अप्रैल मई में पपीता लगाने से पूर्व जानने योग्य प्रमुख बातें

Sanjay Kumar Singh

24-04-2023 01:57 AM

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह 
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवं
सह निदेशक अनुसन्धान
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा ,समस्तीपुर, बिहार

पपीता का वैज्ञानिक नाम  कैरिका पपाया है। यह एक अल्पकालिक वनस्पति है, जो पृथ्वी के लगभग हर हिस्से में उगाया जाता है। भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया, नाइजीरिया और मैक्सिको के बाद पपीता का सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट्र है। पपीते में मुख्यतः तीन प्रकार के पौधे होते हैं, नर पौधे केवल पराग का उत्पादन करते हैं, इस पर कभी फल नहीं लगता है। मादा पौधे एवं उभयलिंगी (हेर्मैफ्रोडाइट) पौधे जिसमे फल पैदा होते है। पपीता में परागण हवा एवं कीटों द्वारा होता है। उभयलिंगी (हेर्मैफ्रोडाइट) पौधों में स्व-परागण होता हैं। लगभग सभी वाणिज्यिक पपीता की किस्मों में केवल उभयलिंगी ( हेर्मैफ्रोडाइट) पौधों होते हैं। भारत में प्रमुखता से उगाई जाने वाली किस्म रेड लेडी भी उभयलिंगी (हेर्मैफ्रोडाइट) किस्म है। कुछ किसान सोलो टाइप पपीते की भी खेती कर रहे हैं, जिसमे नर एवं मादा पुष्प अलग अलग पौधों पर होते है। पपीता उगाने और उपज के लिए आदर्श तापमान 21 डिग्री सेंटीग्रेट  से लेकर  36 डिग्री सेंटीग्रेट का तापक्रम सर्वोत्तम होता है। पपीता की फसल गर्म मौसम में नमी और ठंडे मौसम की स्थिति में शुष्क प्रकृति के साथ मिट्टी में अच्छा फूल आता है। अत्यधिक कम तापमान के संपर्क में पत्तियों को नुकसान हो सकता है और यहां तक कि पौधे भी मर सकते है। पपीते के लिए  मिट्टी का  पीएच 6.0 और 7.0 के बीच में सबसे अच्छा होता हैं। पपीता की सफल खेती के लिए पर्याप्त जल निकासी वाली मिट्टी का होना अनिवार्य है, क्योकि यदि पपीता के खेत में 24 घंटे से ज्यादा पानी रुक गया तो पपीता को बचाना असंभव है, इसलिए ऊंची जमीन का चयन करें जिसमे वर्षा होने के तुरंत बाद खेत से पानी पूरी तरह से निकल जाय।

किसानों द्वारा दो तरह से पपीता की नर्सरी तैयार किया जाता है यथा उठा हुवा बेड एवं पॉलिथीन बैग में। उठा हुआ बेड की मिट्टी को खूब अच्छे से तैयार किया जाता है और उचित मात्रा में सड़ी गोबर की खाद और बीजों को उचित अंतर के साथ बोया जाता है। पपीते के बीजों को पॉलीथिन बैग में अच्छी जड़ वाले मीडिया के साथ भी बोया जा सकता है। प्रतिकूल वातावरण एवं कीटों और बीमारियों से नर्सरी के पौधों  की रक्षा के लिए पौधों को सुरक्षात्मक संरचना में (लो कास्ट पाली टनल) उगाने की आवश्यकता होती है। रोपाई हेतु 30 से लेकर 45 दिन के पौधों को मुख्य क्षेत्र में रोपाई कर सकते है।

