बूँद-बूँद पानी, मीठे मीठे आमों की निशानी!

बूँद-बूँद पानी, मीठे मीठे आमों की निशानी!
बूँद-बूँद पानी, मीठे मीठे आमों की निशानी!

Sanjay Kumar Singh

बूँद-बूँद पानी, मीठे मीठे आमों की निशानी!

 

प्रोफेसर (डॉ.) SK Singh

SK Singh Dr RPCAU Pusa

Expert advice by SK Singh

विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी

प्रधान, केला अनुसंधान केंद्र, गोरौल, हाजीपुर

डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर, बिहार

 

आम उत्पादन में उत्कृष्टता प्राप्त करने हेतु वैज्ञानिक व सुनियोजित सिंचाई प्रबंधन अनिवार्य है। नवम्बर से जून तक आम के वृक्ष विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हैं, जिनमें प्रत्येक चरण के लिए विशिष्ट जल प्रबंधन रणनीति अपनाना आवश्यक होता है। उचित सिंचाई से न केवल वृक्षों का स्वास्थ्य सुदृढ़ होता है, बल्कि फलों की गुणवत्ता, परिपक्वता एवं उपज भी उच्चस्तरीय एवं अधिकतम होती है। जलवायु, मृदा संरचना एवं पर्यावरणीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, यहाँ प्रत्येक माह के लिए चरणबद्ध सिंचाई शेड्यूल निम्नलिखित है यथा....

 

मंजर बनने की अवस्था (नवम्बर-दिसम्बर माह में)

इस अवधि में वृक्षों को प्राकृतिक परिपथ में विकसित होने देने के लिए सिंचाई नहीं करनी चाहिए या न्यूनतम करनी चाहिए। फूलों की बेहतर वृद्धि एवं विकास हेतु सिंचाई को नियंत्रित किया जाता है, जिससे पुष्पन प्रक्रिया सुचारू रूप से संचालित हो सके। यदि अत्यधिक शुष्क एवं शुष्क परिस्थितियाँ विद्यमान हों, तो 15–20 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करने की अनुशंसा की जाती है। अत्यधिक जल आपूर्ति से बचना चाहिए, क्योंकि इससे अनावश्यक शाकीय वृद्धि (पत्तों की अधिकता) होने लगती है, जो पुष्पन प्रक्रिया को बाधित कर सकती है।

 

फूल और फल बनने की प्रारंभिक अवस्था (जनवरी-फरवरी माह में )

इस चरण में वृक्षों को पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है, किंतु अत्यधिक सिंचाई से फूलों के झड़ने की संभावना बढ़ जाती है। यदि वातावरण में अधिक शुष्कता बनी हुई हो, तो 20–25 दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें। विशेष रूप से, यदि तेज़ हवाएँ चल रही हों या तापमान में अचानक गिरावट दर्ज की जाए, तो वृक्षों के आसपास नमी बनाए रखने हेतु नियंत्रित सिंचाई आवश्यक होगी। इस दौरान संतुलित जल आपूर्ति से परागण एवं फलधारण की प्रक्रिया सुचारू रूप से संपन्न होती है।

 

फल विकास की अवस्था (मार्च-अप्रैल माह में)

यह अवधि फलों के संवर्धन एवं परिपक्वता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वृक्षों को निरंतर नमी की आवश्यकता रहती है, जिससे फल विकास तीव्र गति से होता है। अतः 10–15 दिन के अंतराल पर नियंत्रित सिंचाई करें। इस चरण में जलभराव से बचने के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली को अपनाना अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। साथ ही, मल्चिंग तकनीक (गीली घास, सूखी पत्तियाँ, भूसा इत्यादि) का प्रयोग करने से मृदा की आर्द्रता संरक्षित रहती है और सिंचाई की आवृत्ति कम हो जाती है।

 

फल परिपक्वता एवं तुड़ाई की अवस्था (मई-जून)

फलों के परिपक्व होने की अवस्था में जल प्रबंधन अत्यंत सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। 7–10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें, जिससे फलों की गुणवत्ता एवं मिठास बनी रहे। तुड़ाई से पूर्व अत्यधिक सिंचाई करने से फलों के गिरने की संभावना बढ़ सकती है, जिससे उत्पादन प्रभावित हो सकता है। इस दौरान सिंचाई की मात्रा धीरे-धीरे कम करना उचित रहता है, ताकि फलों में उच्च मिठास विकसित हो सके। तुड़ाई के पश्चात्, वृक्षों की उर्वरता पुनः संचित करने हेतु गहरी सिंचाई आवश्यक होती है।

 

सिंचाई प्रबंधन हेतु विशेष सुझाव

जलभराव से बचाव: आम के वृक्ष अत्यधिक जलभराव सहन नहीं कर सकते, क्योंकि इससे जड़ सड़न जैसी गम्भीर समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। जलभराव की स्थिति में कीट एवं रोगों का प्रकोप बढ़ने की संभावना अधिक रहती है, जिससे उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

मल्चिंग का प्रयोग: सूखी पत्तियाँ, भूसे अथवा अन्य फसल अवशेषों से मल्चिंग करने पर मृदा में नमी संरक्षित रहती है, जिससे पानी की बर्बादी कम होती है और वृक्षों को सतत पोषण प्राप्त होता है।

 

ड्रिप सिंचाई प्रणाली: जल संसाधनों के कुशल उपयोग हेतु ड्रिप सिंचाई प्रणाली को प्राथमिकता दें। यह विधि पारंपरिक बाढ़ सिंचाई की तुलना में अधिक प्रभावी सिद्ध होती है, क्योंकि इससे जल का संतुलित वितरण सुनिश्चित होता है। यदि ड्रिप सिंचाई संभव न हो, तो वृक्षों के चारों ओर थालों में पानी भरने की विधि अपनाएँ अथवा बाग़ को विभिन्न खंडों में विभाजित कर क्रमिक सिंचाई करें, जिससे जल वितरण संतुलित रहे।

असमतल भूमि पर विशेष ध्यान: असमतल भूमि में जल वितरण असमान रूप से होता है, जिससे कुछ स्थानों पर जलभराव एवं कुछ स्थानों पर सूखापन बना रहता है। इस स्थिति में फलों का रंग पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता, जिससे उनका बाजार मूल्य कम हो जाता है। अतः उचित जल निकासी प्रबंधन अपनाना अनिवार्य है।

तुड़ाई के बाद सिंचाई: मानसून की उपलब्धता के अनुसार तुड़ाई के बाद सिंचाई कार्यक्रम को समायोजित करें। इससे वृक्षों की पुनः ऊर्जा संचित होती है, जिससे अगले फसल चक्र में स्वस्थ एवं उन्नत उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

 

सारांश

आम के बागों में समुचित एवं वैज्ञानिक सिंचाई प्रबंधन अपनाना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह न केवल वृक्षों की उर्वरता एवं स्वास्थ्य बनाए रखने में सहायक होता है, बल्कि फलों की गुणवत्ता, परिपक्वता एवं उपज में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नवम्बर से जून तक प्रत्येक अवस्था में जल आपूर्ति की मात्रा, विधि एवं समय का समुचित निर्धारण करने से न केवल आम उत्पादन में श्रेष्ठता प्राप्त की जा सकती है, बल्कि जल संसाधनों का भी कुशल उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है। अतः, आधुनिक तकनीकों एवं वैज्ञानिक अनुशंसाओं के अनुरूप सुनियोजित सिंचाई प्रबंधन अपनाकर आम उत्पादन को व्यावसायिक रूप से अधिक लाभदायक एवं सतत् टिकाऊ बनाया जा सकता है।

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