है। 
  • जैविक विधि में ट्राइकोडर्मा सबसे प्रभावकारी एवं सफल प्रयोग होनेवाला रोग नियंत्रक है। 
  • बीज के अंकुरण के समय ट्राइकोडर्मा  बीज में हानिकारक फफूँद के आक्रमण तथा प्रभाव को रोक देता है और बीजों को मरने से बचाता है। 
  • मृदा जनित बीमारियों की रोकथाम फफॅुदनाशक से पूर्णतया संभव नहीं है। 
  • यह भूमि में उपलब्ध पौधों , घासों एवं अन्य फसल अवषेषों को सड़ा- गलाकर जैविक खाद में परिवर्तित करने में सहायक होता है। 
  • ट्राइकोडर्मा केचुआँ की खाद या किसी भी  कार्बनिक खाद तथा हल्की नमी में बहुत अच्छा काम करता है। 
  • यह पौधे की अच्छी बढ़वार हेतुं वृद्धि नियामक की तरह भी काम करता है। 
  • इसका प्रभाव मिट्टी में सालोंसाल तक बना रहता है, तथा रोग को रोकता है। 
  • यह पर्यावरण को कोई हानि नही पहुचाता है।


ट्राइकोडर्मा से कैसे करते है ?

  • ट्राइकोडर्मा  का 6-10 ग्राम पाउडर प्रति किलो बीज की दर से मिलाकर बीजों को शोधित करें। 
  • पौधशाला में नीम की खली, केचुआँ की खाद या पर्याप्त सड़ी गोबर की खाद मिलाकर ट्राइकोडर्मा 10-25 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मिट्टी शोधित करें। 
  • खेत में सनई या ढ़ैचा पलटने के बाद कम से कम 5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से ट्राइकोडर्मा पाउडर का बुरकाव करें।
  • खेत में वर्मी कम्पोस्ट या खली या गोबर की खाद डालने के समय उसमें ट्राइकोडर्मा अच्छी तरह मिलाकर डालें। 
  • ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम +100 ग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद /लीटर पानी में घोलकर पौध के जड़ को डुबोकर रोपाई करें। 
  • खड़ी फसल में ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल कर जड़ के पास डालें।

ट्राइकोडर्मा से क्या न करें ?

  • ट्राइकोडर्मा एवं फफूँदनाशकों का प्रयोग एक साथ न करें।
  • सूखी मिट्टी में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग न करें। 
  • तेज धूप में शोधित बीज न रखें 
  • ट्राइकोडर्मा मिश्रित कार्बनिक खाद को न रखें।

ट्राइकोडर्मा से क्यों न करें ?

  • मिट्टी में रासायनिक दवाओं का प्रयोग तत्कालिक तथा किसी एक फफूॅंद विशेष के लिए होता है। 
  • ये दवायें मिट्टी में पहले से विद्यमान ट्राइकोडर्मा एवं अन्य फायदेमंद जैविक कारकों को मार देती हैं। 
  • खेत में नमी एवं पर्याप्त कार्बनिक खाद की कमी से ट्राइकोडर्मा का विकास नहीं होता और मर जाता है। 
  • ट्राइकोडर्मा तेज धूप में मरने लगता है।

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