रोपण के लिए भूमि की तैयारी के लिए आवश्यक है की भूमि को बार-बार जुताई और गुड़ाई  के माध्यम से अच्छी तरह से तैयार किया जाय और अंत में 1.0 फीट x 1.0फीट x 1.0फीट के गड्ढे खोदे जाते हैं। खोदे हुए गड्ढों को कम से कम 15 दिनों तक धूप में सूखने दें, इसके बाद मुख्य क्षेत्र में पौधे रोपे जा सकते हैं। रोपण से कम से कम 15 दिन पहले 5 ग्राम कार्बोफ्यूरान एवं 25-30 ग्राम डीएपी के साथ खुदाई की गई मिट्टी के साथ खोदे गए गड्ढे का आधा हिस्सा भरा जा सकता है। नर्सरी में तैयार पौधों को मिट्टी एवं जड़ के साथ, कवर को हटा दिया जाता है और आधा मिट्टी से भरे गड्ढे के केंद्र में रखा जाता है, और आधी बची  मिट्टी से ढंक दिया जाता है। रोपण के तुरंत बाद हल्की सिंचाई देनी चाहिए।यदि डीएपी 15 दिन पहले खोदे गए गड्ढों में नही डाल पाए हो तो रोपाई के समय रासायनिक खाद नहीं डालना चाहिए, क्योकि इससे जड़ो को नुकसान हो सकता है।

पौधे से पौधे एवं पंक्ति से पंक्ति  के बीच 1.8 x 1.8मीटर की दूरी रखने से बेहतर पैदावार प्राप्त होता है। पपीता की अच्छी खेती के लिए लगातार अंतराल पर पर्याप्त मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना महत्वपूर्ण है। उचित फलन के लिए संतुलित कार्बन: नाइट्रोजन अनुपात होना भी आवश्यक है। अच्छी तरह से सड़ी 25 -30 किलोग्राम गोबर की खाद जिसमे बायोफर्टिलाइज़र मिश्रण मिला हो, फसल की वृद्धि और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते है। पपीता की खेती में, प्रति वर्ष 1-2 किग्रा प्रति पौधा नीम केक/जैवउर्वरक/ वर्मीकम्पोस्ट में से कोई एक या तीनों का मिश्रण तीन से चार बार जब रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते है, उसी समय देने से अच्छी उपज प्राप्त होता है। अकार्बनिक उर्वरक यथा  नाइट्रोजन-200-250 ग्राम, फास्फोरस-200-250 ग्राम, पोटेशियम 200-250 ग्राम प्रति वर्ष प्रति पौधा तत्व के रूप में, दो दो महीने के अंतर पर, चार बार या तीन तीन महीने के अंतर पर तीन बार उर्वरकों के प्रयोग से अधिकतम लाभ मिलता है।

बिहार में पपीता की सफल खेती के लिए आवश्यक है की पपीता लगने से पूर्व डॉ राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित तकनीक को अवश्य ध्यान में रक्खे। अखिल भारतीय फल परियोजना (ICAR-AICRP on Fruits) एवम् डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा (RPCAU,Pusa) ने तकनीक विकसित किया है, उसके अनुसार खड़ी पपीता की फसल में विभिन्न विषाणुजनित बीमारियों को प्रबंधित करने के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए। पपीता को पपाया रिंग स्पॉट विषाणु रोग से बचाने के लिए आवश्यक है कि 2% नीम के तेल जिसमे 0.5 मिली प्रति लीटर स्टीकर मिला कर एक एक महीने के अंतर पर छिड़काव आठवे महीने तक करना चाहिए। उच्च क्वालिटी के फल एवं पपीता के पौधों में रोगरोधी गुण पैदा करने के लिए आवश्यक है की यूरिया @ 04 ग्राम + जिंक सल्फेट 04 ग्राम + बोरान 04 ग्राम /लीटर पानी में घोलकर एक एक महीने के अंतर पर छिड़काव पहले महीने से आठवे महीने तक छिड़काव करना चाहिए। बिहार में पपीता की सबसे घातक बीमारी जड़ गलन के प्रबंधन के लिए आवश्यक है की हेक्साकोनाजोल @ 2 मिली दवा / लीटर पानी में घोलकर एक एक महीने के अंतर पर मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगा दिया जाय,यह कार्य पहले महीने से लेकर आठवें महीने तक मिट्टी को उपरोक्त घोल से भिगाते रहना चाहिए। एक बड़े पौधे को भीगने में 5-6 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता होती है।

Smart farming and agriculture app for farmers is an innovative platform that connects farmers and rural communities across the country.

© All Copyright 2024 by Kisaan Helpline